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शहीद उधम सिंह को शहीद का दर्जा क्यों नहीं?

03:44 AM Aug 08, 2024 IST
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शहीद-ए-आजम भगत सिंह के बाद अगर किसी को शहीद-ए-आजम का खिताब मिलना चाहिए तो वह शहीद उधम सिंह हैं, जिन्हें 13 मार्च 1940 को भारत में पंजाब के पूर्व लेफ्टिनेंट गवर्नर माइकल ओश्डायर की हत्या के लिए जाना जाता है। यह हत्या 1919 में अमृतसर में जलियांवाला बाग हत्याकांड का बदला लेने के लिए की गई थी, जिसके लिए सीधे तौर पर ओश्डायर जिम्मेदार था। इसमें सजा के तौर पर उधम सिंह पर हत्या का मुकदमा चला और उन्हें दोषी ठहराया गया और जुलाई 1940 में उन्हें फांसी दे दी गई। मगर सरकारी तौर पर आज तक ना तो भगत सिंह को शहीद का दर्जा मिला और ना ही उधम सिंह को। उ.प्र. में जब मायावती की सरकार आई तो उनके द्वारा शहीद उधम सिंह को श्रद्धांजलि के रूप में एक जिले का नाम उनके नाम पर रखा गया था जिसे आज उधम सिंह नगर के नाम से जाना जाता है। शहीद उधम सिंह जैसे वीरों की बदौलत ही भारत को आजादी मिली थी मगर बदकिस्मती से सत्ता पर काबिज वह लोग हो गये जिनका दूर-दूर तक आजादी की लड़ाई से कोई वास्ता नहीं था उल्टा उन्हांेने आजादी के परवानों का हमेशा मजाक ही उड़ाया था। शहीद उधम सिंह को देश के पहले प्रधानमंत्री भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेता पंडित जवाहर लाल नेहरू ने उनकेे इस कार्य की निंदा करते हुए इसे मूर्खतापूर्ण बताया गया था। हालांकि, 1962 में, पंडित नेहरू ने अपना रुख बदल लिया और अपने नए बयान के साथ उधम सिंह की सराहना की और कहा था कि मैं शहीद-ए-आजम उधम सिंह को श्रद्धा के साथ सलाम करता हूँ जिन्होंने हमें आज़ादी दिलाने के लिए फांसी के फंदे को चूमा।
देश को आजाद हुए भले ही 77 वर्ष बीत चुके हैं मगर आज भी ऐसी सोच वाले लोग इस देश में हैं जो कि आजादी के लिए अपनी जान की बाजी लगाने वालों को शहीद मानने को भी तैयार नहीं हैं मगर वहीं दूसरी ओर प्रसिद्ध समाजसेवी एम एम पाल सिंह गोल्डी जैसे लोग भी हैं जो कि स्वयं स्वतंत्रता सैनानी परिवार से सम्बन्ध रखते हैं, उन्होंने शहीद उधम सिंह की शहादत को सलाम करते हुए उनके श्रद्धांजलि दिवस पर देश के प्रमुख समाचार पत्रों में अपनी कमाई से विज्ञापन दिया ताकि देश की युवा पीड़ी को शहीद उधम सिंह की शहादत और उनकी वीरगाथा की जानकारी मिल सके।
शिरोमणि कमेटी वोटरों की कम होती संख्या
शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी के चुनाव बीते कई वर्षों से लम्बित है जिसे करवाने के लिए सरकार पर निरन्तर दबाव बनाया जा रहा है। सरकार के द्वारा नए चुनावों के लिए वोट बनाने की प्रक्रिया कुछ माह पूर्व शुरू की गई थी जिसके लिए बाकायदा प्रशासनिक अधिकारियों को जिम्मेवारी सौंपी गई थी जिन्होंने घर-घर जाकर वोट बनाने का कार्य करना था। मगर देखा जा रहा है कि प्रशासनिक अधिकारियों के द्वारा अपनी जिम्मेवारी का निर्वाह सही ढंग से नहीं किया जा रहा। अब इसके पीछे क्या सोच काम कर रही है यह चिन्तन का विषय है। पिछले चुनावों के दौरान सिख वोटरों की संख्या 56 लाख के करीब थी जो कि इतने वर्ष बीतने के बाद कम से कम दुगनी तो होनी ही चाहिए थी मगर गिनती घटकर आधी रह गई है। यहां सवाल यह बनता है कि कहीं किसी साजिश के तहत तो सिख वोटरों की गिनती कम नहीं दिखाई जा रही हो। दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी के पूर्व उपाध्यक्ष कुलवंत सिंह बाठ जो कि पिछले कुछ समय से पंजाब की सिख राजनीति में सक्रिय दिखाई दे रहे हैं उनकी मानें तो वह सरकारी तंत्र को पूरी तरह से जिम्मेवार ठहरा रहे हैं। उनका कहना है कि जिन अधिकारियों को सरकार ने जिम्मेवारी सौंपी है वह घर-घर जाने के बजाए अपने कार्यालयों में बैठकर वोट बनाने का कार्य करते हैं यां फिर कुछ ऐसे अधिकारी इस कार्य में लगाए गये हैं जो घरांे मंे पहुंच तो रहे हैं मगर उनके पास वोटरों की फोटो खींचने या अन्य दस्तावेज बनाने के लिए पर्याप्त साधन नहीं रहते, अब गांवों में भोले भाले लोग अपने पास पुख्ता दस्तावेज तो रखते नहीं ऐसे में उनके वोट नहीं बन पा रहे हैं। दूसरा कारण इसमें यह भी हो सकता है कि आज की तारीख में ज्यादातर लोगों की वोट बनाने के प्रति कोई रुचि ही नहीं रह गई। सिख युवाओं का पतित होना यां फिर विदेशों को पलायन कर जाना भी सिख वोटरों की कमी का एक बड़ा कारण हो सकता है। जो भी हो अगर इसका सही आंकलन नहीं किया गया तो आने वाले समय में सिख समुदाय पंजाब मंे ही अल्पसंख्यक की श्रेणी में आ सकता है। सिख राजनीति के माहिरों की मानें तो अभी तक जो वोटर लिस्ट तैयार हुई है उसमें ज्यादातर वोट अकाली दल के नुमाईंदों ने ही बनवाए हैं अगर इसी वोटर लिस्ट के हिसाब से चुनाव हो जाएं तो उसका पूरा फायदा अकाली दल को मिलने वाला है। इससे पहले भी शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी के गठन से लेकर आज तक शिरोमणि अकाली दल का ही कब्जा कमेटी पर रहा है मगर इस बार कई पार्टियां और सरकारें भी अपने नुमाईंदे खड़े करने की सोच रखे हुए हैं, अकाली दल से बागी हो चुके नेता भी अकाली दल को टक्कर देने का मन बनाए हुए हैं जिससे अकाली दल की राह भी हालांकि आसान नहीं होगी। मगर सिख समुदाय की बेहतरी के लिए सभी पार्टियांे और चुनाव लड़ने के इच्छुक लोगों को चाहिए कि इसे गंभीरता से लेते हुए अपने क्षेत्र के लोगों को वोट बनवाने के लिए जागरुक अवश्य करना चाहिए जिससे कि समय रहते सभी सिखों की वोट अवश्य बन सकें।
सिख मार्शल आर्ट ‘‘गतका’’
गतका जिसे अब सिख मार्शल आर्ट के नाम से भी जाना जाता है यह सिखों का पारंपरिक खेल भी है और युद्ध के मैदान में दुश्मनों से लड़ने के लिए भी इसकी जानकारी दी जाती थी। वैसे तो इसकी शुरुआत गुरु साहिबान के समय से ही हो गई थी। गुरु गोबिन्द सिंह जी तो महल्ला करवाकर भाव गतका की अलग अलग टीमें बनाकर उनमें मुकाबले भी करवाया करते। देखा जाए तो आज के समय में भी गतका सीखने वाले अपनी आत्मरक्षा स्वयं कर सकते हैं और खासकर महिलाओं को इसकी शिक्षा अवश्य लेनी चाहिए। कुछ समय पूर्व तक गतका केवल गुरुपर्व के मौके पर निकलने वाले नगर कीर्तनों में ही खेला जाता था। कई संस्थाएं हैं जो गतका सीखने के इच्छुक युवाओं को गतका की सिखलाई देते हैं जिनमें बुड्डा दल गतका अकादमी और शिरोमणि गतका फैडरेशन मुख्य भूमिका में है। हाल ही मंे इन संस्थाआंे के द्वारा 96 करोड़ी गतका कप करवाया गया। इससे पूर्व पूर्वी दिल्ली में भाजपा के सिख नेता गुरमीत सिंह सूरा के द्वारा भी इन संस्थाओं के साथ मिलकर पूर्वी दिल्ली गतका कप का आयोजन किया गया था। दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी अधीन चलने वाले स्कूलों में भी बच्चों को गतका की सिखलाई दी जाती है। अब हर माता पिता को चाहिए कि अपने बच्चों को गतका की सिखलाई अवश्य दें।
सिख विधायक का अमरीका में सम्मान
दिल्ली के तिलक नगर से तीसरी बार के विधायक जरनैल सिंह जिन्हें अमरीका में हाेने वाले लैजिस्लेटिव समिट 2024 के लिए दिल्ली सरकार की ओर से बेहतर विधायक के तौर पर भेजा गया और उनका अमरीका में भरपूर सम्मान भी हुआ। जरनैल सिंह का इस कांफ्रेंस में जाना समूचे सिखों के लिए गर्व की बात है। हालांकि उनके साथ 2 और विधायक इसमें भाग लेने के लिए पहुंचे हैं जो कि संसार के अलग अलग देशों से आए विधायकों के साथ विचार विमर्श करते हुए अपने क्षेत्र में और बेहतर ढंग से कार्य करने में सक्षम होंगे। जरनैल सिंह का अमरीका में रहने वाले और खासतौर पर भारत से वहां पहुंचे सिखों के द्वारा भी सम्मान किया जा रहा है। जरनैल सिंह केजरीवाल सरकार में बतौर सिख तीसरी बार विधायक चुनकर आए मगर अफसोस कि आज तक उन्हें मंत्रिमण्डल में शामिल नहीं किया गया जबकि इससे पहले भाजपा यां कांग्रेस की सरकारें जब भी रही एक ना एक सिख को मंत्रिमण्डल में जगह अवश्य दी जाती थी।

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