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नेता प्रतिपक्ष से राहुल का इंकार क्यों ?

05:58 AM Jun 23, 2024 IST
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‘रास्तों पर लाख कांटे बिछे हों,
कब लोग चलना छोड़ देते हैं
सिरफिरी आंधियों के डर से भला, कब चिराग जलना छोड़ देते हैं’

2024 के हालिया चुनावी नतीजों ने कांग्रेस को एक संजीवनी देने का काम किया है, क्रेडिट राहुल गांधी को ही देना पड़ेगा कि उन्होंने सुप्तप्रायः कांग्रेस में एक नई जान फूंक दी है। शायद यही वजह है कि कांग्रेस के सीनियर नेता बढ़-चढ़कर लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष के तौर पर राहुल गांधी का नाम आगे कर रहे हैं। सूत्रों की मानें तो राहुल फिलवक्त यह जिम्मेदारी लेने से हिचक रहे हैं, उन्होंने अपनी ओर से गौरव गोगोई का नाम सुझाया है। राहुल का तर्क है कि ‘उनकी मां सोनिया गांधी पहले से ही कांग्रेस संसदीय दल की नेता हैं, सो ऐसे में अगर वे नेता प्रतिपक्ष पद को स्वीकार कर लेते हैं तो भाजपा कांग्रेस पर परिवारवाद के आरोप लगाएगी।’ पर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने यह कहते हुए गौरव गोगोई के नाम का विरोध किया है कि गौरव ‘मेन स्ट्रीम इंडिया’ का चेहरा नहीं हो सकते। बीच-बचाव की मुद्रा अख्तियार करते सोनिया ने इस पद के लिए अपनी ओर से कुमारी शैलजा का नाम आगे किया है, पर खड़गे का कहना है कि ‘कांग्रेस अध्यक्ष यानी वे पहले ही एक दलित हैं सो ऐसे में नेता प्रतिपक्ष भी एक दलित को बनाने से अन्य जातियों में ठीक संदेश नहीं जाएगा’, सो खड़गे ने अपनी ओर से मनीष तिवारी का नाम आगे किया है, खड़गे का कहना है कि तिवारी एक वकील हैं, संसदीय परंपरा के अच्छे जानकार हैं, हिंदी-अंग्रेजी दोनों भाषाओं पर उनका समान अधिकार है, सो अगर राहुल जी नहीं बनते हैं तो फिर मनीष सबसे बेहतर च्वॉइस है। ऐसे में शशि थरूर कहां चुप रहने वाले थे, उन्होंने भी रिंग में अपनी हैट उछाल दी है, कहते हैं कि उन्होंने ‘कांग्रेस वर्किंग कमेटी’ के सदस्यों को बकायदा एक पत्र लिख कर इस पद के लिए अपनी दावेदारी पेश कर दी है।

फिलवक्त कांग्रेस में एक असमंजस का आलम है और पार्टी के ज्यादातर वरिष्ठ नेता राहुल गांधी को मनाने में जुटे हैं कि इस बार नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी भी वही संभालें। अगर राहुल ऐसे ही हर जिम्मेदारी उठाने से मना करते रहेंगे तो लोगों में यह संदेश जाएगा कि राहुल गांधी हमेशा ही कोई जिम्मेदारी लेने से कतराते हैं, भाजपा को भी पलटवार का मौका मिलेगा। राहुल को शायद अपने निर्णय पर दुबारा विचार करना पड़ सकता है।’ ओम बिड़ला को क्यों मना रही है भाजपा
अभी पिछले दिनों भाजपा के दिग्गज नेता लोकसभा के पूर्व स्पीकर ओम बिड़ला के घर पहुंचे, सूत्र बताते हैं कि उन्होंने बिड़ला से आग्रह किया है कि ‘इस दफे वे स्पीकर पद के लिए न सोचें, पार्टी उन्हें एक और बड़ी जिम्मेदारी सौंपने पर विचार कर रही है।’ सब जानते हैं कि ओम बिड़ला के पीएम मोदी से पुराने आत्मीय संबंध हैं। सूत्र बताते हैं कि बिड़ला ने अपने घर पधारे पार्टी के इन नेताओं से कहा कि ‘अगर स्पीकर पद टीडीपी को चला जाता तो मुझे कोई परेशानी नहीं थी, अब चूंकि लोकसभा में स्पीकर हमारी ही पार्टी का होने वाला है तो फिर मुझे दोबारा मौका देने में किसी को क्या आपत्ति हो सकती है?’

कहा जाता है इस पर वरिष्ठ नेताओं ने खुलासा किया कि ‘उन्हें पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने के लिए गंभीरता से विचार हो रहा है, अनुमोदन के लिए उनके नाम को नागपुर भी भेजा गया है, देखना है वहां से क्या जवाब आता है।’ वैसे भी पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व बिड़ला को नाराज़ करने का जोखिम नहीं उठाना चाहता है, क्योंकि इस दफे राजस्थान में भाजपा को लोकसभा की दस सीटों पर पराजय का मुंह देखना पड़ा है, पार्टी को मिले फीडबैक के मुताबिक इन चुनावों में पार्टी को सबसे बड़ा नुक्सान पार्टी नेताओं के आपसी झगड़े की वजह से हुआ है। सो, केंद्रीय नेतृत्व राजस्थान के मौजूदा सीएम भजन लाल शर्मा की भी क्लास लगाना चाहता है और यह भी चाहता है कि वहां किस नेता को इतनी तरजीह दी जाए जो वसुंधरा राजे सिंधिया के मुकाबले खड़ा हो सके। भाजपा से क्या चाहते हैं नीतीश
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इन दिनों एक बदले अवतार में नज़र आ रहे हैं, खास कर भाजपा को लेकर उनके नज़रिए में एक व्यापक बदलाव महसूस किया जा सकता है। नई दिल्ली में आहूत एनडीए की बैठक में वह नतमस्तक थे तो बिहार के नालंदा विश्वविद्यालय के नए परिसर के उद्घाटन के मौके पर उन्होंने भाजपा को यह याद दिलाने की भरसक कोशिश करते हुए कहा कि ‘उनसे तीन वादे हुए थे जिसमें से आपने एक पूरा कर दिया है, बाकी दो का भी ध्यान रखा जाना चाहिए।’

सूत्रों की मानें तो एनडीए सरकार को समर्थन देने के एवज में नीतीश ने तीन शर्तें रखी थी, पहली कि बिहार के मुख्यमंत्री वही रहेंगे और उन्हें राज्य में एनडीए के नेतृत्व की बागडोर भी सौंपी जाएगी, भाजपा व मोदी पहले ही इस आशय की घोषणा कर चुके हैं। शर्त नंबर दो-बिहार विधानसभा चुनाव समय से पहले होंगे। नीतीश पहले इसे महाराष्ट्र व हरियाणा के साथ चाहते थे, अब वे चाहते हैं कि यह 2025 के दिसंबर के बजाए उसी साल मई-जून की गर्मियों में करा लिए जाएं। इस बारे में भाजपा ने अभी भी चुप्पी साधी हुई है। नीतीश की तीसरी शर्त बिहार को ‘स्पेशल पैकेज’ देने को लेकर थी। सूत्र बताते हैं कि नीतीश की डिमांड पर भाजपा ने उन्हें समझा दिया है कि ‘बिहार व आंध्र दोनों ही राज्यों को विशेष पैकेज मिलेगा, पर इस पैकेज का नाम कुछ और होगा, क्योंकि ‘स्पेशल पैकेज’ देने में राज्य की आर्थिक व भौगोलिक परिस्थितियों को मद्देनज़र रखते वित्त आयोग इसका सम्यक आंकलन करता है, सो मामला कानूनी पेचीदगियों में उलझ सकता है। सो, पैकेज तो मिलेगा, पर किसी और नाम से।’ भाजपा ने नीतीश को यह भी समझाना चाहा कि ‘चूंकि ओडिशा में भाजपा की पहली-पहली बार सरकार बनी है और वहां के आर्थिक हालात भी कुछ ठीक नहीं है, सो हमें आंध्र व बिहार के साथ-साथ ओडिशा के बारे में भी सोचना होगा।’ क्या जजपा का विलय भाजपा में होगा?

विश्वस्त सूत्र बताते हैं कि पिछले बुधवार को जजपा नेता दुष्यंत चौटाला गुप्त रूप से केंद्रीय मंत्री व हरियाणा के पूर्व सीएम मनोहर लाल खट्टर से मिलने पहुंचे। दोनों नेताओं के दरम्यान एक लंबी बातचीत हुई। दरअसल, दुष्यंत चौटाला को अपने दादा ओम प्रकाश चौटाला से दो टूक सुननी पड़ी है, वे हरियाणा में जजपा के भविष्य को लेकर भी उतने आशान्वित नहीं हैं, क्योंकि हालिया हिसार लोकसभा चुनाव में उनकी मां नैना चौटाला को मात्र 22 हजार वोट ही मिले। चूंकि जब मनोहर लाल हरियाणा के सीएम थे तो दुष्यंत उनके मातहत डिप्टी सीएम रह चुके हैं और इन दोनों का तालमेल भी ठीक-ठाक रहा है। मनोहर लाल ने दुष्यंत को सलाह दी कि ‘क्यों नहीं वे अपनी पार्टी का विलय भाजपा में कर देते हैं।’ इस पर दुष्यंत मोटे तौर पर राजी हो गए हैं, पर इसके लिए उन्होंने अपनी ओर से दो शर्तें रखी हैं- एक तो उन्हें राज्यसभा देकर राष्ट्रीय स्तर पर कोई जिम्मेदारी दे दी जाए, दूसरा उनके भाई दिग्विजय चौटाला को भाजपा के हरियाणा संगठन में ठीक से ‘एडजस्ट’ किया जाए। मनोहर लाल की ओर से फिलहाल दुष्यंत को कोई पक्का आश्वासन नहीं मिला है, उन्होंने बस इतना कहा है कि ‘एक बार मैं आगे बात कर लूं, फिर बताता हूं।’ सो दुष्यंत फिलहाल इंतजार में हैं।

...और अंत में कौन होगा भाजपा का नया अगला राष्ट्रीय अध्यक्ष, इसको लेकर कयासों के बाजार गर्म हैं। एक वक्त पार्टी संगठन के इस शीर्ष पद के लिए शिवराज सिंह चौहान, मनोहर लाल खट्टर, भूपेंद्र यादव, सीआर पाटिल जैसों के नाम चल रहे थे। पर आज ये तमाम चेहरे मोदी मंत्रिमंडल का हिस्सा हैं। सो, अब ओम माथुर का नाम सब तरफ चल रहा है। चलाने वाले तो सुनील बंसल का नाम भी चला रहे हैं। कुछ लोगों का दावा है कि ‘अगर योगी आदित्यनाथ से यूपी की कमान वापिस ली जाती है तो संघ के दबाव में बतौर राष्ट्रीय अध्यक्ष उनकी भी लॉटरी खुल सकती है।’

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