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संसद में चाहिए व्यवस्थित बहस

04:58 AM Jul 07, 2024 IST
संसद में चाहिए व्यवस्थित बहस

सत्ता पक्ष और मुख्य विपक्षी कांग्रेस पार्टी के बीच संसद के अंदर और बाहर टकराव से फिलहाल राहत नहीं मिलने वाली है। संसद और सरकार को सुचारू रूप से चलाने के लिए आवश्यक न्यूनतम सहयोग भी कठिन लगता है। दोनों पक्ष एक-दूसरे का जमकर विरोध करने के अपने तरीकों में इतने व्यस्त हैं कि नवगठित 18वीं लोकसभा में मोदी के नेतृत्व वाली सत्ताधारी पार्टी और राहुल गांधी के नेतृत्व वाले इंडिया गठबंधन के बीच तीव्र कटुता और शत्रुता देखने को मिल सकती है। बीच का रास्ता खोजना व्यर्थ साबित होगा, क्योंकि न तो मोदी और न ही राहुल राष्ट्रीय राजनीति में तनाव कम करने के लिए समझौते को तैयार हैं। दोनों नेता इस बात पर जोर देते हैं कि वे दुश्मन नहीं हैं, बल्कि केवल राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी हैं लेकिन उनकी वास्तविक हरकतें कुछ और ही बयां करती हैं।

हाल ही में संपन्न 18वीं लोकसभा के पहले सत्र, जो मंगलवार को समाप्त हुआ, ने राजनीतिक विमर्श में सभ्यता लौटने की कोई उम्मीद नहीं दिखाई। सत्ताधारी दल के सदस्य और कांग्रेस पार्टी के सदस्य, दोनों एक-दूसरे की छवि खराब करने के लिए झूठ और अर्धसत्य में लगे रहे। ऐसा लग रहा था मानों उनके लिए चुनाव अभी खत्म नहीं हुआ है। उनके भाषणों से पता चलता है कि वे चुनावी मोड में थे और कैंपेन के दौरान सुने गए आरोपों और प्रत्यारोपों को दोहरा रहे थे। जो हालिया लोकसभा चुनाव में उनके अभियान का मुख्य मुद्दा था। सत्तापक्ष और विपक्ष के सदस्यों को देखकर लगा कि वह यह तथ्य स्वीकार करने को तैयार नहीं थे कि चुनाव खत्म हो चुका है और सामान्य स्थिति में अगले पांच वर्षों तक कोई चुनाव नहीं होगा।

चुनाव पूर्व टकराव और विरोध बदस्तूर जारी है। इससे सत्ताधारी दल और मुख्य विपक्ष के बीच अगले पांच वर्षों तक रिश्ते कड़वे और टूटे रहेंगे। भले ही अक्खड़ राहुल गांधी ने मित्रता का प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया हो, मोदी ने विपक्ष के नवनियुक्त नेता को एक ऐसे राजनीतिक वंश के कड़वे और हकदार वंशज के रूप में दिखाया होगा जो अपनी बहुत ही कम परिस्थितियों के प्रति असहमत है। हालांकि एक दिन बाद जब प्रधानमंत्री मोदी ने राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर बहस का जवाब दिया तो विशेष रूप से कांग्रेस ने शोर-शराबा जारी रखा, लगातार टीका-टिप्पणी की और लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला द्वारा बार-बार अनुरोध करने के बावजूद सदन के वेल में चले गए। इससे भी बुरी बात यह है कि जब भी चीख-पुकार थोड़ी कम होती दिखी तो राहुल गांधी ने उन्हें खुले तौर पर पीएम के भाषण को और अधिक जोश के साथ बाधित करने का इशारा किया। यदि विपक्षी बेंचों पर अधिक संख्या से उनका तात्पर्य अधिक व्यवधान और अव्यवस्था से था तो संसदीय लोकतंत्र को भगवान ही बचाए।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रपति के धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा का जवाब देते हुए राहुल गांधी पर जमकर निशाना साधा। उन्होंने राहुल गांधी पर सशस्त्र बलों में भर्ती के लिए अग्निवीर योजना को धूमिल करने, सशस्त्र बलों के मनोबल को कमजोर करने जैसे आरोप लगाए। साथ ही नीट परीक्षा प्रणाली सिस्टम पर सरकार को निशाने बनाए जाने के लिए राहुल गांधी की मजाकिया अंदाज में चुटकी लेते हुए उन्हें 'बालक बुद्धि', बचकाना और परजीवी तक करार दे दिया। दरअसल कांग्रेस ने अपने दम पर भाजपा के खिलाफ चुनाव लड़ते हुए केवल 26 फीसदी सीटें जीतीं, जबकि सहयोगियों के कंधों पर सवार होकर उसका स्ट्राइक रेट करीब 50 फीसदी रहा। दूसरे शब्दों में कहें तो चाहे यूपी हो या महाराष्ट्र, कांग्रेस की जीत उसके सहयोगियों के कारण हुई।

नतीजे आने के बाद राहुल गांधी की खुशी पर तंज कसते हुए मोदी ने कहा कि वह उस लड़के की तरह हैं जिसने कुल 543 में से 99 अंक हासिल किए थे और फिर भी खुशी से उछल पड़ा हो जैसे कि उसने कक्षा में टॉप किया हो। इतना ही नहीं इसके एक दिन बाद राज्यसभा में भी राष्ट्रपति के धन्यवाद प्रस्ताव पर बोलते हुए पीएम मोदी का रुख बेहद आक्रामक था, जिस पर विपक्ष ने भी बिना किसी रुकावट के पीएम की बात सुनने से इन्कार कर दिया और उन्होंने सभापति से स्थगन और सवाल करने की इजाजत मांगी। कुल मिलाकर नई इमारत में नई संसद का संक्षिप्त पहला सत्र हमारे राजनीतिक विमर्श के लिए बुरा संकेत है।

इससे पहले कि टकराव और कड़वाहट चर्म पर पहुंचे, सभी दलों के नेताओं को चिंतन करने की जरूरत है। राष्ट्र की भलाई के लिए प्रतिद्वंद्वी विरोधियों के बीच कटुता और संघर्ष को सभ्य बातचीत के लिए रास्ता बनाना चाहिए। चुनावों के बीच संसद को देश के सामने आने वाले प्रमुख मुद्दों पर शांत विचार-विमर्श का स्थान बनाना चाहिए। सरकार के विधायी एजेंडे पर चर्चा और बहस करना साथ ही विपक्ष की चिंताओं को समायोजित करना संसदीय लोकतंत्र में आदर्श बनना चाहिए। सदस्यों द्वारा एक-दूसरे पर चिल्लाने के लिए संसद को मछली बाजार में तब्दील करना उन्हें शोभा नहीं देता है। अत: सुशासन के लिए हमें
संसद के दोनों सदनों में व्यवस्थित बहस करनी चाहिए।

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Shivam Kumar Jha

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