India WorldDelhi NCR Uttar PradeshHaryanaRajasthanPunjabJammu & Kashmir Bihar Other States
Sports | Other GamesCricket
Horoscope Bollywood Kesari Social World CupGadgetsHealth & Lifestyle
Advertisement

पापा के बिना...

04:30 AM Jan 18, 2024 IST
Advertisement

पापा-एक मुस्कराहट,
पापा-संवेदनाओं से परिपूर्ण इंसान,
पापा-दोस्ती का एक अहसास,
कभी यादों, कभी ख्वाबों में,
कभी गुस्से से चेहरा लाल,
तो कभी तपन में शीतल बयार,
कभी स्नेह की प्रतिमा,
तो कभी आशीर्वाद का अहसास,
पापा-न भूल सकने वाला आभास,


आज मेरे पिता अश्विनी कुमार जी की चौथी पुण्यतिथि 18 जनवरी के दिन मेरा और पूरे परिवार का भावुक होना स्वाभाविक है। कहते हैं मां के चरणों में स्वर्ग होता है। मां बिना जीवन अधूरा है। मां जीवन की सच्चाई है, तो पिता जीवन का आधार है। मेरी मां किरण चोपड़ा और दोनों अनुज आकाश और अर्जुन मेरे साथ हैं लेकिन मैं महसूस करता हूं कि पिता का साया सिर से उठने के बाद मेरा अस्तित्व अधूरा है। जीवन तो चल रहा है लेकिन जीवन की चुनौतियों से निपटना तो पिताजी से ही आता है। जीवन की स​च्चाई के धरातल पर जब बच्चा चलना शुरू करता है तो उसके कदम कहां पड़े कहां नहीं यह समझाने का काम पिता ही करते हैं। पिता अगर निकट हैं तो किसी बच्चे को असुरक्षित अनुभव नहीं होता। पिता एक वट वृक्ष होते हैं जिसके साये में खड़े होकर बड़ी से बड़ी परेशा​नी छोटी हो जाती है। वक्त आने पर वह दोस्त बन जाते हैं, गलती करने पर गुस्से में तमतमाते हैं और हमारी छोटी सी कामयाबी पर हमारी पीठ थपथपाते हैं। स्नेह उड़ेल देते हैं।
पिताजी के रहते मैंने आत्मबोध का कोई प्रयास ही नहीं किया। वास्तव में पिता के रहते हमारे हिस्से का आकाश उज्ज्वल रहा, सूर्य तेजस्वी लगता था और घर का आंगन खुशगवार था। पिता वह संजीवनी थे जिनके रहते हमारे ​चेहरे पर कभी लकीरें नहीं पड़ीं। मैंने पिता की डांट-फटकार भी खाई साथ ही उनका असीम स्नेह भी पाया। पिता होना संतान के लिए अभियान और पिता स्वयं के लिए एक स्वाभिमान है। हमारे परिवार का इतिहास स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ा हुआ है। पिता की ही तरह मुझे भी परिवार के गौरवपूर्ण इतिहास पर गर्व रहा है। पिता जी अक्सर मेरे पड़दादा लाला जगत नारायण जी और दादा रमेश चन्द्र जी की स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ी गाथाएं सुनाते तो अहसास होता था कि हमारे पूर्वजों का इतिहास कितना समृद्ध है। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भी लाला जी और रमेश जी ने पत्रकारिता को लक्ष्य बनाया। पिता जी उनकी गाेद में पले और उन्हीं से संस्कार हासिल किए।
मेरे पिता जी कई बार यह कहते थे कि समाचार पत्र तैयार करना आसान है लेकिन बाजार में बेचना बहुत मुश्किल है। किसी भी समाचार पत्र को बाजार में बेचने के लिए कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ता है। पिताजी की अनुपस्थिति में बाजार की चुनौतियों का सामना करते हुए समाचार पत्र पंजाब केसरी की गुणवत्ता बनाए रखना बड़ी चुनौती है। लाखों पाठकों के स्नेह और पसंद के चलते आज हम इन चुनौतियों को पार पाने में सफल हुए हैं। विचारधारा के स्तर पर हम आज भी अडिग खड़े हैं। जन समुदाय जब अक्षरों में अपना अक्स देखता है तो कोई भी विद्या अतिरिक्त गम्भीरता का रुख अख्तियार कर लेती है और ज्यादा जवाबदेही उसके हिस्से में आती है। जन चिंतन की विचारधारा के प्रति संवेदनशील रहे पिताजी अश्विनी कुमार की स्मृतियां आज भी पाठकों को याद हैं। उन्होंने हजारों सम्पादकीय लिखे। उनकी कलम से निकली धारावाहिक आत्मकथा ‘इट्स माई लाइफ’ खासी लोकप्रिय हुई। धर्मनिरपेक्षता उनकी रगों में थी। उनके शब्द मुझे और पूरे परिवार को प्रेरित करते हैं। उन्होंने आतंकवाद, भ्रष्टाचार शोषण, सामाजिक विकृतियों और अन्याय पर अपनी कलम से प्रहार करने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
पिता जी ने हमेशा यही सीख दी कि समाचार पत्र में सभी के विचारों को स्थान दिया जाए और जो भी खुद लिखो वह भी पवित्र होना चाहिए। उन्होंने हमेशा प्रैस की स्वतंत्रता, विचारों की स्वतंत्रता के लिए आपातकाल से पूर्व और बाद में लम्बी लड़ाई लड़ी। सत्य के लिए वह बार-बार सत्ता से भी टकराते रहे। मैं जो भी लिख रहा हूं वह पापा की बदौलत है। मैं पाठकों की कसौटी पर कितना खरा उतरा हूं इसका आंकलन तो पाठक ही कर पाएंगे। मैं इन्हीं शब्दों के साथ पिताजी को नमन करता हूं।
‘‘हां मैं बहुत खुश था उस बचपन में,
जब आपके कंधे पर बैठा था,
मगर बहुत रोया था जब,
मेरे कंधे पर आप थे।’’

Advertisement
Next Article