अंधविश्वास का खूनी खेल
अंधविश्वास समाज में फैला ऐसा रोग है जिसने समाज की नींव खोखली कर दी है। अंधविश्वास किसी जाति, समुदाय या वर्ग से संबंधित नहीं है, बल्कि हर किसी के अंदर विद्यमान है। ऐसा नहीं है कि अंधविश्वास केवल भारत में ही है। यह लगभग सभी देशों में है। अंधकार और मौत से सबको डर लगता है। सभी को सुख चाहिए दुख से सब डरते हैं। सबको धन-दौलत चाहिए। किसी को बीमारी से मुक्ति चाहिए तो किसी को संतान प्राप्ति की इच्छा। अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए जादू-टोना, भूत-प्रेत, आत्मा अवतरण आदि से संवाद और निदान के आडम्बर-प्रपंच की रचना की जाती है। जब भी समाज में गरीबी, बीमारी, बदहाली, बेरोजगारी इत्यादि को पूर्व जन्म के कर्मों और भाग्य से तोला जा रहा है तो लोगों की मानसिक स्थिति और आत्मविश्वास कैसे मजबूत हो सकता है। झूठी आस्था के नाम पर अंधविश्वास व्यापार बन चुका है। हैरानी की बात है कि जिस भारत में वैदिक विज्ञान की पढ़ाई होती रही और हम ज्ञान और सम्पदा में विश्व गुरु कहलाएं वह देश अंधविश्वास की गिरफ्त में कैसे फंस गया। छत्तीसगढ़ के आदिवासी बहुल जिले सुकमा के एक गांव में जादू-टोना करने के संदेह में दो दंपतियों और एक महिला की पीट-पीट कर हत्या कर दी। आरोपियों को शक था कि पीड़ित परिवार के जादू-टोना करने से उन पर आपदाएं आ रही हैं।
इससे पहले छत्तीसगढ़ के ही बालौदाबाजार के कसडोल में एक ही परिवार के चार लोगों की पड़ोसी परिवार ने कुल्हाड़ी से हमला कर हत्या दी। ऐसी वारदाताें की खबरें अन्य राज्यों से भी आती रहती हैं। कभी कोई संतान प्राप्ति के लिए छोटे बच्चों की बलि दे देता है तो कभी डायन होने के संदेह में महिलाओं को मार दिया जाता है। अंधविश्वास के प्रभाव से पढ़े-लिखे लोग भी अछूते नहीं हैं। तर्कवादी कहते हैं कि यह दुख की बात है कि एक ऐसा देश जहां विज्ञान इतना आगे बढ़ चुका है और अंतरिक्ष में सैटेलाइट तक भेजे जा रहे हैं, वहां इंसानों की बलि दी जाती है और बेमतलब के रीति-रिवाज माने जाते हैं। विश्वास और अंधविश्वास के बीच के अंतर के बारे में तर्कवादी कहते हैं, "अगर कोई रिवाज उसके पीछे के तर्क को लेकर सवाल उठाए बिना माना जाता है तो उसे अंधविश्वास कहते हैं। अगर कोई व्यक्ति रिवाज के पीछे के तर्क को परख नहीं पाता तो यह खतरनाक हो सकता है।" उन्हें लगता है कि हल्दी, मुर्गी, पत्थरों, संख्याओं और रंग जैसी चीजों को शक्तिशाली समझना अवैज्ञानिक है और इन्हें वैज्ञानिक कहे जाने के कारण कई जानें जाती हैं।
आज सड़कों, चौराहों और बस स्टैंडों पर बंगाली बाबा के पोस्टर और पर्चे आप को आसानी से मिल जाएंगे। तथाकथित तांत्रिकों ने अब तो अपनी वेबसाइट भी शुरू कर रखी है। वशीकरण जैसे शब्दों का इस्तेमाल करती कई वेबसाइटें आप को मिल जाएंगी जिनमें प्यार व जिंदगी से जुड़ी किसी समस्या को हल करने के दावे किए गए हैं। सवाल भी ईमेल के जरिए लिए जाते हैं और अपॉइंटमेंट लेनी हो तो भी ईमेल के जरिए। आप को उपाय तब बताया जाएगा जब आप उनके खाते में पैैसे डालते हैं। आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में जादू-टोने और काले जादू के शक में लोगों को मार देने के आंकड़े काफी हैरान कर देने वाले हैं। दार्शनिक और वैज्ञानिक कहते हैं कि जब राज्य धर्म को राज्य मंदिर मिलन परिसर के विचार के साथ मिला रहे हो तो यह समाज के लिए नुक्सानदेह हो सकता है। कौन नहीं जानता कि डाक्टर दभोलकर, गोिवंद पानसरे, एन.एम. कलबुर्गी की हत्याएं इसलिए की गई क्योंकि वे अंधविश्वास और तंत्र-मंत्र का विरोध कर रहे थे। समस्या यह भी है कि हमारे लोकतंत्र की जड़ों में भी तंत्र-मंत्र बसा हुआ है।
भारत में कई तथाकथित तांत्रिक भी हुए हैं जो सत्ता के काफी करीब रहे। राजनीतिक दलों के सर्वोच्च नेता भी उनकी शरण में जाते थे। चुनाव जीतने के लिए गोपनीय ढंग से बड़े-बड़े अनुष्ठान भी कराए जाते रहे हैं। ऐसी स्थिति में तांत्रिक बाबा सत्ता के समानांतर केन्द्र चलाने की हैसियत में भी पहुंचते रहे हैं। आज के बाबा बहुत आधुनिक हो चुके हैं। जो लोग अंधविश्वासी हाेते हैं उन्हें फंसाना इनके बाएं हाथ का काम है। आज के राजनीतिज्ञ भी ऐसे तथाकथित बाबाओं का गोपनीय ढंग से सहारा लेते हैं। कौन नहीं जानता कि वर्तमान में तंत्र-मंत्र का जाल फैलाने वाले बाबाओं ने पाॅवर, सैक्स, हथियार, मनी और पॉवर ब्रोकिंग का कॉकटेल बनाया हुआ है और बड़ी-बड़ी डील की जाती है। अब सवाल यह है कि अंधविश्वास के खूनी खेल पर कैसे रोक लगाई जाए। लगातार हो रही घटनाएं बार-बार इस बहस को हवा दे रही हैं कि भारत में एक राष्ट्रीय अंधविश्वास विरोधी कानून होना चाहिए। अंधविश्वासी प्रयासों पर रोक लगाने के लिए कर्नाटक और महाराष्ट्र तथा अन्य राज्यों ने कानून बना रखे हैं लेकिन यह कानून इतने प्रभावशाली नहीं हैं। राज्यों के कानून एक आधार प्रदान करते हैं जबकि एक राष्ट्रीय अंधविश्वास विरोधी कानून खतरनाक मान्यताओं को खत्म करने और लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए एकीकृत दृष्टिकोण प्रदान कर सकता है। यह भी सच है कि कोई भी कानून अपराधों को पूरी तरह से खत्म नहीं कर सकता लेकिन अंधविश्वास के नाम पर शोषण करने वालों को दंड दिलाने में सक्षम हो सकता है। समाज को खुद और अपने बच्चों काे वैज्ञानिक नजरिए से सोचना, सीखना चाहिए और जागरूकता फैलाने का काम करना चािहए ताकि भविष्य में िवश्वास अंधविश्वास में न बदल जाए।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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