सुनीता विलियम्स का धरती पर इंतजार
Sunita Williams waiting on earth : अंतरिक्ष के रहस्यों को जानने के लिए मनुष्य हमेशा जिज्ञासु रहा है। जान जोखिम में डालकर भी वह रहस्य खोलने को तत्पर रहता है। भारतीय मूल की कल्पना चावला अंतरिक्ष में हुए हादसे में ही अंतरिक्ष में ही विलीन हो गई थी। भारत की बेटी पर देशवासियों को हमेशा गर्व रहा है। अब दुनियाभर की नजरें भारतीय मूल की अंतरिक्ष यात्री सुनीता विलियम्स की ओर लगी हुई हैं। हर कोई धरती पर उसकी सुरक्षित वापसी को लेकर दुआएं कर रहा है। बोइंग के स्टारलाइनर अंतरिक्ष यान में सवार होकर इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन जाने वाली अंतरिक्ष यात्री सुनीता विलियम्स की वापसी के लिए नासा अच्छी खासी मशक्कत कर रहा है।
सितम्बर 2007 में विलियम्स भारत आई थी। भारत में वह साबरमती आश्रम भी गयी और अपने गांव झुलसान (गुजरात) भी गयी। वहां गुजरात सोसाइटी ने उन्हें सरदार वल्लभभाई पटेल विश्व प्रतिभा अवार्ड से सम्मानित किया। और वह पहली ऐसी महिला बनी जिन्होंने विदेश में रहते हुए इस पुरस्कार को हासिल किया। 4 अक्तूबर 2007 को विलियम्स ने अमेरिकी एम्बेसी स्कूल में भाषण दिया और वही उनकी मुलाकात भारत के पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से हुई। सन् 1987 में सुनीता विलियम्स को अमेरिकी सेना में कमीशन प्राप्त हुआ। लगभग 6 महीने की अस्थायी नियुक्ति के बाद उन्हें ‘बेसिक डाइविंग ऑफिसर’ का पद दिया गया। सन् 1989 में उन्हें ‘नेवल एयर ट्रेनिंग कमांड भेज दिया गया जहां ‘नेवल एविएटर नियुक्त किया गया। इसके पश्चात उन्होंने ‘हैलीकाप्टर कॉम्बैट सपोर्ट स्क्वाड्रन’ में ट्रेनिंग ली और कई विदेशी स्थानों पर तैनात हुईं। भूमध्यसागर, रेड सी और पर्शियन गल्फ में उन्होंने ‘ऑपरेशन डेजर्ट शील्ड’ और ‘ऑपरेशन प्रोवाइड कम्फर्ट’ के दौरान कार्य किया।
नासा का कहना है कि वह फंसी नहीं हैं लेकिन हाल ही में अंतरिक्ष में एक हादसा देखने को मिला था जिससे अंतरिक्ष स्पेश स्टेशन (आईएसएस) में मौजूद सभी अंतरिक्ष यात्रियों की जान पर बन आई। इन्हें स्पेस स्टेशन में ही शेल्टर लेना पड़ा। दरअसल रूस की एक खराब सैटेलाइट स्पेस में फट गई थी, जिसका मलबा अंतरिक्ष यात्रियों के साथ-साथ 150 बिलियन डॉलर वाले आईएसएस के लिए भी खतरा बन गया था। इससे साबित हो गया कि अंतरिक्ष से जुड़ी खोज इतनी आसान नहीं है। इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन हमारी पृथ्वी की सतह से 400 किमी की ऊंचाई पर धरती का चक्कर लगाता रहता है। इसमें अंतरिक्ष यात्री शोध करते हैं। लेकिन रूसी सैटेलाइट के फटने के बाद इसे मलबे से बचने के लिए दिशा और ऊंचाई बदलनी पड़ी थी। लेकिन यह घटना अकेली नहीं है। आईएसएस को अंतरिक्ष मलबे से बचने के लिए 32 बार अपनी स्थिति बदलनी पड़ी है। यही नहीं लगभग 6000 टन सामग्री लो अर्थ ऑर्बिट में घूम रही है। समस्या कम होने का कोई संकेत नहीं है।
नासा ने अब तक अंतरिक्ष यात्रियों की वापसी की कोई तारीख नहीं बताई है, मगर ये कहा है कि वे सुरक्षित हैं। नासा के वाणिज्यिक चालक दल कार्यक्रम प्रबंधक स्टीव स्टिच ने कहा, "हमें वापस लौटने की कोई जल्दी नहीं है।" नासा और बोइंग का स्टारलाइनर स्पेसक्राफ्ट आखिर वापस कब आएगा, ये अब भी सवाल बना हुआ है।
दरअसल, जिस स्पेस कैप्सूल से दोनों अंतरिक्ष यात्री गए हैं उन्हें स्टारलाइनर क्रू फ्लाइट टेस्ट स्पेसक्राफ्ट कहा जाता है जो एक स्पेस कैप्सूल है। इस स्पेस कैप्सूल को बोइंग कंपनी ने इस स्टारलाइनर को नासा के कमर्शियल क्रू प्रोग्राम के साथ मिलकर बनाया है। ये कैप्सूल अंतरिक्ष में यात्रियों को लो-अर्थ ऑर्बिट तक ले जाने के लिए तैयार किया गया है। बता दें कि लो-अर्थ ऑर्बिट का दायरा धरती से करीब 2000 किमी ऊपर तक का होता है। इस कैप्सूल को 10 बार तक इस्तेमाल किया जा सकता है और हर बार इस्तेमाल करने के बाद इसे दोबारा तैयार करने में सिर्फ छह महीने का वक्त लगता है।
दोनों अंतरिक्ष यात्रियों को वापस लाने में देरी इसलिए हो रही है क्योंकि बोइंग और अंतरिक्ष एजेंसी नासा न्यू मैक्सिको में कुछ रिसर्च और टेस्ट करना चाहते हैं। इससे वो ये समझने की कोशिश कर रहे हैं कि आखिर अंतरिक्ष यात्रा के दौरान स्टारलाइनर के कुछ थ्रस्टर अचानक खराब कैसे हो गए। पांच थ्रस्टरों में से चार को तो बाद में ठीक कर लिया गया है लेकिन एक अब तक खराब है और पूरे मिशन में काम नहीं करेगा। वापसी के वक्त सर्विस मॉड्यूल का कुछ हिस्सा जलकर नष्ट हो जाएगा। सुनीता विलियम्स स्पेश स्टेशन की सफाई करने में लगी हुई है और अंतरिक्ष में अलग-अलग प्रयोग कर रही है। विलियम्स और िबल्लमोर अंतरिक्ष वनस्पति प्रयोगों का अध्ययन कर रहे हैं और हेवीटेट ग्रोथ चैम्बर के कैमरों और सैंसरों को बदल रहे हैं। उम्मीद की जानी चाहिए कि नासा के वैज्ञानिक दोनों को धरती पर सुरक्षित वापिस लाने में कामयाब होंगे।