The Burning Britain: द बर्निंग ब्रिटेन
कभी भारत समेत दुनिया पर शासन करने वाला द ग्रेट ब्रिटेन इन दिनों बर्निंग ब्रिटेन बन चुका है। ब्रिटेन के कई शहर दंगों की आग में झुलस रहे हैं। वहां रहने वाले लोग भी कह रहे हैं कि अब इस देश को पहचानना मुश्किल हो गया है। साउथ पोर्ट शहर में एक सप्ताह पहले तीन बच्चियों की हत्या के बाद शुरू हुआ बवाल थमने का नाम नहीं ले रहा। जिस नाबालिग ने डांस क्लास में चाकू से हमला करके तीन लड़कियों की हत्या की उसकी पहचान रवांडा मूल के एक्सेल रूदाकुवाना के तौर पर हुई है। इस हत्याकांड के बाद अफवाह फैल गई थी कि हत्यारा नाबालिग मुस्लिम शरणार्थी है। सोशल मीडिया पर भी दावा किया गया कि रूदाकुवाना एक अप्रवासी मुस्लिम था जो अवैध रूप से ब्रिटेन में आया था। यह खबर फैलते ही ब्रिटेन के अप्रवासियों के खिलाफ आक्रोश की लहर फैल गई। लीवरपूल, ब्रिस्टल, मैनचैस्टर, ब्लैकपूल और बेलफास्ट समेत कई शहरों में हिंसा शुरू हो गई। दक्षिणपंथी समूहों से झड़पों में कम से कम 100 लोगों को गिरफ्तार किया गया।
तोड़फोड़, आगजनी और पथराव की घटनाएं लगातार बढ़ती जा रही हैं। ब्रिटेन के लोगाें का हिंसक आपराधिक व्यवहार बहुत कम देखने को मिलता है लेकिन इस बार लोग ज्यादा ही आक्रोशित दिखाई दे रहे हैं। ब्रिटेन सरकार मुस्लिमों की सुरक्षा को लेकर चिंतित है वहीं मुस्लिम भी मस्जिदों में जाने से डर रहे हैं। पुलिस का दावा है कि हत्यारे का जन्म ब्रिटेन में हुआ और उसका परिवार ईसाई बताया जाता है। पिछले महीने जुलाई में भी लीड्स में दंगे हो गए थे तब पूरा बवाल एक चाइल्ड केयर एजैंसी और बच्चों को लेकर हुआ था। लोगों का आरोप था कि चाइल्ड केयर एजैंसी ने बच्चों को मां-बाप से अलग कर चाइल्ड केयर होम में रखा जिससे लोग नाराज हो गए और विवाद एक बड़े दंगे में तब्दील हो गया। दंगों का आरोप अल्पसंख्यकों पर लगाया गया। दंगों का पाकिस्तान से कनैक्शन भी जोड़ा गया। आरोप है कि लंदन के मेयर सादिक खान जो मूल रूप से पाकिस्तानी है और लीड्स के मुस्लिम कौंसलर का अल्पसंख्यकों को समर्थन प्राप्त था। अब जबकि यह स्पष्ट हो चुका है कि नाबालिग हत्यारे का इस्लाम से कोई संबंध नहीं है लेकिन प्रदर्शनकारी सड़कों पर आकर “बस बहुत हो गया, हमारे बच्चों को बचाओ, नावों को रोको” आदि नारे लगा रहे हैं।
लोग बार्डर बंद करने की मांग कर रहे हैं। विरोधी प्रदर्शनों के जवाब में नकाबपोश लोगों के िगरोह ब्रिटेन की सड़कों पर अल्लाहुअकबर कहते हुए घूम रहे हैं। इससे पता चलता है कि ब्रिटेन के लोगों में अप्रवासियों के खिलाफ कितना जबर्दस्त गुस्सा है। दरअसल दक्षिण अफ्रीका और खाड़ी देशों से भागकर लोग यूरोप पहुंच रहे हैं। यह समुद्री रास्तों से नावों में बैठकर आते हैं और यहां आकर अप्रवासी के तौर पर रहने लगते हैं। ब्रिटेन में पिछले कुछ वर्षों से इस्लाम का डर लगातार बढ़ता जा रहा है। यह मसला नस्लप्रस्तों और अल्पसंख्यकों का ही नहीं बल्कि समाज की तल्ख सच्चाई भी है। पिछले पांच वर्षों के दौरान हुए चरमपंथी हमलों में शामिल सारे लोग मुस्लिम ही थे। मुस्लिम नेताओं ने भी इन हमलों को लेकर कोई स्पष्ट रुख नहीं अपनाया बल्कि बेहद गैर जिम्मेदारी का परिचय दिया। इसी गैर जिम्मेदारी के कारण ब्रिटेन में इस्लामी फाेबिया फैलने लगा। अब स्थिति यह है कि इस्लाम का डर अब खुलकर सामने आ गया है। मुस्लमानों के खिलाफ पूर्वाग्रह समाज में काफी हद तक स्वीकार्य बन चुका है। मुस्लमानों को रूढि़वादी या अतिआधुनिक विचारों से दूर रहने वाले जेहादी माना जा रहा है।
ब्रिटेन में ईसाई धर्म की जनसंख्या तेजी से घटती जा रही है जबकि मुस्लिमों की आबादी में तेजी से वृद्धि हो रही है। आंकड़ों के अनुसार ईसाई आबादी में साल 2011 के आंकड़ों के हिसाब से 2021 के आंकड़े में 13.1 फीसदी कमी देखने को मिली जबकि मुस्लिमों की आबादी 4.9 फीसदी बढ़ी। मौजूदा समय में ब्रिटेन में 39 लाख मुस्लिम रहते हैं। जिनकी कुल आबादी में 6.5 फीसदी हिस्सेदारी है। हिन्दुओं की जनसंख्या 10 लाख है। वर्ष 2011 में हिन्दुओं की आबादी दर 1.5 फीसदी थी जो अब बढ़कर 1.7 फीसदी हो गई है। वहीं सिखों की आबादी 5 लाख 24 हजार है। यहूदियों की संख्या केवल 2 लाख 71 हजार है। सबसे ज्यादा चौंकाने वाली बात यह है कि 2 करोड़ 20 लाख लोगों ने अपना कोई धर्म नहीं बताया। ब्रिटेन के मूल निवासियों में यह धारणा बल पकड़ रही है कि मुस्लिमों की आबादी बढ़ने से कट्टरवाद बढ़ रहा है। अगर अप्रवासियों पर अंकुश नहीं लगाया गया तो ब्रिटेन की पहचान ही खत्म हो जाएगी। इजराइल-फिलिस्तीनी युद्ध के चलते भी ब्रिटेन के मुस्लिमों में कट्टरवाद बढ़ रहा है। कट्टरवाद को रोकने के लिए ही ब्रिटेन के नेताओं ने चरमपंथ की नई परिभाषा जारी की थी। इसके तहत कुछ खास समूहों की सरकारी फंडिंग रोक दी गई थी लेकिन चरमपंथी नेता आज भी मुस्लिमों में हिंसक विचारधारा को खुलेआम बढ़ावा दे रहे हैं। मुस्लिमों को स्वयं सोचना होगा कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उनकी छवि कैसी बन चुकी है। यूरोप के ज्यादातर देशों में इस्लामी चरमपंथ के खिलाफ लहर चल चुकी है। फ्रांस, जर्मनी, इटली, ब्रिटेन सहित कई देश कट्टवाद के खिलाफ मोर्चाबंदी कर रहे हैं। डेनमार्क में तो इस्लामीकरण बंद करने का अभियान चलाया जा रहा है। मुस्लिम धर्म गुरुओं को अपनी कौम की हिफाजत के लिए सही रास्ते पर चलना ही होगा।