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जम्मू-कश्मीर में मतदान

04:10 AM Sep 20, 2024 IST
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जम्मू-कश्मीर विधानसभा के लिए हुए प्रथम चरण के मतदान में मतदाताओं ने पूरे उत्साह के साथ भाग लिया। इससे यह पता चलता है कि देश के सिहे जाने वाले इस राज्य के लोगों में लोकतन्त्र के प्रति पूरा समर्पण भाव है जो कि इस राज्य का अनुच्छेद 370 के हटने से खत्म हुए विशेष दर्जे के बावजूद किसी प्रकार कम नहीं हुआ है क्योंकि इन चुनावों के पहले चरण में राज्य की कुल 90 सीटों में से 24 पर पड़े वोटों का अनुपात 61.11 प्रतिशत रहा है जो कि इससे पहले हुए 2008 व 2014 के चुनावों में हुए मतदान प्रतिशत के लगभग बराबर ही है। राज्य में 2014 के बाद दस वर्ष पूरे हो जाने पर पहली बार चुनाव हो रहे हैं जबकि अगस्त 2019 में राज्य का विशेष दर्जा केन्द्र की मोदी सरकार ने खत्म कर दिया था। जब यह दर्जा अनुच्छेद 370 समाप्त करके खत्म किया गया था तो रियासत के कुछ क्षेत्रीय दलों ने प्रतिक्रिया व्यक्त की थी कि इससे राज्य के लोगों का प्रजातंत्र में विश्वास हिल जायेगा। हालांकि अगस्त 2019 में जब अनुच्छेद 370 को हटाया गया था तो इस पूरी रियासत को दो भागों में बांट कर लद्दाख को इससे अलग कर दिया गया था और जम्मू-कश्मीर को एेसा केन्द्र प्रशासित क्षेत्र बना दिया गया था जिसकी अपनी विधानसभा होगी मगर इसके अधिकार अन्य पूर्ण राज्यों की विधानसभाओं के बराबर नहीं होंगे।
वर्तमान विधानसभा का कार्यकाल पांच साल होगा जबकि इससे पूर्व इस राज्य की पूर्ण विधानसभा का कार्यकाल छह वर्ष का होता था। राज्य के लोगों ने अपनी विधानसभा की बदली हैसियत के बावजूद जिस प्रकार चुनावों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया उसका संदेश यही जाता है कि जम्मू-कश्मीर के मतदाता बदली हुई परिस्थितियों में भी अपने लोकान्त्रिक अधिकार का प्रयोग करके राज्य के पुनर्निर्माण में अपनी हिस्सेदारी पक्की करना चाहते हैं। इससे यह भी सिद्ध होता है कि कश्मीरी जनता भी भारतीय संविधान के प्रति उतनी ही समर्पित है जितने कि अन्य राज्यों के लोग। वैसे कश्मीर के इतिहास की यह भी दीवार पर लिखी इबारत है कि यहां के लोगों ने 1947 में मजहब के आधार पर हिन्दोस्तान के भारत व पाकिस्तान में बंटवारे का पुरजोर विरोध किया था जबकि यहां बहुसंख्या मुस्लिम नागरिकों की थी। पहले के चरण में जिन 24 सीटों पर मतदान हुआ उनमें से आठ जम्मू क्षेत्र में आती हैं जबकि 16 कश्मीर घाटी में। इन सभी स्थानों पर मतदान पिछले चुनावों के मुकाबले कहीं भी फीका नहीं रहा।
जम्मू में कुछ स्थानों पर जमकर मतदान हुआ हालांकि कुछ सीटों पर 2014 के मुकाबले कम वोट पड़े परन्तु फिर भी इसे उत्साहजनक ही कहा जायेगा, क्योंकि कहीं-कहीं 70 प्रतिशत से भी ज्यादा मत पड़े। यह उत्साह इस हकीकत के बावजूद रहा कि पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद ने अब जम्मू क्षेत्र को ही अपने निशाने पर रखा हुआ है। जम्मू क्षेत्र के किश्तवाड़ जिले की तीन सीटों में से इन्दरवाल में तो 80 प्रतिशत से भी थोड़ा ऊपर मतदान हुआ जबकि पडेर नागसगेनी में 76 प्रतिशत व किश्तवाड़ में 75 प्रतिशत से ऊपर मतदान हुआ। हालांकि किश्तवाड़ में 2014 में 78 प्रतिशत से भी ऊपर मतदान हुआ था मगर ताजा आंकड़े भी कम उत्साहजनक नहीं कहे जा सकते। जम्मू के ही डोडा इलाके में भी मतदाताओं ने भारी संख्या मे मत डाले जबकि इसी जिले में जून महीने के बाद से कुछ दिनों पहले तक आतंकवादियों ने छह सैनिकों को शहीद कर दिया था। डोडा पश्चिम सीट पर 74 प्रतिशत से ज्यादा मतदान हुआ और डोडा में यह औसत 70.21 रहा जबकि भदरवाह में 65 प्रतिशत से ज्यादा मतदान हुआ। इसी प्रकार बनिहाल में 71 प्रतिशत व रामबन में 67 प्रतिशत से ऊपर मतदान हुआ। ये आंकड़े बताते हैं कि राज्य के लोगों में आतंकवाद के प्रति किसी प्रकार का खौफ नहीं है और उन्होंने निर्भय होकर अपने सबसे बड़े लोकतान्त्रिक अधिकार का उपयोग किया। इसी प्रकार कश्मीर घाटी की 16 सीटों पर भी कमोबेश मतदान प्रतिशत वही रहा जो 2014 के चुनावों में था।
कश्मीर घाटी में पिछले तीस सालों में पहली बार मतदान पूरी निर्भयता के माहौल में हुआ क्योंकि मतदान केन्द्रों पर मतदाताओं की जांच नहीं की गई और न ही जरूरत से ज्यादा पुलिस व अर्धसैनिक बलों की नियुक्ति की गई। इन सभी 16 सीटों पर मतदान प्रतिशत 53.55 रहा जबकि 2014 में यह 54 प्रतिशत से थोड़ा अधिक दर्ज हुआ था। इससे यह साबित होता है कि कश्मीर घाटी के लोगों में निर्भयता का माहौल पैदा करने में प्रशासन सफल हुआ है परन्तु चुनावों के नतीजे क्या होंगे यह तो आगामी 8 अक्तूबर को ही पता चलेगा जबकि अभी दो चरणों का मतदान आगामी 1 अक्तूबर तक और होना है लेकिन इतना निश्चित है कि जम्मू-कश्मीर में वर्तमान चुनाव पूरे नये वातावरण में हो रहे हैं। हालांकि असली मुकाबला जम्मू व कश्मीर क्षेत्रों में अलग-अलग तरीके का है। जम्मू में इंडिया गठबन्धन व भाजपा के बीच सीधी लड़ाई है तो कश्मीर घाटी में इंडिया गठबन्धन व अन्य छोटे-छोटे दलों व निर्दलीयों के बीच असली टक्कर मानी जा रही है।

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