गुरु गोबिन्द सिंह जी से बड़ा बलिदानी और कोई नहीं
साहिब श्री गुरु गोबिन्द सिंह जी से बड़ा बलिदानी इस संसार में दूसरा और कोई नहीं हो सकता। अपने परिवार एवं बच्चों के लिए इन्सान हर वह चीज कुर्बान कर सकता है जो उसे सबसे प्रिय होती है, मगर गुरु जी ने तो खालसा पंथ के लिए, देश और धर्म की खातिर अपना परिवार ही कुर्बान कर दिया। इतिहास इस बात का गवाह है कि 9 साल की उम्र में गुरु गोबिन्द सिंह जी ने कश्मीरी पण्डितों की फरियाद सुनकर उनके धर्म को बचाने के लिए अपने पिता को कुर्बान कर दिया। यहीं बस नहीं एक-एक करके अपने चारों पुत्रों की आहुति देने के बाद जुल्म और जालिमों से लड़ने और मजलूमों की रक्षा हेतु न्यारा खालसा पंथ तैयार किया। गुरु गोबिन्द सिंह जी की महान कुर्बानी को देखते हुए प्रसिद्ध मुस्लिम कवि ने उनके बारे में लिखा है-‘‘ना कहूं अब की नहूं कहूं जब की, मैं बात करूं तब की अगर ना होते गुरु गोबिंद सिंह तो सुन्नत होती सबकी’’। वास्तव में अगर गुरु जी ने उस समय अपने परिवार का बलिदान ना दिया होता तो आज इस देश में केवल एक ही धर्म रह जाना था।
श्री गुरु गोबिंद सिंह जी का प्रकाश पोह सुदी सप्तमी, 22 दिसंबर 1666 ई. को माता गुजरी जी की कोख से पिता गुरु तेग बहादुर जी के घर पटना (बिहार) में हुआ था। गुरु साहिब ने बचपन से अपनी बाल-लीलाओं के द्वारा सभी का मन-मोह लिया। शस्त्र और शास्त्र के धनी गुरु गोबिंद सिंह जो कि अनेक भाषाओं अरबी, फारसी, ब्रिज के ज्ञाता थे। उन्होंने अपने दरबार में उच्च कोटि के कवियों को विशेष सम्मान दिया। सिख धर्म खालसा पंथ का सिद्धांत देते समय गुरु जी ने तख्त श्री केशगढ़ की धरती पर नई मर्यादा स्थापित की। गुरु जी ने संसार में एक अनोखी मिसाल कायम की। आप को सरबंसदानी के नाम से भी याद किया जाता है। अपनी 42 वर्ष की आयु में गुरु जी ने कुल 14 युद्ध किये और सभी में जीत हासिल की। सबसे बड़ी बात यह युद्ध धन-दौलत या यश प्राप्ति के लिए नहीं लड़े थे। बल्कि जुल्म और अत्याचार के खिलाफ थे। गुरु साहिब ने सिखों को एक सिद्धांत देते हुए समझाया कि मानस की जाति सबै एकै पहिचानबो। अर्थात जाति या रंग रूप के आधार पर किसी से भी भेदभाव ना किया जाये। सभी मनुष्य एक समान हैं। इसी बात का प्रतीक सिख धर्म का लंगर व पंगत है। जिसमें किसी के साथ भेदभाव नहीं किया जाता है। आज पूरे संसार में गुरु गोबिंद सिंह जी का 357वां प्रकाश पर्व बड़ी श्रद्धा भावना से मनाया जाा रहा है मगर वहीं दुख इस बात का है गुरु जी ने जात-पात, ऊंच-नींच, धर्म जाति के भेदभाव से ऊपर उठकर जिस पंथ का निर्माण किया, समूचे खालसा पंथ का पिता होने का गौरव प्राप्त किया, उसी के वंशज आज पुनः उसी दलदल में फंसे दिखाई देते हैं। अपने नाम के साथ सिंह या कौर लिखने में उन्हें शर्म महसूस होती है, इसलिए नाम के साथ जाति, गौत्र आदि लगाए जाते हैं, जिससे कौम को बचना चाहिए पर सवाल यह उठता है कि युवा पीड़ी को यह समझाए कौन, जिन प्रचारकों कथा वाचकों की यह जिम्मेवारी बनती है वह पूरी तरह से राजनेताओं की चमचागिरी में फंसकर रह गये हैं, कौम के प्रति उनकी कोई जवाबदेही नहीं है।
प्रकाश पर्व पर प्रभातफेरियों का आयोजन
गुरु साहिब के प्रकाश पर्व पर प्रभातफेरियों का आयोजन किया जाता है जिसमें अमृत वेले सुबह संगत के द्वारा शब्द कीर्तन करते हुए प्रभात फेरी निकाली जाती है जो कि नगर का भ्रमण करने के साथ-साथ संगतों के निवास पर भी जाया करती है। गुरु नानक देव जी के प्रकाश पर्व पर तो सिख संगत फिर भी देखने को मिल जाती है मगर गुरु गोबिन्द सिंह जी के प्रकाश पर्व पर जाड़े की ठंड होने की वजह से संगत बहुत कम भाग लेती हैं। यहां तक कि ज्यादातर सिंह सभाओं में तो प्रबन्धक स्वयं नदारद रहते हैं केवल संगत के द्वारा ही समूची जिम्मेवारी को निभाया जाता है। भले प्रशादि के लिए ही सही जो संगत महिलाएं, बच्चे आदि शामिल होती हैं बजाए उसके की उनकी सराहना की जाये कि जिस समय प्रबन्धक या सिख संगत घरों में बिस्तरों में दुबके होते हैं वह संगत प्रभातफेरियों में हिस्सा लेकर उसकी शोभा बढ़ाते हैं उस पर भी कुछ एक प्रचारकों को आपत्ति होने लगी है। मुझे आज भी याद है बचपन में मेरी माता जी मुझे अपने साथ प्रभातफेरी में ले जाया करती थीं। आज के समय में माता-पिता व्यस्त भरी जिन्दगी की भागदौड़ के चलते बहुत कम अपनी उपस्थिति दर्ज करवाते हैं और जो जाते भी हैं अपनी नकरात्मक सोच के चलते हम उन्हें भी जाने से रोक देना चाहते हैं। अच्छा होता अगर वह प्रचारक प्रचार के माध्यम से लोगों का मागदर्शन करने की क्षमता रख पाते।
कार सेवा भूरी वालों की सेवा को सलाम
वैसे तो सभी कार सेवा वाली संप्रदायों के द्वारा पंथ को जो सेवाएं दी जा रही हैं उसी के चलते गुरुद्वारा साहिब की सुन्दर और विशाल इमारते कायम है। सेवा की महान मूरत ‘‘संत बाबा कश्मीर सिंह जी’’ जिन्हें लोग भूरी वालों के नाम से जानते हैं जिनके द्वारा पंजाब व पंजाब से बाहर दूसरे राज्यों में अनेक एेतिहासिक गुरुद्वारा साहिबान की सुंदर इमारतें तैयार करवाई गई हैं और सेवा निरन्तर की जा रही हैं। तख्त पटना साहिब जो सिखों के दसवें गुरु गोबिंद सिंह जी का जन्म स्थल है। यहां पर भी गुरुद्वारा बाल लीला साहिब सुशोभित हैं, जहां गुरु गोबिंद सिंह जी बाल अवस्था में अपने मित्रों संग खेला करते थे। इसी के चलते इस गुरुद्वारा साहिब का नाम ही गुरुद्वारा बाल लीला पड़ गया। ऐसा बताया जाता है कि इस गुरुद्वारा साहिब का प्रबन्ध उदासीन संप्रदाय के लोगों द्वारा देखा जाता था और एक छोटे से कमरे में गुरु साहिब का प्रकाश किया गया था। 2010 में बाबा कश्मीर सिंह जी यहां आए और तख्त पटना साहिब प्रबंधक कमेटी की अपील पर उन्होंने गुरुद्वारा साहिब की कार सेवा आरंभ की और मात्र कुछ ही वर्षों में आलीशान कमरों की सराय तैयार कर दी जिसका लाभ आज देश विदेश की संगत उठा रही है। गुरु साहिब के प्रकाश पर्व पर लाखों की गिनती में संगत पटना पहुंचती है जिनकी रिहाइश, लंगर आदि के प्रबन्ध तख्त पटना कमेटी के द्वारा किये जाते हैं पर वहीं कार सेवा भूरी वालों के द्वारा अनेक स्थानों पर जो लंगर लगाए जाते हैं वह किसी पांच सितारा होटलों में तैयार होने वाले खाने से कम नहीं होते जिनमें पौष्टिकता के साथ-साथ साफ-सफाई का भरपूर ध्यान रखा जाता है।
जत्थेदार का किरदार कैसा होना चाहिए
सिख कौम में जत्थेदार की पदवी बहुत ही सम्मानिन्त है मगर पिछले कुछ समय से जिस तरह से राजनीतिक लोगों के द्वारा जत्थेदारों की नियुक्ति और सेवामुक्ति की जाने लगी है, पदवी पर सवाल उठाये जाना स्वभाविक है। इतना ही नहीं आजकल तो कुछ जत्थेदार स्वयं राजनीतिक शिख्सयतों की कठपुतली बनकर कार्य करते दिखाई देते हैं। मगर तख्त सचखण्ड श्री हजूर साहिब के जत्थेदार ज्ञानी कुलवंत सिंह की सेवा की एक ऐसी मिसाल है जो किसी और में देखने को नहीं मिलती उनके द्वारा केवल धार्मिक मापदण्ड को ध्यान में रखते हुए अपना सारा समय केवल तख्त साहिब की सेवा में लगाया जाता है, उन्हें सेवा निभाते हुए 24 साल बीत गये हैं मगर आज तक उनके किरदार पर कोई अंगुली नहीं उठा सकता। उनकी सेवाओं के 24 साल पूरे होने पर दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी के अध्यक्ष हरमीत सिंह कालका, महासचिव जगदीप सिंह काहलो के साथ-साथ गुरुद्वारा मोती बाग साहिब के को-चेयरमैन मनजीत सिंह ने भी उन्हें बधाई देते हुए उनकी तंदरुस्ती के लिए गुरुद्वारा मोती बाग साहिब में अरदास भी की है। मनजीत सिंह का मानना है कि अगर अन्य जत्थेदार भी ज्ञानी कुलवंत सिंह की भान्ति कार्य करते तो कौम का आज ऐसा हाल नहीं होता। पंजाब जिसे सिखी का केन्द्र कहा जाता था आज पंजाब में सिखी का जो हाल है उसे बयान करते हुए सिवाए शर्म और दुख के और कुछ नहीं होता। अब समय आ गया है कौम को सोचना होगा और एकजुट होकर जत्थेदार धार्मिक किरदार के व्यक्ति को लगाया जाये इसके लिए आवाज उठानी होगी वरना वह दिन दूर नहीं जब युवा वर्ग पूरी तरह से सिखी से दूर चला जायेगा।
- सुदीप सिंह