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युद्धों के दौर में दुनिया

05:00 AM Oct 08, 2024 IST | Rahul Kumar Rawat
युद्धों के दौर में दुनिया

वर्तमान दौर अंतर्राष्ट्रीय परिस्थितियों के भयावह होने का ऐसा दौर कहा जाएगा जिसमें क्षेत्रीय शान्ति को ही कुर्बान होना पड़ रहा है। चाहे वह पूर्व सोवियत संघ के देशों का इलाका हो अथवा पश्चिम एशिया का। इन दोनों ही क्षेत्रों में ऐसा युद्ध छाया हुआ है जिसमें पूरी दुनिया के देश किसी न किसी स्तर पर बावस्ता हैं। अभी भारतीय उपमहाद्वीप में भी अफगानिस्तान की समस्या का पूरा हल नहीं निकल पाया है क्योंकि यहां तालिबान जेहादियों की सरकार काबिज है। अमेरिका जिस प्रकार कुछ वर्ष पहले अफगानिस्तान छोड़कर भागा और पाकिस्तान ने खुलेआम इस देश में तालिबानियों की सरकार स्थापित कराने में मदद की उससे आतंकवाद की कहीं न कहीं वैधता स्थापित होने में भी मदद मिली। दुखद यह है कि संयुक्त राष्ट्र संघ अभी तक आतंकवाद की परिभाषा पर ही मतैक्य कायम नहीं कर सका है। जिसकी वजह से पश्चिम एशिया का संकट गहराता जा रहा है क्योंकि इस क्षेत्र में ​फि​लिस्तीन व इजराइल के बीच युद्ध चलते पूरा एक वर्ष हो चुका है जबकि सोवियत इलाके में रूस व यूक्रेन के बीच युद्ध को चलते एक वर्ष से ज्यादा का समय बीत चुका है। वास्तव में ऐसे हालात अर्थव्यवस्था के भूमंडलीकरण होने के बाद बने हैं जिसमें चीन विश्व की दूसरी बड़ी आर्थिक ताकत के रूप में स्थापित है। निःसन्देह अमेरिका आज भी विश्व की सबसे बड़ी आर्थिक ताकत है अतः हमें इन सभी युद्धों में उसकी परोक्ष भूमिका साफ नजर आती है। मगर पश्चिम एशिया में इजराइल व ​फि​लिस्तीन के लड़ाकू संगठन हमास के बीच जिस तरह का युद्ध चल रहा है वह मानवीय मूल्यों को सीधे चुनौती देता लगता है लेकिन इसके बावजूद राष्ट्र संघ पंगु जैसा दिखाई पड़ रहा है और युद्ध रुकवाने में असमर्थ है।

हमें यह ध्यान रखना होगा कि इजराइल का एक राष्ट्र के रूप में अस्तित्व 1948 में राष्ट्र संघ की दखलन्दाजी के कारण ही कायम हुआ था जिसमें साफ कहा गया था कि अरब की धरती पर दो देश ​फि​लिस्तीन व इजराइल स्थापित होंगे। यह अरब की धरती ​फि​लिस्तीन धरती ही कहलाती थी। मगर इजराइल का रवैया शुरू से ही सीना जोरी का रहा और वह ​फि​लिस्तीन की धरती पर अपना वजूद काबिज करने की गरज से शुरू से ही आक्रामक रुख अपनाता रहा। उसे इस काम में पश्चिमी यूरोपीय देशों व अमेरिका का पूरा समर्थन भी प्राप्त हुआ परन्तु वर्तमान समय में विगत वर्ष 7 अक्तूबर को हमास ने जिस तरह इजराइल की सीमा में प्रवेश करके दो सौ से अधिक यहूदियों को बन्धक बनाने के साथ ही वहां नाच-गा रहे लोगों को अपना निशाना बनाया उससे एक बारगी पूरी दुनिया सहम गई। बेशक हमास का यह कहना हो कि इजराइल ने फिलिस्तीन की गाजा पट्टी के पूरे इलाके को खुली जेल में तब्दील कर रखा है और वहां रह रहे ​फि​लिस्तीनियों पर वह जुल्मों-गारत करता रहता है मगर इससे हमास को निरपराध यहूदियों को निशाना बनाने का लाइसेंस नहीं मिल जाता और न ही इजराइल को बदले की कार्रवाई में निरीह ​फि​लिस्तीनियों को हलाक करने का परमिट मिल सकता है। मगर पिछले एक साल से यही सब हो रहा है और राष्ट्र संघ समेत पूरी दुनिया तमाशा देख रही है। ठीक ऐसा ही वातावरण सोवियत संघ के इलाके में भी बना हुआ है।

जब वैश्विक अर्थव्यवस्था का दौर शुरू हुआ था तो यह कहा गया था कि इससे विश्व में युद्धक हथियारों की महत्ता घटेगी और धन या मुद्रा की महत्ता बढे़गी। किसी देश की आर्थिक ताकत और आर्थिक स्रोत ही विश्व में उसकी महत्ता स्थापित करेंगे परन्तु हो यह रहा है कि विभिन्न देशों के आर्थिक स्रोतों पर कब्जा करने के लिए शक्तिशाली देश आपस में भिड़ रहे हैं जिसका प्रत्यक्ष उदाहरण चीन व अमेरिका के बीच चल रहा कूनीतिक व वाणिज्यिक संघर्ष है। दुनिया के विभिन्न देशों को इसी संघर्ष के चलते दोनों देश अपने-अपने पक्ष में गोलबन्द करने में लगे हुए हैं। पश्चिम एशिया का संकट इसीलिए लगातार गहरा होता जा रहा है क्योंकि इस इलाके में चीन व अमेरिका दोनों ही अपना वर्चस्व कायम करना चाहते हैं। वरना क्या वजह है कि खुद को मानवता का अलम्बरदार कहने वाला अमेरिका खुलकर इजराइल को सैनिक मदद भी दे रहा है और अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर उसके साथ भी खड़ा हुआ है। इसके जवाब में रूस व चीन ने सामरिक व आर्थिक गठजोड़ बनाकर दुनिया में अपनी साख स्थापित करने की रणनीति तैयार कर रखी है। क्या सब कुछ तेल पर कब्जे के लिए हो रहा है? मगर पश्चिम एशिया का युद्ध हमें गहरे संकट की तरफ ले जा सकता है क्योंकि ईरान भी अब ​फि​लिस्तीन-इजराइल युद्ध में कूद पड़ा है।

ईरान के सिर पर चीन व रूस का हाथ समझा जाता है लेकिन जहां तक ​​फिलिस्तीन का संबन्ध है तो पिछले एक वर्ष के दौरान इजराइल ने इसकी दो तिहाई गाजा पट्टी को नेस्तानाबूद कर दिया है और लाखों को बेघरबार बना कर छोड़ दिया है। अभी तक कुल 42 हजार ​फि​लिस्तीनी मारे जा चुके हैं जिनमें महिलाओं व बच्चों की संख्या सबसे ज्यादा है। इजराइल ने ​फि​लिस्तीन के अस्पतालों से लेकर विश्वविद्यालयों व कालेजों को मिट्टी में मिला दिया है लेकिन हमास ने भी अभी तक गिरफ्तार यहूदी बन्धकों की अच्छी खासी संख्या (93) को नहीं छोड़ा है। आज की दुनिया सभ्यता की यह कौन सी इबारत लिख रही है? इस युद्ध में हमास के कितने नेता अभी तक हलाक हुए हैं। सवाल यह नहीं है, बल्कि असली सवाल यह है कि कितने निरपराध नागरिक हलाक हुए हैं। इसी प्रकार सोवियत इलाके में भी हमें नागरिकों की हत्या किये जाने के बारे में सोचना होगा।

आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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