यह राम मंदिर और समूचे भारत की प्राण प्रतिष्ठा है!
"भारत पे मेरे रहमत-ए-परवरदिगार है,
कृपा श्री राम की, कान्हा का प्यार है।"
- यूसुफ निजामी कव्वाल
आज इमाम-ए-हिंद पुरुषोत्तम श्रीराम मात्र भारत के ही नहीं बल्कि पूर्ण विश्व के इमाम-ए-आलम हैं। अयोध्या मंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा का दृश्य अति विहंगम व हृदय को छू जाने वाला था, जिसका साक्षी यह लेखक रहा है। आज श्रीराम का आंखों देखा दृश्य पूर्व भारत में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया के भारतवासियों व विश्व ने गौर से देखा। इस में कोई दो राय नहीं कि यह गतिविधि न केवल मंदिर बल्कि एक प्रकार से भारत की प्राण-प्रतिष्ठा भी थी। अयोध्या की सड़कों, लता मंगेशकर चौक, गलियों, सरयू नदी के घाटों, पेड़ों के ऊपर, मकानों, झुग्गियों आदि में जश्न का माहौल था और जोश इससे कई गुणा अधिक था, यदि यह कहा जाए कि जब 15 अगस्त 1947 को था। ऐसा प्रतीत होता था कि इस देश के इतिहास की सबसे अहम धार्मिक व सामाजिक गतिविधि यह प्राण प्रतिष्ठा थी। ऐसा प्रतीत होता था कि शायद इस प्रकार का विहंगम दृश्य इससे पूर्व धरती माता के पटल पर न हुआ हो। बिल्कुल ठीक कहा गया है, काव्य के इन शब्दों में, "सियाराममय सब जग जानी, करहुँ प्रनाम जोरि जुग पानी।"
जिस प्रकार से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और विश्व हिंदू परिषद ने केंद्र सरकार के आशीर्वाद से इस विश्वस्तरीय विशालकाय कार्यक्रम का आयोजन किया था, वह याद दिलाता है, मक्का के हज का, वेटिकन के बड़े दिन का, बैथलेहम (मस्जिद-अल-अक्सा), गुरु नानक दिवस का और जैन श्रवण बेलगोला का। समय-समय पर आगंतुकों को खाने-पीने, चाय, फल आहार के परोसे जाने आदि के बारे में बार-बार पूछते हुए आरएसएस और विहिप के कार्यकर्ताओं की ज़बान नहीं थक रही थी और वे बिछे जा रहे थे। सभी लगभग दस हज़ार से ऊपर मेहमानों के लिए दसियों गिफ्ट बैग तैयार थे, जो राम जन्म भूमि न्यास, विहिप, आरएसएस व अनेकों संस्थाओं की ओर से ससम्मान मेहमानों की सेवा में प्रस्तुत किए जा रहे थे। धर्म गुरुओं का भी जिस प्रकार से स्वागत हुआ, हृदय विभोर था। उधर भारतीय वायुसेना के दो हैलीकॉप्टर, इस पावन पर्व पर खुशबूदार गुलाब के फूलों की फुहार बरसाते चले गए। अविस्मरणीय नज़ारा था।
"है राम के वुजूद पे हिंदोस्तान को नाज
कहते हैं उसे अहले नज़र ही इमाम-ए-हिंद!"
-डा. मुहम्मद इकबाल
इस प्राण-प्रतिष्ठा से हिंदू-मुस्लिम एकता और प्रेम का नया अध्याय शुरू होगा। यूं तो शताब्दियों से हिंदू-मुस्लिम तबके आपस में दूध और शक्कर की भांति रहते चले आए हैं, मात्र विद्वेष और दुश्मनी के उन क्षणों के जब कुर्सी के भूखे व वोट बैंक की वीभत्स सियासत करने वाले हिंदू-मुस्लिम संप्रदायों को भड़काते चले आ रहे हैं और उन्हें साम्प्रदायिक दंगों की आग में झोंक देते हैं। मगर अब भारत में सभी तबकों की आपसी सद्भावना और समभाव से हिंदू-मुस्लिम समरसता का नया दौर प्रारंभ हो चुका है जिससे भारत में राम राज्य और मुहम्मदत्व की आपसी भाईचारे की भावना से, बकौल भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, "सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास और सबका प्रयास" की भावना से देश विश्व गुरु बनने जा रहा है।
गोवा के क्रिश्चियन मंत्री ने सरकार को मुबारकबाद देते हुए कहा है कि भारत की देव भूमि में राम मंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा से भारत की देव भूमि पर तपस्वी, ओजस्वी और दैवी शक्ति वाले प्रधानमंत्री मोदी द्वारा राम राज्य की बुनियाद, 22 जनवरी 2024 को पड़ चुकी है। ऐसे ही नगालैंड की आदिवासी क्रिश्चियन समाज सेविका नूली ग्वीले ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, डा. मोहन राव भागवत और अमित शाह को मुबारकबाद देते हुए कहा है कि ईसाई संप्रदाय राम राज का स्वागत करता है, क्योंकि हज़रत ईसा मसीह और मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम दोनों विश्व शांति सटीक के प्रतीक हैं।
लगभग 75 प्रतिशत मुस्लिम संप्रदाय भी अयोध्या में प्राण-प्रतिष्ठा से सन्तुष्ट सिवाय उन लोगों के जिन्हें कुछ स्वयंभू मुस्लिम नेताओं ने यह कह कर भड़काया जा रहा है कि ध्वस्त की गई बाबरी मस्जिद जमीन से जन्नत तक कयामत तक मस्जिद ही रहेगी और भले ही वहां राम मंदिर स्थापित हो चुका है, उसके ऊपर बिना अक्स (छवि) की मस्जिद ही है इस्लामी एतबार से यह सही है, मगर यह बात भी सही है कि मस्जिद किसी विवादास्पद स्थान पर नहीं स्थापित की जा सकती। इस प्रकार के लोग सदा से ही एक शांत वातावरण में आग लगाने की चेष्टा में तल्लीन रहते हैं। इन से क्या खूब कहा है, अफज़ल मंगलौरी ने, "मंदिर भी ले लो, मस्जिद भी ले लो, इंसां के लहू से मगर अब न खेलो।’’
यही नहीं, पिछले दस वर्ष से मोदी सच्चे मन से मुस्लिमों को जोड़ने की बात कहते चले आए हैं कि मुस्लिम उनकी संतान की भांति हैं और उनके साथ वे बराबरी का सुलूक करना चाहते हैं और वे हर मुस्लिम के एक हाथ में कुरान और एक में कंप्यूटर देखना चाहते हैं। मुस्लिमों को चाहिए कि मोदी के उक्त विचारों का स्वागत करते हुए राष्ट्र निर्माण में अपना महत्वपूर्ण योगदान दें। दूसरी ओर विपक्षी पार्टियां मुस्लिमों को अपनी वोट बैंक की राजनीति का मोहरा बनाना चाहती हैं, उन्हें बहला-फुसला, लटका-झटका और भड़का-भड़का कर आरएसएस, विश्व हिंदू परिषद और भाजपा से डराती चली आ रही हैं, जिसका नतीजा यह है कि मुसलमानों के हाथ में रिजर्वेशन, सच्चर कमेटी और श्री कृष्ण कमिशन जैसे भीख के प्याले थमा दिए हैं। आम मुसलमान तो मोदी को चाहता है, मगर उसके सियासी ठेकेदार, दुकानदार और मकानदार उसे इसी प्रकार से बहलाते-फुसलाते चले आए हैं जैसे शैतान इन्सान को लटकाता, झटकाता और भटकाता रहा है।
चूंकि अधिकतर मुस्लिमों को पता ही नहीं कि धार्मिक आधार पर आरक्षण अवैध है, वे फालतू के मकड़जाल में फंस कर इन लोगों को वोट दे देते हैं और तरक्की के रास्तों पर फुल स्टॉप लगा लेते हैं, क्योंकि इन पिछड़े और सात दशकों में हाशिए पर लगा दिए गए लोगों के वोटों पर वे हल्वे-मांडे खाते हैं और अपनी हज़ार पुश्तों के लिए जमा-पूंजी एकत्र कर लेते हैं। जब तक मुस्लिम तबका इस बात को नहीं समझेगा कि राजनीति में कोई अछूत नहीं होता और अच्छे और ईमानदार प्रत्याशी को ही संसद, विधानसभा, निगम आदि में चुन कर भेजना चाहिए, चाहे वह भाजपा का हो, कांग्रेस, सपा, बसपा आदि किसी का भी हो, मुस्लिम कौम को अंधे कुएं में धकेला जाता रहेगा।
मगर अब ऐसा नहीं होना चाहिए क्योंकि एक ओर तो मुस्लिमों के साथ अल्लाह की रहमत है तो दूसरी ओर श्रीराम की कृपा है, जैसे दिल्ली घराने के नामचीन कव्वाल, यूसुफ निजामी ने अपनी गजल, "वसुधैव कुटुंबकम् में कहा है -
"मुझको सुकून मिलता है मेरी आजान से,
यह देश सुरक्षित है गीता के ज्ञान से।"