क्या ख़ूबसूरत जनादेश है...
भारत की जनता ने अपना आदेश सुना दिया। क्या ख़ूबसूरत जनादेश है ! एकदम संतुलन क़ायम कर दिया। बता दिया कि लोकतंत्र, आज़ाद प्रेस, अभिव्यक्ति की आजादी सब में आम आदमी की पूर्ण आस्था है, यह केवल मिडिल क्लास मूल्य ही नहीं है। यह बड़ा शोरगुल करने और उसे पसंद करने वाला देश है। किसी को ज़रूरत से अधिक शक्तिशाली नहीं देखना चाहते। चुपचाप किसी का आदेश सुनने वाला देश भी नहीं है। इसीलिए ‘इंडिया’ गठबंधन की मार्फ़त इंडिया ने संदेश भेज दिया है कि उसे देश की राजनीतिक दिशा पसंद नहीं है। जो सरकार बनने जा रही है वह एनडीए की सरकार है मोदी सरकार नहीं। पर विपक्ष में जान डालते हुए भी बता दिया गया है कि इस अस्थिर गठबंधन को पहले अपना घर ठीक करना होगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पश्चिम बंगाल में प्रचार करते हुए कहा था कि देश में बड़ा राजनीतिक भूचाल आएगा, पर उन्होंने यह कल्पना नहीं की होगी कि कांग्रेस के मुख्यालय में भी ढोल बजेंगे। संसद के अंदर और बाहर विपक्ष और आक्रामक होगा। जिस तरह 140 विपक्षी सांसदों को एक साथ सदन से निकाल दिया गया था, ऐसा दोहराना अब सम्भव नहीं होगा। जनादेश सरकार और विपक्ष दोनों के लिए है। मेरा भारत सचमुच महान है।
एक पार्टी के शासन के दिन फ़िलहाल लद गए। एक व्यक्ति की गारंटी पर भी विश्वास नहीं रहा। ‘वन नेशन वन पोल’ अर्थात सारे देश में एक साथ चुनाव, और एक जैसा नागरिक क़ानून जैसे कार्यक्रम रुक जाएंगे। जिन प्रादेशिक पार्टियों पर निर्भरता है वह इजाज़त नहीं देंगी क्योंकि उन्हें माइनॉरिटी वोट की ज़रूरत है। याद रखना चाहिए कि नायडू भी दो महीने जेल में काट चुके हैं। नरेन्द्र मोदी के लिए गठबंधन चलाना नया अनुभव होगा। उनका स्वभाव भी अलग है। अभी तक वह अपनी पार्टी के बहुमत के बल पर डट कर शासन करते रहे हैं, पर अब वह नीतीश कुमार और चन्द्रबाबू नायडू जैसे अविश्वसनीय साथियों पर निर्भर होंगे।
यह समझौता आसान नहीं होगा। ऐसा जनादेश क्यों आया? इंडिया गठबंधन की 100 से अधिक सीटें बढ़ गईं और एनडीए की 60 के क़रीब कम हुई हैं। भाजपा बहुमत से 33 नीचे खिसक गई है और पिछली बार से 63 सीटें कम हुई हैं। बड़ा कारण है कि लोग अच्छी सरकार भी चाहते हैं और मज़बूत विपक्ष भी। विपक्ष के नेताओं के पीछे सरकारी एजेंसियों को छोड़ने से ग़लत संदेश गया है। भाजपा के अंदर दूसरी पार्टियों के बदनाम नेताओं की भर्ती से भी गलत संदेश गया है। लोग नहीं चाहते कि विपक्ष को मसल दिया जाए। वह ‘कांग्रेस मुक्त’ या विपक्ष मुक्त भारत नहीं चाहते। कांग्रेस की सीटें दोगुनी कर जनता ने यह स्पष्ट भी कर दिया।
यह चुनाव बता गए कि अब हिन्दू-मुसलमान का मुद्दा नहीं चलता। यह केवल उन्हीं को प्रभावित करता है जो पहले ही पक्के हैं। ध्रुवीकरण का प्रयास सफल नहीं हुआ। सड़क चलता आदमी कह रहा है कि मंदिर-मस्जिद बहुत हो चुका इसीलिए मंगलसूत्र या मटन जैसे मुद्दे लोगों को अछूते छोड़ गए हैं। इसका उल्टा प्रभाव यह हुआ कि मुसलमान जो पिछले चुनावों में बंट कर वोट डालते रहे,ने इस बार एकजुट होकर भाजपा के खिलाफ वोट डाला है। भाजपा को बड़ा धक्का उत्तर प्रदेश में लगा है जहां समाजवादी पार्टी और कांग्रेस ने मिल कर बड़ा खेला कर दिया। भाजपा को बहुत कठोर अस्वीकृति मिली है। भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा का राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ को दिया कड़ा संदेश कि ‘अब हम सक्षम हैं’, महंगा पड़ा लगता है। ‘यूपी के लड़कों’ ने कमाल कर दिखाया। किसान आन्दोलन, बेरोज़गारी और अग्निपथ जैसी योजनाओं ने असंतोष का माहौल तैयार कर दिया जो अखिलेश यादव और राहुल गांधी भुनाने में सफल रहे। यह डबल इंजन चल निकला। समाजवादी पार्टी सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरी है, पर इससे भी बड़ी ख़बर कांग्रेस का देश भर में पुनरुत्थान हुआ है। बहुत समय के बाद पार्टी 100 तक पहुंच सकी है। यह भी उल्लेखनीय है कि अयोध्या जिस फ़ैज़ाबाद चुनाव क्षेत्र में स्थित है, वहां भाजपा हार गई। भावनात्मक मुद्दों के ऊपर लोगों ने रोज़मर्रा के मसलों को प्राथमिकता दी है।
महंगाई और बेरोज़गारी बहुत बड़े मसले हैं। प्रधानमंत्री और उनके सहयोगियों की सोच है कि जैसे-जैसे अर्थव्यवस्था बढ़ेगी रोज़गार खुद बढ़ जाएगा। पर परेशान 18-35 वर्ष के युवा इंतज़ार करने के लिए तैयार नहीं हैं। अग्निपथ योजना जिसके बारे मैं भी सावधान करता रहा हूं, से भी युवा खफा हैं। राजहठ छोड़ इसमें सुधार करना चाहिए। राहुल गांधी का वायदा कि उनकी सरकार आते ही वह इसे रद्द कर देंगे, काम आया लगता है। युवाओं की बेचैनी और सड़क पर ग़ुस्से को भाजपा नेतृत्व पहचान नहीं सका। रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर सी.रंगाराजन ने लिखा है ‘रोज़गार के बिना विकास’ चिन्ता का विषय है। सरकार बताती रहती है कि हमारी अर्थव्यवस्था इतनी बढ़ गई जो विश्व में पांचवीं हो गई, पर इससे ग़रीबों और बेरोज़गारों का पेट नहीं भरता। बेरोज़गारी आने वाली सब सरकारों की परीक्षा लेगी।
बहुत समय से गांधी भाई-बहन का मज़ाक़ उड़ाया जाता रहा। कभी ‘पप्पू’ तो कभी ‘युवराज’ तो कभी ‘राहुल बाबा’ कहा गया। इसका जवाब दे दिया गया है। कांग्रेस के पुनरुत्थान और विपक्षी एकता की नींव राहुल गांधी की दो यात्राओं ने डाली थी। पहली बार देश ने उनके व्यक्तित्व के संवेदनशील पक्ष को देखा और पसंद किया। इंडिया गठबंधन में भी खुद को पीछे रख उन्होंने मलिक्कार्जुन खड़गे को आगे किया ताकि आलोचना न हो। संविधान ख़तरे में है का नारा देकर उन्होंने भाजपा को रक्षात्मक बना दिया और पहल भाजपा के हाथ से खिसक गई। क्रिकेट की भाषा में, भाजपा को अपनी पिच पर खेलने पर मजबूर कर दिया। यह कह कर कि भाजपा 400 पार इसलिए चाहती है क्योंकि वह अम्बेडकर का संविधान बदल कर आरक्षण ख़त्म करना चाहती है, राहुल गांधी ने दलितों को अपने पक्ष में मोड़ लिया। भाजपा नेतृत्व को बार- बार कहना पड़ा कि वह संविधान को बदलना नहीं चाहते, पर शंका गई नहीं क्योंकि भाजपा के ही कई नेता यह उछालते रहे हैं कि वह संविधान बदलना चाहते हैं। जनता ने संविधान बदलने का अधिकार ही छीन लिया। न दो तिहाई बहुमत होगा, न संविधान ही बदला जाएगा। अडानी और अम्बानी उछाल कर राहुल गांधी बढ़ रही ग़ैर-बराबरी को राजनीति के केन्द्र में स्थापित करने में सफल रहे।
राहुल गांधी का उत्थान हमारी राजनीति की महत्वपूर्ण घटना है। वह विपक्ष नेता बन सकते हैं। उनके ख़िलाफ़ जो प्रचार किया गया वह सब उल्टा पड़ा। उनका विरोध करने के लिए अब नई शब्दावली घढ़नी पड़ेगी। न ही परिवारवाद का आक्षेप ही काम आ रहा है क्योंकि भाजपा के अपने अन्दर वह लोग भरे पड़े हैं जो परिवार की सीढ़ी पकड़ कर ऊपर तक पहुंचे हैं लेकिन अब राहुल गांधी को भी झिझक छोड़ कर दोनों हाथ से ज़िम्मेवारी सम्भालनी चाहिए। जैसे कहा गया है,
ग़र पार उतरना है तो मौजों से खेलो
कहां तक चलोगे किनारे किनारे
पर राहुल गांधी को जाति जनगणना का मामला सोच कर उठाना चाहिए। ‘जितनी आबादी उतना हक़’ वह बंदूक़ है जो दोनों तरफ़ फ़ायर करती है। हर बात आबादी के अनुसार नहीं हो सकती। मैरिट को तिलांजलि देकर देश तरक्की नहीं कर सकता। वी. पी. सिंह तो चाहते थे कि डाक्टर भी जाति के मुताबिक़ चुने जाएं, पर जब खुद को किडनी की तकलीफ़ हुई तो करदाता के खर्चे पर लंदन भाग गए थे। राहुल क्या चाहते हैं कि जो डाक्टर इलाज करे या जो पायलट जहाज़ उड़ाए वह अपनी क्षमताओं अनुसार चुने जाएं या जाति अनुसार? इस मामले में सोच-समझ कर कदम उठाने चाहिए ताकि समाज में और तनाव पैदा न हो।
भाजपा के लिए ओडिशा से अच्छी खबर है जहां बीमार नवीन पटनायक की पार्टी हार गई और भाजपा की एक और सरकार बनने वाली है। भाजपा के लिए अच्छी खबर पूर्व भारत से ही है जहां सहयोगी चन्द्रबाबू नायडू की आंध्र प्रदेश में सरकार बनने जा रही है। टीडीपी के 16 सांसद सरकार बनाने में निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं। कांग्रेस के लिए पूर्व भारत विशेष तौर पर पश्चिम बंगाल, ओडिशा और आंध्र प्रदेश चुनौती हैं जहां उसकी उपस्थिति मामूली है। दिल्ली, गुजरात, मध्यप्रदेश, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में भी कांग्रेस कमजोर रही है। हिमाचल में तो उनकी अपनी सरकार है जो अब और कठिनाई में फंसेगी। बचाव यह रहा है कि साथ हुए 6 विधानसभा उपचुनाव में से कांग्रेस 4 जीतने में सफल रही। आप और केजरीवाल के लिए बड़ा धक्का है क्योंकि केजरीवाल ने कहा था कि 'अगर दिल्ली वाले चाहते हैं कि में बाहर आ जाऊं तो आप को वोट दो’। भाजपा वहां 7-0 से विजयी रही है। महाराष्ट्र में भाजपा द्वारा शिवसेना और एनसीपी को तोड़ना महंगा साबित हुआ है। बिहार का परिणाम हैरान करने वाला है। नीतीश कुमार की कलाबाज़ी के बावजूद लोगों ने उन्हें अच्छा समर्थन दिया है। नायडू की तरह वह भी किंग मेकर की श्रेणी में आ गए हैं।
नरेन्द्र मोदी तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने जा रहे हैं जो कीर्तिमान उनसे पहले केवल जवाहरलाल नेहरू को ही प्राप्त था। पर एक बड़ा अंतर है। नेहरू जी के पास 494 में से अपने 361 सांसद थे जबकि नरेन्द्र मोदी की पार्टी बहुमत के लिए दूसरों पर निर्भर है जिसमें नीतीश कुमार और चन्द्रबाबू नायडू जैसे लचकदार लोग शामिल हंै। ग्रामीण तनाव, महंगाई और बेरोज़गारी के बड़े मुद्दे हैं। चीन फिर तंग कर सकता है। पंजाब से चिन्ताजनक समाचार है कि उग्रवादी पृष्ठभूमि वाले दो उम्मीदवार जीत गए हैं। यहां कांग्रेस से व्यापक दलबदल करवाने के बावजूद भाजपा का सफ़ाया हो गया। पंजाब की सुध लेने की ज़रूरत है नहीं तो यह फिर समस्या बन सकता है। ख़ुशी है कि चुनावी लोकतंत्र ज़िन्दा है और सभ्य तरीक़े से बिना हिंसा के नई सरकार बनने जा रही है लेकिन परिदृश्य बदल गया। विपक्ष को अपनी लापता आवाज़ मिल गई और नरेन्द्र मोदी को सत्ता पकड़ाते हुए भी जनता ने सावधान कर दिया कि आख़िर में हम मालिक हैं। ग़ज़ब का जनादेश है कि न कोई हारा है, पर न ही कोई जीता है!