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राजद्रोह कानून की वैधता ?

01:03 AM Sep 14, 2023 IST
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सर्वोच्च न्यायालय ने राजद्रोह कानून की वैधता के बारे में विचार करने हेतु इस मसले को पांच सदस्यीय संवैधानिक पीठ को सौंपने का फैसला करते हुए स्पष्ट कर दिया है कि इस बारे में केन्द्र सरकार जो भारतीय दंड संहिता के स्थान पर ‘भारतीय न्याय संहिता’ बनाने का प्रस्ताव कर रही उससे राजद्रोह की धारा में दायर विभिन्न मुकद्दमों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा क्योंकि केन्द्र ने इस कानून के तहत नये मुकद्दमे दर्ज न करने का पिछले साल न्यायालय को जो आश्वासन या हलफ दिया था उससे इस कानून की संवैधानिकता पर कोई असर नहीं पड़ता है क्योंकि 61 साल पहले 1962 में सर्वोच्च न्यायालय की एक पांच सदस्यीय  संवैधानिक पीठ ही इसे संवैधानिक या वैध करार दे चुकी है। भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए राजद्रोह के मामलों पर लागू होती है। भारत के स्वतन्त्र होने के बाद से ही यह मांग सभी क्षेत्रों से उठती रही है कि अंग्रेजों के बनाये इस कानून को समाप्त किया जाना चाहिए। 
लोकतान्त्रिक प्रणाली में सत्ता के विरुद्ध आख्यान करना विपक्षी दलों का धर्म होता है और तर्कपूर्ण आलोचना के माध्यम से ही इस व्यवस्था में सरकारें बदली जाती हैं क्योंकि जनता का बहुमत जिस पक्ष के साथ होता है वही सरकार पर काबिज हो जाता है। राजद्रोह कानून को स्वयं ब्रिटेन ने भी बहुत पहले ही समाप्त कर दिया था। अतः न्यायालय ने आदेश दिया है कि 124ए को चुनौती देने वाली जितनी भी याचिकाएं दायर हुई हैं वे सभी मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति डी.वाई. चन्द्रचूड के समक्ष पेश की जायें जिससे वे उन सबको नई गठित की जाने वाली पांच सदस्यीय संवैधानिक पीठ को प्रेषित कर सकें। वर्तमान में इस विषय पर मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति चन्द्रचूड के नेतृत्व में विचार कर रही तीन सदस्यीय पीठ ने केन्द्र सरकार की इस दलील को खारिज कर दिया कि इस मामले पर आगे सुनवाई को तब तक टाल दिया जाये जब तक कि सरकार भारतीय न्याय संहिता  विधेयक को संसद में पेश करने के बारे में अन्तिम निर्णय करती है। फिलहाल यह विधेयक संसद की स्थायी समिति के पास विचार के लिए भेजा गया है। 
केन्द्र सरकार पुरानी भारतीय दंड संहिता को नई भारतीय न्याय संहिता से बदलना चाहती है। इस पर न्यायमूर्तियों का कहना था कि न्याय संहिता फौजदारी कानूनों का ही विधान होगी जिन्हें पिछली तारीखों से लागू नहीं किया जा सकता है। नई संहिता  अपनाये जाने के दिन के आगे से ही लागू होगी अतः पुराने मुकद्दमों का फैसला चालू राजद्रोह कानून के तहत ही किया जायेगा इसलिए यह जरूरी है कि धारा 124ए की संवैधानिकता के बारे में अंतिम फैसला किया जाये। क्योंकि 1962 में केदारनाथ सिंह बनाम बिहार सरकार मुकद्दमे में इस धारा को संवैधानिक करार दिया गया था। अतः इस सम्बन्ध में दायर नई याचिकाओं का निपटारा जरूरी हो जाता है। 1962 में पांच सदस्यीय संवैधानिक  पीठ ने ही फैसला दिया था अतः नई याचिकाओं पर निर्णय देने के लिए भी कम से कम पांच सदस्यीय पीठ का होना जरूरी है। फिलहाल पीठ केवल तीन सदस्यीय है। केन्द्र सरकार की तरफ से इसके अटार्नी जनरल आर. वेंकटरमणी इस बात पर जोर दे रहे थे कि केन्द्र सरकार भारतीय न्याय संहिता सम्बन्धी विधेयक संसद की स्थायी समिति को विचारार्थ भेज चुकी है। अतः न्यायालय को इस बारे में संसदीय प्रक्रिया पूरी होने तक  प्रतीक्षा करनी चाहिए। इस पर याचिकाकर्ताओं के वकील श्री कपिल सिब्बल ने तर्क रखा कि मामले धारा 124ए के अन्तर्गत  अदालतों में विचाराधीन हैं अतः इसका पांच सदस्यीय संवैधानिक पीठ को भेजा जाना बहुत जरूरी है। जहां तक नई दंड संहिता भारतीय न्याय संहिता का सवाल है तो इसमें तो प्रावधान और भी अधिक सख्त और निरंकुशता वाले हैं। मगर वेंकटरमणी का कहना था कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय धारा 124ए के पिछले सभी मुकद्दमों को स्थगित कर चुका है फिर यह भी संभावना है कि संसद की स्थायी समिति ऐसे मुकद्दमों के बारे में भी अपनी राय रखे। इससे यही लगता है कि केन्द्र सरकार नये फौजदारी कानूनों को लागू करने की जल्दी में हो सकती है मगर सब कुछ संसद की स्थायी समिति पर निर्भर करेगा। 
यह भी सत्य है कि स्थायी समिति को देश के फौजदारी कानून के विशेषज्ञों की राय भी मांगनी पड़ेगी और आम जनता के सुझाव भी मांगे जायेंगे। मगर नई न्याय संहिता को जल्दबाजी में लागू  करना भी खतरे से खाली नहीं होगा क्योंकि इसके लिए सबसे पहले फौजदारी वकीलों को ही बिल्कुल नये सिरे से तैयार होना होगा और मैजिस्ट्रेट से लेकर जजों तक को भी। अभी तो उनके सामने पुराने मुकद्दमों की नजीर रहती है जिससे उन्हें न्याय करने में आसानी रहती है। नई दंड संहिता के विभिन्न प्रावधानों के बारे में वकीलों और कानूनी जानकारों की बहुत ही अलग राय भी सुनने को मिल रही है। इस बारे में पूरे देश में आम सहमति बनाये जाने की आवश्यकता होगी। मगर धारा 124ए का जहां तक सम्बन्ध है तो सर्वोच्च न्यायालय इसकी संवैधानिकता की जांच करने को पूरी तरह उचित मानता है।
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