पटियाला में छात्र आन्दोलन
भारत की उच्च स्तरीय शिक्षा प्रणाली में विश्वविद्यालय स्तर पर कुलपति की भूमिका छात्र-छात्राओं सहित प्रोफेसरों के एेसे संरक्षक की होती है जो उनके सभी मानवीय व शिक्षागत अधिकारों का संरक्षक होता है। कुलपति विश्वविद्यालय के प्रशासन के लिए भी पूरी तरह जिम्मेदार होता है और विश्वविद्यालय परिसर में छात्रों व अध्यापकों के बीच सौहार्दपूर्ण सम्बन्धों के प्रति भी उसकी व्यापक जिम्मेदारी होती है। कुलपति यह कार्य प्रशासन के विभिन्न प्रखंडों व संभागों को दक्षतापूर्वक संचालित करते हुए करता है। इसका यह तात्पर्य कभी नहीं होता कि वह सीधे ही छात्रों के मामलों में दखल देकर उन पर अपनी मान्यताएं लाद कर नैतिकता का पाठ पढ़ाने लगे। भारत में एक से बढ़कर एक विचारक व राजनैतिक नेता भी विश्वविद्यालयों के कुलपति रहे हैं। एेसे लोगों ने कभी भी सीधे छात्रों के साथ मुठभेड़ का रास्ता नहीं अपनाया और अपनी प्रशासनिक क्षमता के माध्यम से अपने विश्वविद्यालयों में अनुशासन को बनाकर रखा। एेसे विशिष्ट कुलपतियों में आचार्य नरेन्द्र देव का नाम विशेष रूप से लिया जा सकता है जो स्वतन्त्रता सेनानी होने के साथ-साथ एक समाजवादी चिन्तक भी थे। वह आजादी के बाद लखनऊ विश्वविद्यालय के कुलपति रहे। विश्वविद्यालय का प्रत्येक छात्र उनका सम्मान करता था और आचार्य जी के शब्दों को पत्थर की लकीर समझता था।
बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के कुलपति डा. कालू लाल श्रीमाली केन्द्र की सरकार में शिक्षामन्त्री भी हुए। जनसंघ के संस्थापक डा. श्यामा प्रशाद मुखर्जी स्वयं अंग्रेजी राज के दौरान कोलकाता विश्वविद्यालय के कुलपति रहे। उस समय वह देश के सबसे युवा कुलपति हुआ करते थे। इन लोगों ने कभी भी छात्रों के निजी मामलों में दखल देने का प्रयास नहीं किया और जो भी अनुशासन का काम वह अपने विश्वविद्यालयों में कराना चाहते थे उसे उन्होंने सम्बद्ध संभागों के प्रमुखों की मार्फत कराया। मगर क्या गजब हुआ कि पंजाब के पटियाला शहर स्थित राजीव गांधी नेशनल यूनिवर्सिटी आॅफ लाॅ (राजीव गांधी राष्ट्रीय विधिविश्वविद्यालय) के कुलपति श्री जय शंकर सिंह विश्वविद्यालय परिसर में स्थित महिला छात्रावास का मुआयना करने रविवार के दिन दोपहर बाद साढे़ तीन बजे पहुंच गये और उन्होंने छात्राओं की रविवार की छुट्टी के दिन उनकी निजी जीवन शैली का निरीक्षण किया। कुलपति जयशंकर सिंह का कहना है कि उन्हें शिकायत मिली थी कि महिला छात्रावास में छात्राएं धूम्रपान व मदिरा पान करती हैं। वह एेसी छात्राओं की पहचान करने गये थे। कानून की पढ़ाई करने वाली छात्राएं कोई किशोरियां नहीं होती हैं कि उन्हें खान-पान के बारे में नैतिक शिक्षा दी जाये। ये सब युवतियां होती हैं जिनके कमरे में भारतीय घरों में पिता भी बिना सूचना के प्रवेश नहीं करता है। मगर श्री सिंह को मदिरा व धूम्रपान करने वाली छात्राओं की इतनी चिन्ता हुई कि वह छुट्टी के दिन ही बिना सूचना दिये हाॅस्टल के कमरों का निरीक्षण करने पहुंच गये। यह सरासर महिला अपमान का मामला है और एेसे कुलपति को एक क्षण के लिए भी अपने पद पर बने रहने का अधिकार नहीं है। जिस भारतीयता और संस्कृति का पाठ छात्राओं को पढ़ाने कुलपति महोदय गये थे उस पाठ को पहले उन्हें खुद ही पढ़ना चाहिए था। विश्वविद्यालय के प्रत्येक हाॅस्टल में एक वार्डन होता है। यह वार्डन विश्वविद्यालय का कोई प्रोफेसर ही होता है। यह उसकी मुख्य जिम्मेदारी होती है कि वह अपने हाॅस्टल में नियम-कायदे लागू रखे और यदि कोई छात्र या छात्रा हाॅस्टल के नियमों का उल्लंघन करता है तो उसके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई करे। मगर यह कहां का नियम है कि कुलपति स्वयं ही उठ कर छात्राओं के हाॅस्टल का मुआयना बिना किसी पूर्व सूचना के ही कर दे। एेसा करके श्री सिंह ने छात्राओं की ‘निजता’ पर हमला किया है और भारत की प्रत्येक वयस्क महिला को मिले निजता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन किया है। अतः विश्वविद्यालय के सभी छात्र-छात्राएं इस घटना के बाद से आन्दोलरत हैं और कुलपति के इस्तीफे की मांग कर रहे हैं। विश्वविद्यालय की छात्राओं की यह मांग पूरी तरह जायज है कि क्योंकि विश्वविद्यालय परिसर के भीतर ही महिला अस्मिता पर हमला किया गया है।
विश्वविद्यालय को विगत सोमवार को अनिश्चितकाल के लिए बन्द कर दिया है। विश्वविद्यालयों में रविवार का दिन छुट्टी का दिन होता है और इस दिन छात्र-छात्राएं हाॅस्टल में बहुत ही सामान्य जीवन शैली व वेशभूषा में रहते हैं। इस दिन कुलपति का दोपहर बाद साढे़ तीन बजे अचानक हाॅस्टल के कमरों का निरीक्षण करना सामान्य घटना नहीं कही जा सकती। इससे यह भी अन्दाजा लगाया जा सकता है कि कुलपति महोदय को लोकलाज का ध्यान बिल्कुल भी नहीं था और वह अपने पद की अकड़ में छात्राओं के निजी जीवन में झांकना चाहते थे। जबकि महिला छात्रावासों का यह नियम होता है कि उनके कमरों में कोई भी पुरुष प्रवेश नहीं करेगा चाहे उसके साथ कोई महिला अध्यापक या गार्ड ही क्यों न हो। अतः सबसे पहले नियम तो खुद कुलपति महोदय ने ही तोड़ा। इतना ही नहीं श्री सिंह ने कुछ छात्राओं की वेशभूषा को लेकर भी टिप्पणियां कीं। यह सब बताता है कि कुलपति महोदय की मानसिक स्थिति क्या है और वह महिला के सम्मान की कितनी परवाह करते हैं। छात्रों ने इसकी शिकायत पंजाब-हरियाणा उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से की है जो कि विश्वविद्यालय के पदेन कुलाधिपति हैं।