सड़क पर नमाज और इस्लामी कानून
अभी बीते जुम्मे को दिल्ली के इंद्रलोक क्षेत्र में लोग सड़क पर नमाज़ अदा कर रहे थे तो एक पुलिस वाले ने बीच नमाज़ में सजदा करते एक व्यक्ति को लात मार दी, जिस पर मुस्लिम संप्रदाय में काफ़ी रोष दिखाई दिया। यह ठीक है कि इस्लाम में सड़क पर नमाज अमान्य है, मगर इसका यह अर्थ भी नहीं कि नमाज़ के दौरान जब कोई सजदा कर रहा हो तो उसे बेदर्दी से लात मार दी जाए। यह विडियो वायरल हो गया है और टूल किट वाले अपने धंधे में लगे हैं।
एक बार का क़िस्सा है िक जब वह एक ट्रेन में उज्जैन जा रहे थे जिसमें हरी पगड़ी में सुसज्जित, सिलसिला-ए-कादरिया के कुछ आलिम भी यात्रा कर रहे थे। जब असर की नमाज़ का समय हुआ तो इन उलेमा ने दो सीटों के बीच और ट्रेन के डिब्बे के आम रास्ते पर अपनी सफ़ (पंक्ति) बना कर नमाज़ पढ़नी शुरू कर दी जिससे ट्रेन की पैंट्री के लोग और आम जनता का रास्ता रुक गया। लगभग 7-8 मिनट तक ये लोग बड़े मान-सम्मान से प्रतीक्षा करते रहे। कोई कुछ भी नहीं बोला। दिल्ली के पुलिस वाले की तरह इन्होंने कोई ऐसी हरकत नहीं की। सभी ने इस बात का मान रखा कि ये मुस्लिम अपने आराध्य की साधना में तल्लीन हैं। मगर इस्लाम की आचार संहिता के अनुसार सड़क पर नमाज़ गैर इस्लामी है।
इसका सीधा कारण है कि किसी मुसाफिर को कष्ट न हो। दूसरी बात यह कि नमाज़ एक साफ-सुथरी जगह पर ही हो सकती है, नापाक सड़क पर नहीं। यादि मस्जिद के बाहर सड़क अथवा किसी अन्य स्थान पर नमाज पढ़नी होती है तो उसके लिए मालिक या संस्थान की आज्ञा लेना आवश्यक है। ऐसा नहीं कि कहीं भी खड़े हो कर नमाज़ पढ़ लें। यदि मस्जिद किसी भी विवादित स्थान पर निर्मित की गई है, जहां पहले कोई मंदिर था जैसा कि राम मंदिर, तो वहां से अल्लाह नमाज नहीं कुबूल करता। वास्तव में हर सिक्के के दो पहलू होते हैं और इस समस्या में भी ऐसा ही है। भारत में आम तौर से जुम्मे, जुमातुल विदा, ईद, बकरा ईद या किसी की नमाज़-ए-जनाजा के अवसरों पर सड़क पर नमाज़ इसलिए पढ़ते हैं कि उन्हें मस्जिदों में स्थान नहीं मिलता। ऐसा करने पर उन्हें इस बात का ध्यान नहीं रहता कि वे एक आम रास्ते पर बाधा बन रहे हैं, जिसकी इस्लाम में कोई गुंजाइश नहीं।
हां यदि नमाज़ी बड़ी संख्या में हैं तो शरियत इस बात की इजाज़त देती है कि उसी मस्जिद में दो या तीन बार नमाज़ की अनुमति है जिससे सभी की नमाज़ हो जाती है। पाकिस्तान की नामचीन संपादिका, आरज़ू काजमी का मानना है कि किसी भी अरब देश या पाकिस्तान तक में भी सड़क पर नमाज नहीं पढ़ सकते हैं क्योंिक यह नमाज अल्लाह को भी कबूल ही नहीं होती है, ये सारा खेल केवल उन देशों में ही होता है जहां लोगों को इस्लाम के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं होती है, जैसे भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश आदि। वैसे अरब देश जैसे सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, कतर, कुवैत आदि में तो अज़ान के समय लाऊड स्पीकर पर अजान नहीं की जाती। सड़क पर नमाज़ की इजाज़त नहीं।
दिल्ली वाली घटना के बारे में कहा गया है कि पहले पुलिस ने नमाजियों को समझाने का यत्न किया कि सड़क पर नमाज़ न पढ़ो, मगर वे माने नहीं। फिर भी पुलिस वालों को कदाचित नमाजियों के साथ ऐसा अभद्र व्यवहार नहीं करना चाहिए। अगर नमाज़ी नहीं माने तो पुलिस वालों को नमाज़ के अंत में उनको एक-एक गुलाब का फूल देकर प्यार से समझा देना चाहिए था कि अगले जुम्मे से सड़क पर नमाज़ न पढ़ें। वैसे मस्जिद और नमाज़ के विषय में कुरान और हदीस में सफाई से कहा गया है कि पांच वक्त की नमाज़ अति आवश्यक है और जिस मस्जिद में पढ़ी जाए वह भी अविवादित स्थान पर बनी हो, न कि बाबरी मस्ज़िद की तरह। यादि इस स्थान को कोर्ट द्वारा सुलटाए जाने के, आपसी राय-मशवरे और प्यार-मुहब्बत द्वारा सुलझा लिया जाता तो सदियों की हिंदू-मुस्लिम रंजिश और गिले-शिकवे मिट जाते। अब भारत वासियों को हिंदू-मुस्लिम मकड़ जाल से आज़ाद हो कर देश को जगत गुरु बनाने की राह पर चलना होगा।
- फ़िरोज़ बख्त अहमद