India WorldDelhi NCR Uttar PradeshHaryanaRajasthanPunjabJammu & Kashmir Bihar Other States
Sports | Other GamesCricket
Horoscope Bollywood Kesari Social World CupGadgetsHealth & Lifestyle
Advertisement

जल संकट : एक बार फिर वही रोना

03:38 AM Sep 16, 2024 IST
Advertisement

देश के ज़्यादातर हिस्से में भारी वर्षा ने हालात बेक़ाबू कर दिये हैं और समाधान दिखाई नहीं देता। कई बांधों में जल का स्तर खतरे के निशान से भी ऊपर चला गया है। ये पानी अगर छूट कर निकल पड़ा तो दूर-दूर तक तबाही मचा देगा। नदियों के बहाव में पुल बहे जा रहे हैं। जिनमें आए दिन जान-माल की हानि हो रही है। अनेक प्रदेशों के बड़े शहरों की पॉश बस्तियों में कमर तक पानी भर रहा है। गरीब बस्तियों की तो क्या कही जाए? वे तो हर आपदा की मार सहने को अभिशप्त हैं। देश की राजधानी दिल्ली का ही इतना बुरा हाल है कि यहां जल से भरे नालों और बिना ढक्कन के मैनहोलों में कितनी ही जानें जा चुकी हैं। अनियंत्रित जल का भराव, बिजली के खम्बों को अपनी लपेट में ले रहा है, जिनमें फैला करंट जानलेवा सिद्ध हो रहा है। नगरपालिका हो या महापालिकाएं हों इस अतिवृष्टि के सामने बेबस खड़ी हैं। इसके अपने अलग कई कारण हैं।
पहले तो इंजीनियरिंग डिजाइन में ही गड़बड़ी होती है। दूसरा, जल के प्रवाह को और धरती के ढलान को निर्माण करते समय गंभीरता से नहीं लिया जाता। तीसरा, जल बहने के मार्ग कचड़े से पटे होने के कारण वाटर-लॉगिंग को पैदा करते हैं। ये सब ‘विकास’ अगर सोच-विचार कर किया जाता तो ऐसे हालात पर क़ाबू पाया जा सकता था। पर जब उद्देश्य समस्या का हल न निकालना हो कर बल्कि अपना हित साधना हो तो विकास के नाम पर ऐसा ही विनाश होगा।
इस संदर्भ में, अपने इसी कॉलम में, शहरों में जल भराव की समस्या के एक महत्वपूर्ण कारण को पिछले दो दशकों में मैं कई बार रेखांकित कर चुका हूं। पर केंद्र और प्रांतों के शहरी विकास मंत्रालय, इस पर कोई ध्यान नहीं देते। समस्या यह है कि हर शहर में सड़कों की मरम्मत या पुनर्निर्माण का कार्य केवल विभाग और ठेकेदार के मुनाफ़ा बढ़ाने के उद्देश्य से किए जाते हैं, जनता की समस्या का हल निकालने के लिए नहीं। हर बार पुरानी सड़क पर नया रोड़ा-पत्थर डाल कर उसे उसके पिछले स्तर से 8-10 इंच ऊंचा कर दिया जाता है और यह क्रम पिछले कई दशकों से चल रहा है। जिसका परिणाम यह हुआ है कि आज अच्छी-अच्छी कॉलोनियों की सड़कें, उन सड़कों के दोनों ओर बने भवनों से क़रीब एक-एक मीटर ऊंची हो गई हैं। नतीजतन, हल्की सी बारिश में ही इन घरों की स्थित नारकीय हो जाती है। क्योंकि सड़क पर गिरने वाला वर्ष का जल, इन घरों में जमा हो जाता है। भगवान श्री कृष्ण की नगरी मथुरा हो या महाकाल की नगरी उज्जैन, आप इस समस्या का साक्षात प्रमाण देख सकते हैं। जबकि होना यह चाहिए कि हर बार सड़क की मरम्मत या पुनर्निर्माण से पहले उसे खोद कर उसके मूल स्तर पर ही बनाया जाए। मैंने दुनिया के कई दर्जन देशों की यात्रा की है। पर ऐसा भयावह दृश्य कहीं नहीं देखा जहां हर कुछ सालों में लोगों के घर के सामने की सड़क ऊंची होती जाती है।
आज़ादी मिलने से आज तक खरबों रुपया जल प्रबंधन के नाम पर ख़र्च हो गया पर वर्षा के जल का संचय हम आज तक नहीं कर पाए। हमारे देश में वर्ष भर में बरसने वाले जल का कुल 8 फीसद का ही संचयन हो पाता है। बाक़ी 92 फीसद वर्षा का शुद्ध जल बह कर समुद्र में मिल जाता है। जिसका परिणाम यह होता है कि गर्मी की शुरुआत होते ही देश में जल संकट शुरू हो जाता है। जैसे-जैसे गर्मी बढ़ती है, वैसे-वैसे यह संकट और भी गहरा हो जाता है।
राजस्थान, गुजरात, आंध्र प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र जैसे अनेक प्रांतों में तमाम शहर हैं जो अपनी आबादी की जल की मांग की आपूर्ति नहीं कर पा रहे। आज देश में जल संकट इतना भयावह हो चुका है कि एक ओर तो देश के अनेक शहरों में सूखा पड़ता है तो दूसरी ओर कई शहर हर साल बाढ़ की चपेट में आ जाते हैं। इससे आम जन-जीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है। चेन्नई देश का पहला ऐसा शहर हो गया है जहां भूजल पूरी तरह से समाप्त हो चुका है। जहां कभी चेन्नई में 200 फुट नीचे पानी मिल जाता था आज वहां भूजल 2000 फुट पर भी पानी नहीं है। यह एक गम्भीर व भयावह स्थिति है। ये चेतावनी है भारत के बाकी शहरों के लिए कि अगर समय से नहीं जागे तो आने वाले समय में ऐसी दुर्दशा और शहरों की भी हो सकती है। चेन्नई में प्रशासन देर से जागा और अब वहां बोरिंग को पूरी तरह प्रतिबंध कर दिया गया है।
एक समय वो भी था जब चेन्नई में खूब पानी हुआ करता था। मगर जिस तरह वहां शहरीकरण हुआ उसने जल प्रबंधन को अस्त व्यस्त कर दिया। अब चेन्नई में हर जगह सीमेंट की सड़क बन गई है। कही भी खाली जगह नहीं बची, जिसके माध्यम से पानी धरती में जा सके। बारिश का पानी भी सड़क और नाली से बह कर चला जाता है कही भी खाली जगह नहीं है जिससे धरती में पानी जा सके। इसलिए प्रशासन ने आम लोगों से आग्रह किया है कि वे अपने घरों के नीचे तलघर में बारिश का जल जमा करने का प्रयास करें। ताकि कुछ महीनों तक उस पानी का उपयोग हो सके। चेन्नई जैसे 22 महानगरों में भूजल पूरी तरह समाप्त हो गया है। जहां अब टैंकरों, रेल गाड़ियों और पाइपों से दूर-दूर से पानी लाना पड़ता है। अगर देश और प्रांतों के नीति निर्धारक और हम सब नागरिक केवल वर्षा के जल का सही प्रबंधन करना शुरू कर दें तो भारत सुजलाम-सुफलाम देश बन जाएगा, जो ये कभी था। ‘पानी बीच मीन प्यासी, मोहे सुन-सुन आवे हांसी।’

- विनीत नारायण

Advertisement
Next Article