‘लेटरल एंट्री’ का गरम मुद्दा
केन्द्र सरकार ने लेटरल एंट्री स्कीम को वापिस ले लिया है। इसका मतलब यह हुआ कि सरकारी उच्च पदों पर अब पर्दे के पीछे से सीधी भर्ती नहीं होगी। संघ लोक सेवा आयोग द्वारा प्रत्येक वर्ष आईएएस पदों पर अफसरों की भर्ती कठिन परीक्षा प्रणाली के माध्यम से की जाती है जिसके लिए देश के लाखों मेधावी छात्र-छात्राएं अपना भाग्य आजमाते हैं परन्तु केन्द्र सरकार ने यह फैसला किया है कि एेसे अफसर पदों के लिए पर्दे के पीछे से सीधे प्रवेश कुछ लोगों को विशेषज्ञता के नाम पर दिया जा सकता है। इस बार हाल ही में संघ लोक सेवा आयोग ने एेसे 45 पदों के लिए सीधे आवेदन आमन्त्रित किये हैं । इसे ‘लेटरल एंट्री’ या पर्दे के पीछे से सीधे प्रवेश का नाम दिया जाता है। देश का पूरा विपक्ष खासकर विपक्ष के नेता श्री राहुल गांधी व कांग्रेस अध्यक्ष श्री मल्लिकार्जुन खड़गे एेसी भर्ती का सख्त विरोध कर रहे हैं और इसे अनुसूचित जाति व जनजाति व पिछड़े वर्ग के अधिकारों पर ‘डाका’ तक बता रहे हैं। इसकी वजह यह है कि इन भर्तियों में किसी प्रकार का आरक्षण नहीं होगा और विशेषज्ञता के नाम पर किसी भी व्यक्ति को सीधे किसी भी सरकारी विभाग में निदेशक से लेकर संयुक्त सचिव तक बनाया जा सकता है।
सरकार के इस फैसले का विरोध सत्तारूढ़ एनडीए में शामिल पार्टियां जनता दल (यू) व लोक जनशक्ति पार्टी (पासवान) भी कर रही हैं और इसे आरक्षण विरोधी करार दे रही हैं। जनता दल(यू) के महासचिव श्री के.सी. त्यागी का तो यहां तक कहना है कि यदि सरकार इस फैसले को लागू करती है तो यह राहुल गांधी को इस मुद्दे पर पूरे देश में आन्दोलन छेड़ देने का अवसर प्लेट पर सजा कर दे देगी। वहीं लोक जनशक्ति पार्टी के नेता चिराग पासवान का कहना है कि वह इस मुद्दे पर सरकार से बातचीत करेंगे और अपना विरोध यथोचित मंच पर दर्ज करायेंगे। जाहिर है कि इन दोनों पार्टियों के विरोध को मोदी सरकार सहन नहीं कर सकती क्योंकि दोनों पार्टियां भाजपा नीत मोदी सरकार को बिना शर्त समर्थन दे रही हैं। परन्तु एनडीए के तीसरे महत्वपूर्ण घटक दल तेलुगू देशम ने इस मुद्दे पर भाजपा को अपना समर्थन दे दिया है और कहा है कि प्रशासन में दक्षता व चुस्ती लाने के लिए पिछले दरवाजे से सीधी भर्ती गलत नहीं है। इसके बहाने विशेषज्ञ लोगों को सरकारी प्रशासन में लाने का रास्ता खुलता है। पर्दे के पीछे से जो भर्तियां होंगी व केवल तीन वर्ष के लिए संविदा आधार पर होंगी। बाद में इनका कार्यकाल दो वर्ष औऱ बढ़ाया जा सकता है। इससे यह भी प्रश्न पैदा हो रहा है कि क्या प्रशासन के उच्च पदों पर भी ठेका प्रथा को बढ़ावा नहीं मिलेगा?
पिछले पांच सालों में सरकार पर्दे के पीछे से 60 के लगभग अफसरों की भर्ती कर चुकी है। इन सभी भर्तियों में एक भी व्यक्ति अनुसूचित जाति या जनजाति का नहीं था। यह हकीकत है कि केन्द्र सरकार की नौकरियों में तीसरे, दूसरे व प्रथम दर्जे के 50 प्रतिशत से अधिक पद अनुसूचित जाति व जनजाति व पिछड़े वर्गों के खाली पड़े हुए हैं। बाद में ये पद योग्य उम्मीदवार न होने का बहाना देकर सामान्य वर्ग से भर लिये जाते हैं। सवाल यह है कि सरकार को लेटरल एंट्री की जरूरत क्यों होती है जबकि हर साल यह सैकड़ों की संख्या में आईएएस अफसरों की भर्ती करती है। वास्तव में इसका सुझाव 2005 में प्रशासनिक सुधार आयोग ने दिया था जिसका गठन कांग्रेस नेता व कर्नाटक के पूर्व मुख्यमन्त्री श्री वीरप्पा मोइली के नेतृत्व में किया गया था। आयोग ने सुझाव दिया था कि प्रशासन में समयानुरूप चुस्ती लाने के लिए पर्दे के पीछे से सीधे भर्ती होनी चाहिए। भाजपा सरकार लेटरल एंट्री के लिए इस आयोग की रिपोर्ट का सहारा ले रही है। मगर इस मामले ने तूल पकड़ लिया है और राहुल गांधी व कांग्रेस के अलावा सरकार के निर्णय का पुरजोर विरोध समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव समेत बहुजन समाज पार्टी व राष्ट्रीय जनता दल ने भी किया है। मल्लिकार्जुन खड़गे का तो कहना है कि सरकार निजी क्षेत्र में आरक्षण की जहां बात नहीं कर रही है वहीं सार्वजनिक कम्पनियों का निजीकरण करके पांच लाख से अधिक सरकारी नौकरियां समाप्त कर चुकी है। उनका यह भी कहना है कि वर्ष 2022-23 तक सरकार ने अनुसूचित जाति व जनजाति वर्ग के लोगों की 1.3 लाख नौकरियां कम कर दी हैं।
सवाल यह है कि पर्दे के पीछे से अफसरों की जो भी लेटरल एंट्री होगी वे अफसर आएंगें कहां से? जाहिर है ये अफसर कार्पोरेट क्षेत्र से ही भर्ती होंगे। इस बात की गारंटी कौन देगा कि कथित विशेषज्ञता के नाम पर लिये गये ये अफसर सरकारी औहदे पर बैठने के बाद कार्पोरेट क्षेत्र के हितों को संरक्षण नहीं देंगे। बाजार मूलक अर्थव्यवस्था में जब धीरे-धीरे पूरी अर्थव्यवस्था बाजार की शक्तियों पर छोड़ी जा रही है तो इस बात की आशंका सर्वदा बनी रहेगी। दूसरे यदि अनुसूचित जाति व जनजाति के अलावा पिछड़े वर्ग के लोगों को एेसी भर्तियों में मान्य आरक्षण नहीं दिया जाता है तो इन वर्गों में असन्तोष पैदा होगा। कुछ विपक्षी नेता एेसी भर्तियों को संविधान विरोधी भी बता रहे हैं। इसकी वजह यह है कि जो 45 रिक्तियां संघ लोक सेवा आयोग ने निकाली हैं वे विभागानुसार निकाली हैं जिनमें प्रत्येक विभाग के प्रकोष्ठ में अफसर की भर्ती होगी। अतः इसमें आरक्षण का फार्मूला लागू होगा ही नहीं। दीगर सवाल यह भी है कि जब 2005 में प्रशासनिक सुधार आयोग बना था तो परिस्थितियां कुछ और थीं और अब 2024 चल रहा है जिसमें परिस्थितियां पूरी तरह बदल चुकी हैं। अतः मोदी सरकार ने अपना फैसला वापिस लेकर समय के अनुसार नीित पर चलने का िनर्णय किया लगता है।