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कौन करवाता है योजनाबद्ध धर्मांतरण

05:15 AM Sep 17, 2024 IST
कौन करवाता है योजनाबद्ध धर्मांतरण

भारत के प्रत्येक नागरिक को किसी धर्म को मानने या ना मानने या फिर किसी भी धर्म से जुड़ने का अधिकार संविधान देता है, पर किसी प्रलोभन या गलतफ़हमी में योजनाबद्ध रूप से किसी तरह के धर्मांतरण को अपराध माना गया है। इस आलोक में उत्तर प्रदेश की एक विशेष अदालत द्वारा हाल ही में अवैध धर्म परिवर्तन के मामले में दोषी करार दिये गये 12 लोगों को उम्रकैद और चार अन्य दोषियों को 10-10 वर्ष कैद की सजा सुनाना महत्वपूर्ण है। अदालत ने सभी आरोपियों को दोषी करार दिया। अदालत की तरफ से जारी आदेश के मुताबिक, धर्मांतरण करवाने के धंधे से जुड़े शातिर लोगों को भारतीय दंड संहिता की धारा 121ए (राष्ट्रद्रोह) के तहत सजा सुनायी गई। विशेष लोक अभियोजक एमके सिंह के मुताबिक, उमर गौतम और मामले के अन्य अभियुक्त एक साजिश के तहत धार्मिक उन्माद, वैमनस्य और नफरत फैलाकर देशभर में अवैध धर्मांतरण का गिरोह चला रहे थे। उनके तार कई दूसरे देशों से भी जुड़े थे। इसके लिए आरोपी हवाला के जरिए विदेशों से धन भेजे जाने के मामले में भी लिप्त थे। वे आर्थिक रूप से कमजोर महिलाओं और दिव्यांगों को लालच देकर और उन पर अनुचित दबाव बनाकर बड़े पैमाने पर उनका धर्म परिवर्तन करा रहे थे।

उमर गौतम को मुफ्ती काजी जहांगीर आलम कासमी के साथ 20 जून 2021 को दिल्ली के जामिया नगर से गिरफ्तार किया गया था। वह एक ऐसे अवैध संगठन का संचालन कर रहा था जो उत्तर प्रदेश में मूक- बधिर छात्रों और गरीब लोगों को इस्लाम में धर्मांतरित कराने में शामिल था। इस बात की पुरज़ोर आशंका जताई जा रही है कि इसके लिए उसे पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई से धन मिलता था। उमर गौतम पहले हिंदू था लेकिन उसने मुस्लिम धर्म स्वीकार कर लिया और धर्मांतरण कराने के अवैध धंधे में सक्रिय हो गया। उसने करीब एक हजार गैर मुस्लिम लोगों को इस्लाम में धर्मांतरित कराया और उनकी मुस्लिमों से दूसरी या तीसरी शादी कराई है।
देखिए, भारत में धर्म परिवर्तन को लेकर बहस तो होती रही है, होनी भी चाहिये। भारतीय संविधान धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी देता है, जिसमें स्वेक्षा या स्वविवेक से धर्म बदलने का अधिकार भी शामिल है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 में धार्मिक स्वतंत्रता और धर्म बदलने के अधिकार की बात तो कही गई है। पर उमर गौतम और उनके साथी तो गरीब-गुरुबा लोगों को लालच और जोर-जबरदस्ती से धर्मांतरण करवा रहे थे। गौतम और उनका गिरोह भूल गया था कि धर्म परिवर्तन सामाजिक एकता को कमजोर कर सकता है और समाज में भयंकर नफरत पैदा कर सकता है। भारत में धर्म परिवर्तन एक संवेदनशील मुद्दा है, जिसमें कानूनी, धार्मिक और सामाजिक सभी पहलू शामिल हैं।

कुछ साल पहले केरल के प्रतिष्ठित फ़िल्म निर्माता निर्देशक अली अकबर और उनकी ईसाई पत्नी लूसीअम्मा ने आर्य समाज में हवन के जरिए हिन्दू धर्म अंगीकार कर लिया था। आर्य समाज के स्वामी जी द्वारा उनका नया नामकरण भी कर दिया गया है। अली अकबर को नया नाम मिला था राम सिम्हन। हिन्दू धर्म ही क्यों? यह प्रश्न पूछे जाने पर अली अकबर ने कहा था, ‘क्योंकि हिंदू धर्म कोई धर्म नहीं बल्कि एक संस्कृति है। यहां नर्क में जाने का डर नहीं है। आप एक इंसान की तरह जी सकते हैं क्योंकि भगवान आपके अंदर हैं। अपने भीतर ईश्वर को देखना एक महान विचार है।’ कहते हैं कि राम सिम्हन केरल में हिंदू धर्म अपनाने वाले पहले मुसलमान थे लेकिन, यह राम सिम्हन के स्वविवेकपूर्ण निर्णय को दर्शाता है। इस पर कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिये।

एक बात बहुत साफ है कि किसी को लालच देकर या जोर जबरदस्ती धर्मांतरण करवाना तो कतई सही नहीं माना जा सकता है। समझ नहीं आता कि कुछ धर्मों से जुड़े लोग क्यों इसी फिराक में रहते हैं कि उनके धर्म से अन्य धर्मों को मानने वाले जुड़ जाएं। गुस्ताखी माफ, कई इस्लामिक और ईसाई संगठन इसी कोशिश में रहते हैं कि दूसरे धर्म को मानने वाले उनके मजहब का हिस्सा बन जाएं? यह कोई बात हुई क्या? फिर यदि बाकी धर्मों को मानने वाले लोग भी यही करने लगें, तो समाज में भाईचारा कहां और कैसे बचा रहेगा। अगर कोई अपने मन से उस धर्म को त्याग देता है, जिसमें उसका जन्म हुआ है तब तो कोई बात नहीं है। उदाहरण के रूप में म्युजिक डायरेक्टर रहमान को ही लेते हैं। उन्होंने खुद ही हिन्दू धर्म को छोड़कर इस्लाम को स्वीकार कर लिया। उनके परिवार के बाकी सदस्यों ने भी इस्लाम अपना लिया। यहां तक तो सब ठीक है। पर कुछ तत्व सुदूर इलाकों में रहने वालों को अपना पाले में लाने की जुगाड़ में रहते हैं। इस सबकी तो हमारा संविधान अनुमति नहीं देता। जब गौतम जैसों पर एक्शन होता है तो कुछ कथित बुद्धजीवी अलाप करने लगते हैं। पिछले कई सालों से पंजाब से खबरें आ रही हैं कि राज्य में दलित सिखों को लालच देकर ईसाई धर्म से जोड़ा जा रहा है।

धर्म परिवर्तन को लेकर ईसाई धर्म के ठेकेदार भी कम नहीं हैं। बल्कि चर्चों से जुड़े प्रमुख लोग ईसाई धर्म के प्रचार में लगे हैं और मजदूर और गरीब तबके के लोगों को टारगेट बना कर उन्हें लाख या सवा लाख रुपया देकर पादरियों से मिला कर पक्का कागजी काम भी करवा लेते हैं। सोशल मीडिया पर ऐसी अभिव्यक्तियां लोग खूब शेयर करते रहते हैं। ऐसे ही एक पादरी के बारे में उत्तराखंड में शिफ्ट होने की बातें भी पिछले दिनों खूब वायरल हुई थी। यह सवाल अपने आप में बेहद महत्वपूर्ण है कि क्या भारत में धर्म प्रचार की अनुमति जारी रहनी चाहिए? कभी-कभी लगता है इस मसले पर देश में बहस हो ही जाए कि क्या भारत में धर्म प्रचार की स्वतंत्रता जारी रहे अथवा नहीं ? देखा जाए तो केवल धर्म पालन की स्वतंत्रता होनी चाहिये। धर्म के प्रचार-प्रसार की छूट की कोई आवश्यकता ही नहीं। धर्म कोई दुकान या व्यापार तो है नहीं जिसका प्रचार-प्रसार करना जरूरी हो। अगर हम इतिहास के पन्नों को खंगाले तो देखते हैं कि भारत के संविधान निर्माताओं ने सभी धार्मिक समुदायों को अपने धर्म के प्रचार की छूट दी थी। क्या इसकी कोई आवश्यकता थी? बेशक, भारत में ईसाई धर्म की तरफ से शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में ठोस और ईमानदारी से काम किया गया है। पर कहने वाले कहते हैं कि उस सेवा की आड़ में धर्मांतरण का ही मुख्य लक्ष्य रहा है।

उधर इस्लाम का प्रचार करने वाले बिना कुछ किए ही धर्मांतरण करवाने के मौके खोजते हैं। हालांकि मुसलमानों की शिक्षण संस्था अंजुमन इस्लाम ने शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय काम किया है। ये मुंबई में सक्रिय है। अब आप देखें कि आर्य समाज, सनातन धर्म और सिखों की तरफ से देश में सैकड़ों स्कूल, कॉलेज, अस्पताल वगैरह चल रहे हैं। पर इन्होंने किसी ईसाई या मुसलमान का धर्मांतरण का कभी प्रयास नहीं किया। आपको अपने धर्म को मानने की तो अनुमति होनी चाहिए, पर अपने धर्म का प्रचार करने या धर्मांतरण करने की इजाजत तो नहीं दी जा सकती।

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Rahul Kumar Rawat

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