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विश्व विजयी विनेश फोगाट!

06:17 AM Aug 09, 2024 IST
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इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती कि महिला पहलवान विनेश फोगाट बिना ओलम्पिक खेलों का फाइनल मुकाबला लड़े ही पूरे भारत देश के लोगों के लिए विश्व चैम्पियन बन चुकी हैं। उन्हें केवल 100 ग्राम वजन ज्यादा होने की वजह से ही जिस तरह फाइनल मुकाबले में लड़ने से रोका गया वह भी स्वयं में अजूबा ही माना जा रहा है क्योंकि ओलम्पिक खेलों के समकालीन इतिहास में एेसी कोई दूसरी घटना नहीं दिखाई पड़ती है। यही वजह है कि कुछ खेल प्रेमी इसे साजिश भी करार दे रहे हैं। बेशक ओलम्पिक स्पर्धाओं के अपने नियम बहुत सख्त होते हैं जो सभी देशों के खिलाड़ियों पर एक समान रूप से लागू होते हैं मगर इसका मतलब यह भी नहीं होता कि नियमों की विभिन्न उपधाराओं का भी कड़ाई से पालन न किया जाये। नियमों को लागू होते देखना खिलाडि़यों के साथ गये खेल अधिकारियों का काम यही होता है कि वे अपने खिलाडि़यों को सभी नियमों व उपनियमों पर खरा उतारने के भरपूर प्रयास करें। विनेश फोगाट के मामले में चूक कहां हुई यह जांच का विषय ही रहेगा क्योंकि नियम यह भी है कि यदि कोई पहलवान जिस वजन वर्ग में खेल रहा है उसमें खेलने के लिए यदि उसके वजन में बढ़ाैतरी होती है तो वह मुकाबले से स्वयं को हटा सकता है जिससे उसका दूसरा स्थान सुनिश्चित रहे।

फोगाट का यह फाइनल मुकाबला था और इसमें हारने पर भी उन्हें रजत पदक मिलता। मगर खेल अधिकारियों ने इस तकनीकी पहलू की तरफ ध्यान क्यों नहीं दिया? यह विचारणीय मुद्दा है। जबकि फाइनल मुकाबले से एक दिन पहले विनेश ने सात घंटे के अन्दर प्री क्वार्टर फाइनल, क्वार्टर फाइनल औऱ सेम​ीफाइनल के तीन मुकाबले जीते थे। इसके बाद उसका वजन बढ़ा हुआ था जिसे कम करने की उसने रातभर व्यायाम आदि करके कोशिश की। फिर भी उसका वजन 100 ग्राम ज्यादा था तो खेल अधिकारी उसे सलाह दे सकते थे कि वह खुद को जख्मी घोषित करके मुकाबले से हट जाये और अपना रजत पदक पक्का कर ले परन्तु एेसा नहीं हुआ। भारत ओलम्पिक खेलों में अभी तक केवल तीन पदक ही जीत पाया है जबकि अमेरिका ने 80 से ऊपर पदक जीत लिये हैं। इस स्थिति को देखकर भी खिलाडि़यों के साथ गये खेल अधिकारियों व सहकर्मियों के कान खड़े नहीं हुए और उन्होंने फोगट के हाथ से पदक को जाते हुए देखा। ओलम्पिक खेलों में भारत से कुल 117 खिलाडि़यों का दल गया है जबकि खेल अधिकारियों व सहकर्मियों की संख्या इससे काफी ज्यादा है।

सवाल यह है कि इन खेल अधिकारियों में खेलों के नियम जानने वाले विशेषज्ञ भी होते हैं। दूसरे ओलम्पिक खेलों के ताजा इतिहास में भी इस प्रकार की कोई दूसरी घटना प्रकाश में नहीं आयी है। इस स्थिति से निराश होकर यदि विनेश फोगट ने पहलवानी से संन्यास लेने की घोषणा की है तो इससे किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए। इससे पता चलता है कि हमारे खेल अधिकारी विदेशों में खिलाड़ियों के साथ जाकर किस प्रकार का आचरण करते हैं। पहलवानी के क्षेत्र में स्वतन्त्र भारत में यह पहला मौका था जब कोई पहलवान (पुरुष वर्ग समेत) ओलम्पिक खेलों में फाइनल तक पहुंचा था। बेशक स्वतन्त्रता से पूर्व भारत के गामा पहलवान पेशेवर कुश्ती में विश्व विजयी थे जिन्होंने पूरी दुनिया में अपना नाम कमाया था। मगर महिला पहलवानों की कुश्ती प्रतियोगिताएं ओलम्पिक में बहुत बाद में होनी शुरू हुई हैं और इस प्रतियोगिता में भारत की महिला खिलाड़ी 90 के दशक से बहुत मेहनत करती नजर आ रही हैं। यह विनेश फोगाट की व्यक्तिगत लगन व मेहनत का ही फल था कि वह आजकल पेरिस में चल रहे ओलम्पिक खेलों के फाइनल में पहुंची मगर वहां पहुंच कर भी वह खाली हाथ ही रही। उन्हें लेकर देश में भी राजनीति गरमा गई है। विपक्ष ने कल उनके मामले में संसद के दोनों सदनों से वाकआऊट भी किया। जबकि सत्ता पक्ष की ओर से लोकसभा में खेलमन्त्री मनसुख मांडविया ने बयान दिया और बताया कि सरकार ने विनेश को कितनी वित्तीय सहायता दी है। इस पर भी विवाद गरमाया।

बेशक हरियाणा जो कि विनेश फोगाट का राज्य है, वहां दो महीने बाद ही विधानसभा चुनाव होने वाले हैं, जिसे देखते हुए राजनीति के दांव समझे जा सकते हैं परन्तु यह हकीकत अपने स्थान पर रहेगी कि विनेश फोगाट को नाजायज तौर पर पदक से विमुख किया गया। इससे हर भारतवासी खासा दुखी है और मानता है कि अन्तिम समय में विनेश फोगाट के साथ नाइंसाफी हुई। हालांकि इंडियन ओलम्पिक कमेटी ने ओलम्पिक खेलों की सर्वोच्च न्यायिक समिति से अपील की है कि फोगट को रजत पदक दिया जाये मगर ओलम्पिक एसोसिएशन अपने नियमों में बदलाव के लिए राजी नहीं हो रहा है। इंडियन ओलम्पिक कमेटी की अध्यक्ष भी एक पूर्व खिलाड़ी पीटी ऊषा हैं जो राज्यसभा सदस्य भी हैं। वह विनेश फोगाट का दुख भलीभांति समझ सकती है क्योंकि वह भी ओलम्पिक दौड़ प्रतियोगिता में सैकेंड के बहुत छोटे से हिस्से से पदक से चूक गई थीं। अगर हम ओलम्पिक पदक तालिका को देखें तो भारत बहुत निचले स्थान पर खड़ा हुआ है। इस स्थिति को देखते हुए हमें हर खेल के खिलाड़ियों को पूरी मदद देने के लिए भगीरथ प्रयत्न करने होंगे। पहलवानी जैसे खेल में महिला वर्ग का ऊपर जाना बताता है कि कुश्ती भारत की जमीन में पल्लवित हो सकती है। केवल गामा पहलवान ही नहीं बल्कि हम और भी बड़े पहलवान पैदा कर सकते हैं।

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