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एक अनूठे किसान भी थे सर गंगा राम

05:55 AM Jun 17, 2024 IST
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इसी एक शख्स ने मंदिर भी बनाए, मस्जिदें भी, गुरुद्वारे भी और चर्च भी और इन सबके साथ उसने आधुनिकतम तकनीकों से खेतीबाड़ी के तौर-तरीके भी सिखाए। उसने घोड़ों से चलने वाली रेल भी बनाई। अस्पताल बनवाए, पुस्तकालय खुलवाए, निजी बिजली कंपनियां भी चलाईं। इन सबके अलावा उसे आज भी आधुनिक लाहौर का निर्माता माना जाता है, वहां का हाईकोर्ट, जनरल पोस्ट आफिस, वहां की मॉल रोड, वहां के संग्रहालय, वहां के मेयो स्कूल आफ आट्रस-मेयो अस्पताल का 'अल्बर्ट विक्टर विंग, एटकिन्सन कॉलेज और वहां का सर गंगा राम अस्पताल, सब इसी एक शख्स की देन हैं जो श्री ननकाना साहिब से 14 किलामीटर दूर एक गांव मंगतांवाला में अप्रैल 1851 में पैदा हुआ था। मगर उसके द्वारा बसाया गया कस्बा गंगापुर फिलहाल खबरों में नहीं है। गंगापुर, पाकिस्तानी पंजाब के जरांवाला-ननकाना रोड पर स्थित है। लायलपुर का बहुचर्चित घंटाघर और वहां के 8 मुख्य बाजार भी इसी शख्स सर गंगाराम की देन हैं। फिलहाल बात उसकी किसान-भूमिका की। इस शख्स ने लगभग डेढ़ सदी पहले ही इस कहावत को सिद्ध किया था कि 'बंजर धरती सोना भी उगल सकती है। उसकी किसान के रूप में जिंदगी लायलपुर (अब फैसलाबाद) से शुरू हुई थी। उसने सबसे पहले वहां सैकड़ों एकड़ बंजर जमीन खरीदी। उसके साथ ही साथ उसने मिंटगुमरी (वर्तमान साहीवाल) में 50 हजार एकड़ जमीन सरकार से पट्टे पर ली। अपनी इंजीनियरी-बुद्धि व आधुनिक तकनीक को अपनाते हुए वहां खेती की, फलों के बाग लगाए, सिंचाई के लिए ' बम्बा-प्रणाली का प्रयोग करते हुए समूचे बंजर क्षेत्र में सर्वाधिक हरियाली वाला क्षेत्र बना डाला।

सर गंगाराम का नाम प्रख्यात कहानीकार मंटो की एक कहानी में भी चर्चा का केंद्र बना था। शुरूआती जिंदगी में उसके पास भी उच्च शिक्षा के लिए साधन नहीं थे। लाहौर के ही गवर्नमेंट हाईस्कूल और बाद में गवनर्मेंट कॉलेज से पढ़ते-पढ़ते उसने थाम्पसन इंजीनियरिंग कॉलेज रुड़की में छात्रवृत्ति के लिए परीक्षा दी। वहां से छात्रवृत्ति पर ही इंजीनियरिंग करने के बाद सहायक इंजीनियर की नौकरी मिल गई। सर गंगाराम वैश्य समुदाय के अग्रवाल परिवार से संबंधित थे और पेशे से सिविल इंजीनियर थे। प्रथम विश्वयुद्ध की समाप्ति पर लाहौर में सर गंगाराम अस्पताल की स्थापना वर्ष 1921 में लाहौर में हुई थी। तब यह अस्पताल पुराने लाहौर की चारदीवारी के भीतर था। वर्ष 1914 में द्वितीय महायुद्ध के समय लाहौर में ही इसे वर्तमान स्थल पर स्थानांतरित किया गया। वर्ष 1944 में सर गंगाराम के परिवार ने अपने एक बेटे के नाम पर बालक राम मैडिकल कॉलेज की स्थापना की लेकिन वर्ष 1947 में विभाजन के समय यह कॉलेज बंद कर दिया गया। उसी स्थान पर वर्ष 1948 में मोहतरमा फातिमा जिन्नाह के नाम पर मैडिकल कॉलेज स्थापित कर दिया गया। मगर सर गंगाराम अस्पताल कायम रहा और अब तक कायम है। हालांकि मुहिम चली थी, इसका नाम कायदेआजम जिन्नाह के नाम पर रखने की।

लेकिन तत्कालीन सत्तापक्ष ने भी यह कहकर विरोध किया था कि इससे कायदेआजम का नाम विवादों में घिरेगा। मूल नाम व मूल अस्पताल को छेड़े बिना इसके साथ ही 22 कनाल भूमि पर एक नया अस्पताल अवश्य बना है, जिसका नाम फातिमा जिन्नाह अस्पताल रखा गया है। ये दोनों अस्पताल अलग-अलग बने हुए हैं। मगर फातिमा जिन्नाह मैडिकल कॉलेज से सम्बद्ध रहेंगे जैसे दिल्ली में जीबी पंत अस्पताल और एलएन जेपी अस्पताल (पुराना इर्विन अस्पताल) मौलाना आजाद मैडिकल कॉलेज से सम्बद्ध हैं। लाहौर का फातिमा जिन्नाह मैडिकल कॉलेज सिर्फ लड़कियों के लिए है लेकिन इसके 'टीचिंग स्टाफ में पुरुष-विशेषज्ञ डॉक्टर एवं प्राध्यापक शामिल हैं। इसके सभी लेक्चर-कक्ष आडियो-विज़ुअल तकनीक से जुड़े हैं और सभी प्रयोगशालाएं वातानुकूलित हैं। साथ ही सटा है होस्टल, जहां 1000 मैडिकल छात्राएं रहती हैं। सर गंगाराम की एक प्रतिमा पहले कभी माल रोड लाहौर पर लगी हुई थी। मंटो की एक कहानी 'टोबा टेक सिंह और एक और कहानी 'हार में इस बुत्त का भी जि़क्र है। वर्ष 1947 में विभाजन के समय दंगाइयों ने इस बुत्त पर भी पथराव किया था और कालिख पोत दी थी। बुत्त को जूतों की माला भी पहनाई गई थी। तभी पुलिस आ गई और फायरिंग में कई लोग घायल हो गए। सभी घायलों को सर गंगाराम अस्पताल में ही भरती कराया गया। यानि उन सबको उसी शख्स की स्मृति में बने अस्पताल में जान बचानी पड़ी जिसके खिलाफ वे प्रदर्शन कर रहे थे। बाद में प्रतिमा को अस्पताल के प्रांगण में ही स्थापित किया गया और उस रोड को अभी तक सर गंगाराम रोड ही कहा जाता रहा है।

अपनी ही ज़मीन पर लाहौर में 'सर गंगाराम अस्पताल का निर्माण कराया था और 76 वर्ष की उम्र में वर्ष 1927 में लंदन के एक अस्पताल में अंतिम सांस ली थी, वहीं पर उनका अंतिम संस्कार हुआ और बाद में उनकी अस्थियों को लाहौर में रावी व हरिद्वार में गंगा के प्रवाह में विसर्जित किया गया था। वहां आज भी एक रोड 'सर गंगाराम रोड कहलाती है। अस्थियों के कुछ अंश इस महान शख्स की समाधि की नींव में भी डाले गए थे। बाद में तंगदिल कट्टरपंथियों ने सड़क, अस्पताल व अन्य संस्थानों से भी उनका नाम हटाने की कई बार कोशिशें की लेकिन सरकारी तंत्र भी ऐसी कोशिशों को कुचलने के लिए लगा रहा। मुझे याद है लाहौर की पिछली यात्रा पर 'सर गंगाराम रोड पर जनाब कतील शफाई ने मेरे साथ सैर करते-करते कहा था या यह 'बनियां तो अब भी लाहौर की रूह का एक हिस्सा बना हुआ है। विभाजन के बाद इनका परिवार दिल्ली में आकर बस गया था। उनकी एक पौत्री इस समय 'हाऊस आफ लार्ड्स की सदस्या है जबकि प्रपौत्री अमेरिका में एक स्टेट की सीनेटर है। वहां गंगापुर गांव बसाने के लिए सर गंगाराम की ज़मीनें भी ब्रिटिश सरकार ने आबंटित की थी। यहां पर भी उस दूरदर्शी शख्स ने बिजली, पानी की अपनी निजी कंपनी स्थापित की और सड़कें भी स्वयं बनाई। उन दिनों में जल-निकासी की योजना भी वहां लागू की। तत्कालीन पंजाबी गवर्नर सर एडवर्ड डगलस मक्जगन ने 1920 को इस गांव को देखने के बाद कहा था कि यह किसी एक ही शख्स का करिश्मा है, इस पर यकीन नहीं होता।

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