सिख मर्यादा में रुमाला साहिब का कोई औचित्य नहीं है
आम तौर पर देखा जाता है कि गुरुद्वारा साहिब में रोजाना हजारों की गिनती में रुमाला साहिब संगत के द्वारा चढ़ाए जाते हैं ऐतिहासिक गुरुद्वारों और तख्त साहिबान पर चढ़ाए गये रुमालों की कीमत लाखों में होती है। आज तक किसी ने भी यह विचार ही नहीं किया कि रुमाला साहिब को चढ़ाने के पीछे क्या कारण है। सालों से परिवार के बड़े बुजुर्गों की देखा देखी हर कोई जब भी गुरुद्वारा साहिब में पाठ रखवाता है, या फिर मुराद पूरी होने पर शुकराना करने जाता है तो वह प्रशादि के साथ रुमाला साहिब भी चढ़ाता है। इतना ही नहीं गुरुद्वारों के समीप बनी दुकानदारों के द्वारा भी यह अंधविश्वास फैलाया जाता है कि अगर दर्शनों के लिए आप सैकड़ों मील का सफर तय करके आ रहे हैं तो रुमाला चढ़ाए बिना आपकी यात्रा सफल नहीं होगी जिसके चलते संगत रुमाला साहिब लेकर दर्शनों के लिए पहुंचती है, गैर सिख इन लोगों के बहकावे में जल्दी आ जाते हैं और उनसे रुमाला साहिब के बदले मुंहमांगी कीमत भी वसूली जाती है। अगर अकेले दरबार साहिब की ही बात करें तो वहां लाखों की गिनती में श्रद्धालु रोजाना देश विदेश से पहुंचते हैं और उनमें से ज्यादातर रुमाला साहिब भी भेंट करते हैं। छोटी सिंह सभा से लेकर एेतिहासिक गुरुद्वारों और तख्त साहिबानों पर रुमालों के भण्डार भरे रहते हैं। दरबार साहिब में तो ज्यादातर चढ़ाए जाने वाले रुमालों को खोला तक नहीं जाता केवल गुरु ग्रन्थ साहिब से छुआ कर उसे साईड में रख दिया जाता है। खबर यह भी है कि कई जगहों पर तो रुमाला साहिब को पुनः पैक कर दुकानों पर वापिस भेज दिया जाता है और सदस्यों सहित सभी लोग मिलकर इसकी कीमत की बंटतवार कर लेते हैं। बीते कुछ साल पहले दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी में भी रुमालों के गौरखधन्दे की बात सामने आई थी और ट्रक भरकर रुमाला साहिब रात के अन्धेरे में गुरुद्वारा परिसर से बाहर भेजे जा रहे थे, मगर खुलासा होने पर मामले को दबाकर निपटारा कर दिया गया था। इसी प्रकार अन्य स्थानों पर भी अक्सर ऐसा ही होता रहता है क्योंकि इतनी अधिक गिनती में रुमाला साहिब की संभाल करना भी मुश्किल हो जाता है और रुमाला साहिब के कपड़े को किसी का तन ढकने के काम में भी नहीं लाया जा सकता।
श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार ज्ञानी रघुबीर सिंह ने रुमाला साहिब पर नोटिस लेते हुए संगत को जागरुक करते हुए अपील की है कि रुमाला साहिब पर होने वाले खर्च के बजाए संगत गुरु के लंगर और बिल्डिंग के लिए फण्ड दे सकती है। जत्थेदार साहिब के इस फैसले का जहां स्वागत हो रहा है वहीं कुछ लोगों के द्वारा इस पर भी जत्थेदार जी से सवाल किए जा रहे हैं कि अच्छा होता अगर जत्थेदार साहिब संगत को बिल्डिंग के बजाए जरूरतमंदों की मदद, बच्चों की एजुकेशन और मैिडकल सुविधाएं मुहैया करवाने की अपील करते। आज भी अनेक सिख परिवार ऐसे हैं जिनके बच्चों को अच्छी एजुकेशन नहीं मिल पा रही। रोजगार के साधन नहीं है, परिवार में किसी व्यक्ति के बीमार होने पर उसका इलाज तक के पैसे नहीं होते ऐसे परिवारों की पहचान कर उनकी मदद के लिए सिखों को आगे आना चाहिए। कहीं ऐसा ना हो कि सिख कौम बिल्डिंगों को तोड़-तोड़ कर आलीशान बनाने के चक्कर में ही लगी रहे और सिखी का स्तर दिन प्रतिदिन कम होता चला जाए। इसलिए सभी धार्मिक नेताओं को पहले सिखी का स्तर उपर ले जाने के लिए कार्य करना होगा। सिख कौम की बदकिस्मतीसिख कौम पर गुरु साहिबान की पूरी बख्शिश है जिसके चलते सिख दुनिया के हर कोने में जाकर सिखी का झण्डा बुलंद करता आया है। मगर दूसरी ओर सिख कौम की बदकिस्मती भी है कि आज तक सिखों का अपना कोई भी अस्पताल ऐसा नहीं मिला है जहां पर गरीब सिख का इलाज बिना पैसों के हो सके। ऐसा कोई विधयक संस्थान नहीं है जहां पर सिख परिवारों के बच्चों को वकालत, डाक्टरी की पढ़ाई बिना किसी शुल्क के करवाई जा सके, सिविल सर्विसिज परीक्षा के लिए बच्चों को तैयार किया जा सके। इसका नुकसान यह होने वाला है कि आने वाले समय में ना तो कोई सिख जज देखने को मिलेगा और ना ही ब्यूरोक्रेट।
हमें अगर सरकारों से सिखों की भलाई के कार्य करवाने हैं तो हमारी आवाज बुलंद करने के लिए सिख ब्यूरोक्रेटस का होना बहुत जरुरी है, सरकारों को राजनीतिक पार्टियां नहीं बल्कि यही लोग चलाते हैं। राष्ट्रीय अल्पसंख्य आयोग के चेयरमैन इकबाल सिंह लालपुरा के द्वारा इसका गंभीरतापूर्वक संज्ञान लेते हुए सभी सिख जत्थेबंदीयों को अपील की है कि पार्टीवाद से उपर उठकर ऐसे संस्थान बनाने के लिए आगे आएं। वह स्वयं इसमें पूर्ण योगदान देने को तैयार हैं। उनकी संस्थाओं से भी बात चल रही है जो इसकी पढ़ाई करवाने के लिए तैयार हैं मगर शुरूआत तो सिखों को स्वयं ही करनी होगी। जब भी सिविल सर्विसिज परीक्षा का परिणाम घोषित होता है तो सिखों के नेताओ के द्वारा एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप करते हुए जमकर बयानबाजी करके चिन्ता जताई जाती है कि सिखों के बजाए गैर सिख बच्चे बाजी मार जाते हैं मगर इसे अमलीजामा पहनाने के लिए कोई आगे नहीं आता। अगर हम ऐसा प्लेटफार्म तैयार कर दें जहां सिख बच्चों को परीक्षा के लिए तैयार किया जाए तो वह दिन दूर नहीं जब सिख बच्चे भी इन परीक्षाओं में पास होकर अच्छे जज, आईपीएस, आईएएस बन सकते हैं। स. इकबाल सिंह लालपुरा ने रिटायर्ड सिख अफसरों से भी आगे आकर इस कार्य में सहयोग देने की अपील की है। सिख राजनीति का चमकता सितारा इन्द्रपाल सिंह खालसा दिल्ली की सिख राजनीति का चमकता सितारा इन्द्रपाल सिंह खालसा जिन्होंने दिल्ली गुरुद्वारा कमेटी में बतौर धर्म प्रचार के चेयरमैन की सेवा निभाते हुए धर्म के प्रचार प्रचार के लिए अनेक कार्य किये जिसके चलते लोग उन्हें सदैव याद करते रहेंगे।
गुरुद्वारा रकाब गंज साहिब में स्थित प्रिन्टिंग प्रैस जहां गुरु साहिब के स्वरूप और अन्य धार्मिक साम्रगी प्रकाशित होकर देश विदेश में प्रचार के लिए भेजी जाती है। कार सेवा वाले बाबा हरबंस सिंह जी की मदद से उसे लगवाने का श्रेय भी इन्द्रपाल सिंह खालसा को जाता है। अमृतसंचार और खासतौर पर पंजाबी अखबारों को बढ़ावा देते हुए उन्होंने दिल्ली और दूसरे राज्यों में सिखी का जमकर प्रचार किया। इन्द्रपाल सिंह खालसा का जन्म 1936 में पाकिस्तान के रावलपिन्डी में हुआ। पिता अमर सिंह जिन्होंने आजादी से पहले लगे गुरु का बाग और जैतो के मोर्चे में जेल काटी। उन्हीं के दिखाए रास्ते पर चलते हुए इन्द्रपाल सिंह खालसा ने पंजाबी सूबे के लिए लगे मोर्चे में पहले ही दिन गिरफ्तारी दी और उसके बाद से जितने भी मोर्चे लगे सबमें हिस्सा लिया। उनकी सेवाओं से प्रभावित होकर शिरोमणि अकाली दल में उन्हें अहम जिम्मेवारियां दी गई। दिल्ली गुरुद्वारा कमेटी के 2 बार सदस्य चुने गये। उनका चित्र शिरोमणि अकाली दल के राष्ट्रीय कार्यालय में लगाया गया है और आने वाले दिनों में श्री अमृतसर साहिब संग्रहालय में भी लगाने का प्रस्ताव है।
खालसा जी के पुत्र भुपिन्दर सिंह खालसा भी पिता और दादा के दिखाए रास्ते पर चलते हुए देश और कौम की सेवा में सदैव तत्पर रहते हैं। राजनीतिक पार्टियां अपने नुमाईंदो की कदर उनके जीवित रहते तो डालती नहीं, मगर उनके इस संसार से जाने के बाद उनके चित्र जरुर पार्टी कार्यालयों में लगाए जाते हैं।मलेशिया की पहली सिख कप्तान सिखों पर गुरु साहिबान की ऐसी बख्शिश है कि वह संसार के किसी भी देश में चले जाएं अपनी काबलियत के दम पर हर उंचाई छूहने की क्षमता रखते हैं। ऐसी ही एक घटना बीते दिनों सामने आई जब मलेशिया में रहने वाली डारलीना कौर पहली सिख कप्तान के तौर पर एयर एशिया की उड़ान को लेकर जयपुर के लिए निकल पड़ी इतना ही नहीं उनके साथ फर्स्ट आफिसर के तौर पर सहयोगी पायलट भी सिमरन कौर सिख समुदाय से ही थी। दोनों सिख महिलाओं के जयपुर पहुंचने पर सिख समाज के लोगों द्वारा भव्य स्वागत भी किया गया। यह समूचे सिख जगत के लिए गौरव वाली बात है। डिफेंस से रिटायर्ड आफिसर दलबीर कौर महिन्दरा का मानना है कि हर सिख परिवार को अपनी बच्चियों को ऐसी शिक्षा देनी चाहिए कि वह परिवार के साथ-साथ देश और कौम का नाम रोशन कर सकें।