भाजपा के 200 सांसदों के टिकट कट सकते हैं
‘चलो ख्वाबों के हम कुछ छुट्टे करा लें
दिल के इशारों के कुछ तुक्के चला लें’
भाजपा शीर्ष से जुड़े विश्वस्त सूत्र खुलासा करते हैं कि 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा अपने 290 मौजूदा सांसदों में 150 से 200 के टिकट काट सकती है। यानी अगर संबंधित सीटों पर जहां भी कोई एंटी इंकम्बेंसी है तो इसका ठीकरा भी मौजूदा सांसदों के सिर फोड़ने की ही पूरी तैयारी है। सो, कई मौजूदा सांसद अभी से अपने लिए किसी नई सीट की तलाश में जुट गए हैं। महुआ मोइत्रा प्रकरण से चर्चित रहे झारखंड के गोड्डा के सांसद िनशिकांत दुबे बिहार शिफ्ट होना चाहते हैं, कहते हैं वहां की भागलपुर सीट पर उनकी नज़र है।
ईडी के पूर्व अधिकारी व यूपी से भाजपा विधायक राजेश्वर सिंह की नजर किसी ठाकुर बहुल्य सीट पर टिकी है। चाहते तो वे गाजियाबाद सीट हैं, जहां के मौजूदा सांसद व केंद्रीय मंत्री जनरल वीके सिंह का रिटायर होना तय माना जा रहा है। अगर खुदा ना खास्ता उन्हें यह सीट नहीं मिली तो वे सुल्तानपुर या फिर जौनपुर से भी चुनाव लड़ने को तैयार हैं। फरीदाबाद के सांसद और केंद्रीय मंत्री किशनपाल गुर्जर को भी अपने टिकट कटने का अंदेशा है, सो मौके की नजाकत को भांपते हुए इस सीट से अपने खास विश्वासी और तिगांव के भाजपा विधायक राजेश नागर का नाम आगे बढ़ा रहे हैं। एक बड़े व्यवसायी विपुल गोयल भी इस सीट पर अपना दावा पेश कर रहे हैं, वहीं संघ यहां से एक जाट नेता व व्यवसायी यशवीर डागर का नाम यहां से आगे कर रहा है।
आगे बढ़ना है तो पीछे है रहना
राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में नये भगवा मुख्यमंत्रियों की ताजपोशी ने भाजपा कैडर में एक नई भावनाओं का संचार कर दिया है कि अगर पार्टी में आगे बढ़ना है तो बैक बेंचर बन कर रहना है। इन दिनों पार्टी की बैठकों में या फिर किसी इवेंट में आमतौर पर सांसद, विधायक या पार्टी के नेता पीछे की पांत में बैठना ज्यादा पसंद करते हैं ताकि पार्टी शीर्ष की नज़रों से किंचित दूर रहें, कुछ सांसदों का तो यहां तक कहना है कि हम सीट तो बदल सकते हैं पर हमारी क़िस्मत बदलने की डोर तो बस सामने वालों की हाथों में है, जिन्हें जब भी किसी को चुनना होता है तो वे पीछे से ही चुनते हैं।
महाराष्ट्र की सभी 48 सीटों पर लड़ेगी भाजपा
महाराष्ट्र की चुनावी हवा को भाजपा ने लगता है अभी से भांप लिया है। सूत्रों की मानें तो भाजपा ने राज्य में अपने दोनों सहयोगी दलों के नेताओं यानी एकनाथ शिंदे और अजित पवार को अल्टीमेटम दे दिया है कि या तो वे अपने-अपने दलों का विलय भाजपा में कर दें या फिर भाजपा से अलग चुनाव लड़ने को तैयार रहें।
सूत्र बताते हैं कि भाजपा के सर्वे में साफ हो गया है कि न तो शिवसेना से टूट कर एकनाथ शिंदे और न ही शरद पवार से टूट कर अजित पवार अपने लिए कोई बड़ा जनाधार जुटा पाए हैं, न तो उद्धव ठाकरे की शिवसेना के समर्पित वोट बैंक में और न ही शरद पवार के मराठा वोट बैंक में ये दोनों बागी नेता कोई खास सेंध लगा पाए हैं। सनद रहे कि 2019 का लोकसभा चुनाव महाराष्ट्र में भाजपा ने शिवसेना के साथ मिल कर लड़ा था और इस गठबंधन ने राज्य की 48 में से 41 सीटें जीत ली थी। इस बार भाजपा महाराष्ट्र में अपने दम पर चुनाव लड़ना चाहती है, सो यहां की सभी 48 सीटों की जिम्मेदारी 24 केंद्रीय मंत्रियों की एक टीम को सौंप दी गई है, एक मंत्री के हिस्से दो सीटें आई हैं। जैसे ठाणे सीट का जिम्मा केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर के हिस्से आया है, इस सीट से एकनाथ िशंदे के पुत्र सांसद हैं, पर भाजपा इस सीट को भी अपने हिसाब से तैयार कर रही है। यह भी मुमकिन है कि आने वाले कुछ महीनों में भाजपा िशंदे सरकार गिरा दें और महाराष्ट्र में लोकसभा चुनाव के साथ ही विधानसभा के चुनाव भी हो जाएं।
ईडी को और ताकतवर बनाने की तैयारी
भाजपा नीत केंद्र सरकार में केंद्रीय जांच एजेंसी ईडी का दबदबा पिछले कोई एक दशक से सिर चढ़ कर बोल रहा है। पर कुछ विपक्षी दलों के नेतागण हैं जो अब भी ईडी के सम्मन को किंचित उतनी गंभीरता से नहीं ले रहे हैं। इस कड़ी में आप झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का नाम ले सकते हैं, वहीं आप सुप्रीमो और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी लगातार ईडी की ताकत और उसके वर्चस्व को चुनौती दी है। मनी लाड्रिंग के मामले में ईडी के तीसरे सम्मन को धत्ता बताते हुए अभी 10 दिनों के लिए वे ‘विपस्यना शिविर’ में चले गए हैं जो कि उनका एक पूर्व निर्धारित कार्यक्रम था।
कांग्रेस की कमेटी पर सवाल
इंडिया गठबंधन में सीट शेयरिंग को लेकर चर्चा अगली मीटिंग में होनी है, सो कांग्रेस शीर्ष भी अभी से इसकी तैयारियों में जुट गया है। देशभर की माकूल लोकसभा सीटों को चिन्हित करने के लिए कांग्रेस ने आनन-फानन में एक 5 सदस्यीय कमेटी गठित कर दी है, इस कमेटी में शामिल होने वाले नेताओं में मुकुल वासनिक, भूपेश बघेल, मोहन प्रकाश, सलमान खुर्शीद व अशोक गहलोत के नाम हैं। यही कमेटी इंडिया गठबंधन में सीट बंटवारे को अंतिम रूप देने के लिए भी जिम्मेदार होगी। अब इस कमेटी में शामिल चेहरों के चयन को लेकर ही पार्टी के अंदर सवाल उठ रहे हैं।
मसलन सलमान खुर्शीद के बारे में कहा जा रहा है कि उनका यूपी में प्रभाव सिर्फ अपनी और अपनी पत्नी की सीट तक ही सीमित है, मुकुल वासनिक तो महाराष्ट्र में अपनी सीट भी नहीं बचा पाए, मोहन प्रकाश अपने राजनैतिक जीवन में सिर्फ एक चुनाव जीत पाए हैं, वह भी जनता लहर में। भूपेश बघेल के बारे में कहा जा रहा है कि छत्तीसगढ़ से बाहर उनका बहुत कम एक्सपोजर है। माना जा रहा है कि 24 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस कम से कम 270 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारना चाहती है, खड़गे का खास फोकस दलित बहुल सीटों को लेकर है।
अखिलेश की चिंता में खड़गे शामिल
सपा मुखिया अखिलेश यादव अपने प्यारे चाचा राम गोपाल यादव को साथ लेकर पिछले दिनों कांग्रेस अध्यक्ष खड़गे से मिलने पहुंचे। अखिलेश का खड़गे से कहना था कि ‘आप यूपी में हमारे सिवा किसी और दल से कोई सीधी बातचीत नहीं करेंगे।’ दरअसल पिछले दिनों यह चर्चा खूब आम रही कि बसपा सुप्रीमो मायावती ने फोन पर इंडिया अलायंस के एक प्रमुख नेता नीतीश कुमार से एक लंबी बातचीत की है, बहिन जी ने नीतीश के समक्ष इंडिया गठबंधन में शामिल होने की इच्छा भी व्यक्त की है। इस पर खड़गे ने अखिलेश को समझाते हुए कहा कि ‘यूपी में कोई भी निर्णय आपकी सहमति के बगैर नहीं हो सकता। इन विधानसभा चुनावों में मध्य प्रदेश में जो सुलूक आपके साथ हुआ, इसका हमें खेद है और भविष्य में इसकी पुनरावृत्ति नहीं होगी। आपके मन में जब भी कोई बात उठे आप मुझे फौरन फोन कर लें, आपके बगैर हम यूपी में कुछ करने की सोच भी नहीं सकते।’
– त्रिदीब रमण