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तीन नये कानून और विवाद

04:59 AM Jul 02, 2024 IST
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पुलिस और न्याय व्यवस्था को मजबूती देने के लिए तीन नए आपराधिक कानून पूरे देश में मध्य रात्रि से लागू हो गए हैं। इस के साथ ही अंग्रेजों के शासन से चले आ रहे आईपीसी (भारतीय दंड संहिता) की जगह भारतीय न्याय संहिता, दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की जगह भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और 1872 के एवीडेंस एक्ट की जगह भारतीय साक्ष्य अधिनियम लागू हो चुके हैं। नए कानून के तहत दिल्ली के कमला मार्केट थाने में एक रेहड़ी-पटरी वाले के खिलाफ पहला मामला भी दर्ज कर लिया गया है। बिहार निवासी पंकज कुमार के ​खिलाफ नई दिल्ली रेलवे स्टेशन के फुटओवर ब्रिज के नीचे अवरोध पैदा करने और तंबाकू उत्पादों की बिक्री करने के आरोप में मामला दर्ज किया गया है।

दावे किए जा रहे हैं कि इन कानूनों के लागू हो जाने से एफआईआर दर्ज करने से लेकर फैसला सुनाने तक की समय सीमा तय कर दी गई है। अब तारीख पर तारीख के दिन लद चुके हैं। अब लोगों को न्याय ​िमलना सुगम हो जाएगा। इन कानूनों में सबसे बड़ा बदलाव यह होगा कि पुलिस जांच करने वाले अधिकारियों के अनुसंधान का तरीका बदलेगा। डिजिटल पुलिसिंग को बढ़ावा मिलने से गंभीर अपराध के घटनास्थल पर उपलब्ध वैज्ञानिक साक्ष्य संकलन किये जाएंगे। घटनास्थल की वीडियोग्राफी और फोटोग्राफी पर जोर रहेगा। अपराध में मोबाइल फोन, सोशल मीडिया, इंटरनेट आदि के बढ़ते उपयोग के आलोक में पुलिस पदाधिकारियों को इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य संग्रह कर न्यायालय में पेश करना होगा। इससे खास कर साइबर अपराधों के मामलों में त्वरित कार्रवाई हो सकेगी।

डिजिटल पुलिसिंग का फायदा होगा कि आम लोग ई-मेल से भी थानों को अपनी शिकायत भेज सकेंगे। थानों के ई-मेल आईडी के माध्यम से संबंधित थाने में शिकायत दर्ज कराई जा सकती है। नये कानून में वैज्ञानिक साक्ष्य संकलन पर जोर से सिर्फ बयान के आधार पर गलत दोषारोपण पर रोक लगेगी। पूरे राज्य में गिरफ्तार होने वाले व्यक्ति का फिंगरप्रिंट एनएएफआईएस डाटाबेस में दर्ज किया जाएगा। इससे आपराधिक घटनास्थल पर मिलने वाले फिंगरप्रिंट का त्वरित मिलान फिंगरप्रिंट ब्यूरो के द्वारा पूरे देश में गिरफ्तार व्यक्तियों के फिंगरप्रिंट डाटाबेस से किया जा सकेगा।

इन कानूूूनों के तहत राजद्रोह को देशद्रोह में बदला गया है। मॉब लिंचिंग के लिए मृत्युदंड, हिट एंड रन केस में कम से कम 10 साल की कैद का प्रावधान किया गया है। ठग अब 420 नहीं 316 कहलाएंगे, हत्यारों को 302 दफा के तहत नहीं अब 101 के तहत सजा मिलेगी। कई अपराधों की धारा बदल दी गई है जिनको याद करने में भी अभी समय लगेगा। भारतीय दंड संहिता में 511 धाराएं थी लेकिन भारतीय दंड संहिता में 358 धाराएं रह गई हैं। संशोधन के जरिए 20 नए अपराध शामिल किए गए हैं। 33 अपराधों की सजा बढ़ाई गई है, 83 अपराधों में जुर्माने की रकम बढ़ाई गई है, 6 अपराधों में सामुदायिक सेवा की सजा करने का प्रावधान किया गया है। इनसे संबंधित विधेयकों को लोकसभा ने 20 दिसम्बर 2023 को और राज्यसभा ने 21 ​दिसम्बर 2023 को मंजूरी दी थी। गृहमंत्री अमित शाह ने कहा था कि नए आपरा​िधक कानूनों में सजा देने की बजाय न्याय देने पर फोकस किया गया है। कानूनों में सुधार का स्वागत है, क्योंकि इनमें काफी सकारात्मक हैं लेकिन इन कानूनों पर एक बार​​ फिर विवाद उठ खड़ा हुआ है।

कांग्रेस समेत विपक्ष इन कानूनों को बुलडोजर न्याय की संज्ञा दे रहा है। जबकि कानूनी विशेषज्ञ इन्हें लेकर चेतावनी दे रहे हैं। विधि विशेषज्ञों का कहना है कि यह कानून उस समय पारित किए गए जब विपक्षी बैंच के 150 से अधिक सदस्य निलंबित थे। न इन पर ढंग से चर्चा हुई और न ही किसी को अध्ययन का वक्त मिला। ऐसी आशंकाएं व्यक्त की जा रही हैं कि इन कानूनों से पुलिसिया राज कायम होगा। किसी अपराधी ​को गिरफ्तार करने, उसे हथकड़ी लगाने और उसे​ ​हिरासत में रखने के लिए पुलिस को ज्यादा ताकत मिल गई है। देश में कानूनों का दुरुपयोग पहले भी होता आया है और अब इस बात की क्या गारंटी है कि पुलिस अपने अधिकारों का दुरुपयोग नहीं करेगी।

कई विधि विशेषज्ञों का कहना है कि अगर ​ब्रिटिश कानून ओपनिवेशिक और क्रूर थे तो अब बनाए गए कानून 10 गुणा ज्यादा क्रूर हैं। नया कानून कहता है कि पुलिस हिरासत को 90 दिनों तक बढ़ाया जा सकता है यानि यातना 15 दिन तक नहीं 90 दिन तक जारी रहेगी। मौजूदा मामले वर्षों तक अदालतों में चलेंगे जबकि नए कानूूूनों के तहत मुकदमों की भी बाढ़ आ जाएगी यानि कि अगले दो-तीन दशकों तक समानांतर न्याय प्रणालियां लागू होंगी इससे पूरी व्यवस्था के उलझने की आशंकाएं हैं। दया याचिकाओं को प्रतिबंधित करने वाले प्रावधान भी समझ से परे हैं। कई ऐसे बिंदु हैं ​जिन पर राय बटी हुई है। देखना होगा कि नए कानून किस तरह से काम करते हैं। जनता को न्याय सहज और सुलभ मिले इसका दायित्व भी केन्द्र सरकार पर ही है।

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