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Terrorism in Kashmir: कश्मीर में आतंकवाद

06:17 AM Jul 10, 2024 IST
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Terrorism in Kashmir: जम्मू-कश्मीर राज्य में जिस तरह से आतंकवादी घटनाएं घट रही हैं उसे देखकर यही कहा जा सकता कि सीमा पार से आतंकी घुसपैठियों का आना जारी है। अमन और शान्ति अभी भी इस राज्य में ‘गूलर का फूल’ है। पाकिस्तान की सीमा पार से अभी भी दहशतगर्दों का आना जारी है। इस केन्द्र प्रशासित राज्य की एेसी स्थिति शोचनीय है। भारतीय सेना के ठिकानों पर जिस तरह हमले हो रहे हैं उसे देख कर यही लगता है कि पाक अधिकृत कश्मीर में आतंकी शिविर चल रहे हैं उनमें दहशतगर्दों को प्रशिक्षण दिया जाना जारी है। राज्य का विशेष दर्जा समाप्त हुए कई वर्ष बीत चुके हैं मगर इसके बावजूद पाक आतंकी इस राज्य में घुस आते हैं और हमारी सेनाओं को क्षति पहुंचाते हैं। राज्य के जम्मू इलाके के कठुआ जिले के भीतर एक गांव के निकट जिस तरह सैनिक टुकड़ी के वाहनों पर दिन के उजाले में ही दोपहर तीन बजे के लगभग हमला किया गया उसमें भारत के पांच रणबांकुरे सैनिकों की शहादत हो गई और पांच गंभीर रूप से घायल हो गये। केवल दो दिनों के भीतर ही सेना पर यह दूसरा हमला किया गया।

विगत रविवार को भी आतंकवादियों ने राजौरी जिले में स्थित एक सैनिक चौकी पर हमला किया था जिसमें एक सैनिक घायल हो गया था। अगर 72 घंटे के भीतर आतंकी हमले की यह तीसरी वारदात है तो कहा जा सकता है कि पाकिस्तान अपनी जमीन का इस्तेमाल आतंकवादियों के लिए कर रहा है और यह मुल्क दहशतगर्दों की सैरगाह बना हुआ है। दरअसल पाकिस्तान खड़ा ही हुआ है नफरत की बुनियाद पर, अतः इससे प्रेम की अपेक्षा करना हिंसक भेड़िये के शाकाहारी हो जाने जैसा ही है। इसके साथ ही यह भी स्पष्ट है कि पाकिस्तान एक आतंकवादी देश घोषित होने की तरफ बढ़ रहा है। यदि यह आतंकवादी शिविरों को समाप्त नहीं कर सकता तो जाहिराना तौर पर आतंकवाद इसकी विदेश नीति का एक अंग बना हुआ है। भारत ने इसके प्रमाण तभी दे दिये थे जब 26 नवम्बर, 2008 को पाकिस्तान से आये आतंकवादियों ने मुम्बई में हमला करके कत्लोगारत किया था। यह हमला इतना बड़ा था कि इसने तत्कालीन गृहमन्त्री श्री शिवराज पाटिल को इस्तीफा देने के लिए मजबूर कर दिया था। तभी भारत ने राष्ट्रसंघ में पाकिस्तान को दहशतगर्द मुल्कों की श्रेणी में लाने के लिए जोरदार कदम उठाया था। उस समय देश के विदेश मन्त्री भारत रत्न स्व. प्रणव मुखर्जी थे। वह डा. मनमोहन सिंह की सरकार थी। तब श्री प्रणव मुखर्जी ने मुम्बई हमले का प्रतिकार यह किया था कि दुनिया के सभी इस्लामी मुल्कों के बीच ही पाकिस्तान को पूरी तरह अकेला कर दिया था और उस पर आतंकवादी देश घोषित किये जाने की तलवार लटक गई थी।

भारत की इस रणनीति को तब कूटनीतिक विजय के रूप में देखा गया था और पाकिस्तान को तब कई दहशतगर्द तंजीमों पर प्रतिबन्ध लगाना पड़ा था। प्रणव दा ने तब एक कूटनीतिक चाल यह भी चली थी कि केरल मुस्लिम लीग के अपने सहायक मन्त्री को राष्ट्रसंघ में भेजा था और मांग की थी कि पाकिस्तान अपने कब्जे वाले कश्मीर के इलाकों में चल रहे प्रशिक्षण शिविरों की पहचान करे और उन्हें नष्ट करे तथा नाम बदल कर पुनः सक्रिय होने वाली तंजीमों को इसके घेरे में ले। वर्तमान समय में जिस तरह पाक आतंकवादी भारतीय सैनिकों को निशाना बना रहे हैं उससे यह प्रश्न खड़ा होता है कि क्या भारत की वर्तमान मोदी सरकार भी वही रास्ता अपनायेगी जो स्व. प्रणव दा ने अपनाया था। भारत ने जम्मू-कश्मीर राज्य का विशेष दर्जा खत्म करके सोचा था कि इससे राज्य में शान्ति व सद्भावना कायम होगी और कश्मीरियों को वे पूरे अधिकार मिलेंगे जो नागरिकों के लिए संविधान में हैं। इसका असर तो हुआ है क्योंकि हाल ही सम्पन्न लोकसभा चुनावों में कश्मीरियों ने शेष भारत के नागरिकों की तरह बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। मगर पाकिस्तान इस बदलाव से इस तरह बौखलाया कि उसने भारत में आतंकियों की घुसपैठ कराने के लिए नये रास्ते खोज लिये। कठुवा की हिंसा की जिम्मेदारी पाकिस्तान के आतंकी संगठन जैश-ए- मोहम्मद से जुड़ी तंजीम कश्मीरी टाइगर्स ने ली है। पाक आतंकवादियों ने अपनी हरकतों के लिए अब जम्मू क्षेत्र को चुना है। इस क्षेत्र से जुड़ती सीमा रेखा से ही अब घुसपैठिये ज्यादा आते हैं।

सवाल यह है कि सैनिकों पर हमला कोई मामूली घटना नहीं होती। यह देश की प्रभुसत्ता पर हमला माना जाता है मगर पाकिस्तान इसे गैर सरकारी संगठनों का कृत्य बता कर पल्ला झाड़ लेता है। भारत सरकार को नामुराद पाकिस्तान की इस रणनीति को समझना होगा और तद्नुसार प्रतिक्रिया देनी होगी। 2008 की मुम्बई हमले की घटना के बाद तत्कालीन विदेश सचिव ने साफ कह दिया था कि पाकिस्तान ने दहशतगर्दी को अपनी विदेश नीति का अंग बना लिया है। बाद में खुद पाकिस्तान के राष्ट्रपति रहे जनरल परवेज मुशर्रफ ने स्वीकार किया कि आतंकवादी उनके ‘हीरो’ रहे हैं। इससे स्पष्ट है कि जम्मू-कश्मीर में भारत के सैनिकों पर जो सिलसिलेवार हमले हो रहे हैं उनके पीछे पाकिस्तान की हुक्मरानों की मंशा छिपी हुई है। निश्चित रूप से भारत की यह नीति गलत नहीं है कि पाकिस्तान से तभी बातचीत होगी जब वह आतंकवाद को समाप्त कर दे। मगर पाक की ये दहशतगर्द तंजीमें अब खुद पाकिस्तान के लिए भी सिरदर्द बनी हुई हैं क्योंकि उसके अपने शहरों में भी ये तंजीमें अब दहशतगर्दी फैला रही हैं और सरकार को चुनौती भी देती रहती हैं। 72 घंटों के भीतर आतंकवादी वारदातों के अलावा पिछले जून महीने में भी तीन आतंकी घटनाएं हुईं। 9 जून को शिवखोड़ी धार्मिक स्थल से भरी नागरिकों की एक बस को निशाना बनाया गया। जिसमें नौ व्यक्तियों की मृत्यु हुई। 11 जून को एक चैकपोस्ट पर हमला किया गया जिसमें छह सैनिक घायल हो गये थे। 26 जून को डोडा जिले में सुरक्षा बलों व आतंकियों के बीच हुई मुठभेड़ में तीन आतंकवादी हलाक हो गये थे।

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