‘लेटरल एंट्री’ पर अपने-अपने तीर
सरकार के हर काम का विरोध करने पर आमादा विपक्ष केवल गैर जिम्मेदाराना ही हो सकता है और उसकी यह प्रवृत्ति व्यापक राष्ट्रीय हित के लिए कतई अच्छी नहीं है। यदि सरकार को प्रमुख निर्णयों पर विपक्ष की सहमति लेनी है तो विपक्ष को अपनी ओर से रचनात्मक होना होगा, न कि सरकार के हर कदम का रोबोट की तरह विरोध करना होगा।
यह कहते हुए कि नौकरशाही के मध्य स्तर पर 45 विशेषज्ञों की लेटरल एंट्री के लिए यूपीएससी विज्ञापन को रद्द करना दुर्भाग्यपूर्ण है। इसके बाद मोदी सरकार विपक्ष के डर से कोई सुधार कार्य नहीं करेगी। पर, बात यह है कि सितंबर-अक्तूबर में हरियाणा और उसके कुछ सप्ताह बाद महाराष्ट्र में होने वाले महत्वपूर्ण विधानसभा चुनावों से पहले यूपीएससी का विज्ञापन रद्द न करने से राहुल गांधी को मतदाताओं को गुमराह करने का मौका मिल जाता कि सरकार एससी- एसटी और ओबीसी के लिए आरक्षण समाप्त कर रही है लेकिन सवाल यह है कि एक अत्यंत गैर जिम्मेदार विपक्षी नेता के हाथों में क्यों खेलना? उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव में उन्होंने पूरी तरह से झूठा प्रचार किया था कि भाजपा का 400 सीटों का लक्ष्य संविधान को खत्म करना है और इसके साथ ही एससी-एसटी आरक्षण को भी खत्म करना है। उसे ऐसा करने का एक और मौका क्यों दिया जाए?
यहां यह जिक्र करना जरूरी है कि तीन वर्ष की सीमित अवधि के लिए क्षेत्र विशेष के विशेषज्ञों के लेटरल एंट्री के उद्देश्य पर विचार इसलिए किया गया ताकि स्थायी नौकरशाही उनकी विशेषज्ञता से लाभान्वित हो सके। हालांकि, यह स्वीकार किया जाना चाहिए कि सरकार में बाहरी विशेषज्ञ भी अक्सर कठोर नौकरशाही प्रणाली से निराश हो जाते हैं जो नई वैज्ञानिक और तकनीकी प्रगति और प्रक्रिया को अपनाने से इन्कार कर देती है। यह याद रखना चाहिए कि यह पहली बार नहीं है जब मोदी सरकार निजी प्रतिभाओं को नियुक्त करने की योजना बना रही है।
मोदी-1 और 2 में भी मुट्ठी भर डोमेन (क्षेत्र विशेष के) विशेषज्ञों की सेवाएं ली गई थीं। अगली बार जब यूपीएससी निजी क्षेत्र से विशेषज्ञों की भर्ती पर विचार करे तो उसे आरक्षण कोटा भी प्रदान करना चाहिए ताकि निहित स्वार्थ वाले लोग सरकार पर एससी-एसटी विरोधी पूर्वाग्रह का आरोप न लगा सकें। अनुसूचित जातियों,जनजातियों और अन्य पिछड़े वर्गों के पास अपेक्षित डोमेन ज्ञान की उपलब्धता पर ध्यान दिए बगैर, स्थायी नौकरशाही के अनुभव को समृद्ध करने के कदम को राहुल द्वारा विफल करने से रोकने के लिए आरक्षित कोटा निर्धारित किया जाना चाहिए।
राहुल गांधी को यह भी पता होना चाहिए कि कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूपीए के पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह भी सरकार में बाद में शामिल हुए थे लेकिन इससे पहले वह दिल्ली विश्वविद्यालय के दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में एसोसिएट प्रोफेसर के पद पर तैनात थे। पर बाद में वाणिज्य मंत्रालय में संयुक्त सचिव के पद पर एक सलाहकार के रूप में शामिल हुए। हालांकि दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में उनके बराबर योग्य कई अन्य प्रोफेसर भी थे जिनमें कौशिक बसु, अमर्त्य सेन लेकिन वह उस समय सरकारी सेवा में शामिल नहीं होना चाहते थे। हालांकि मनमोहन सिंह को वाणिज्य मंत्रालय में एक सलाहकार के रूप में सरकार की पेशकश पसंद आई और उन्होंने इसके लिए सरकार के निकाले गए विज्ञापन का जवाब भी दिया। फिर वह वाणिज्य मंत्रालय में शामिल हो गए और बाद में वित्त मंत्रालय में चले गए।
हालांकि जैसा वह कहते हैं वह जगजाहिर है, पर अंतिम लेकिन महत्वपूर्ण बात यह है कि आधार कार्ड के लिए एक विशाल इंटरनेट-आधारित ढांचा तैयार करने के लिए इंफोसिस के नंदन नीलेकणि को अस्थायी अवधि के लिए सरकार में शामिल किया गया था जो अब हर भारतीय के पास है ताकि सभी प्रकार की सरकारी और निजी क्षेत्र की सेवाओं का लाभ उठाया जा सके। बदले में नीलेकणि ने सैकड़ों युवा पुरुषों और महिलाओं को काम पर रखा, जिन्होंने वास्तव में क्षेत्र का काम किया। और न तो भाजपा जो उस समय विपक्ष में थी या किसी और ने सवाल उठाया कि क्या उन्होंने राष्ट्रव्यापी आधार डेटा बनाने के लिए जनशक्ति की भर्ती
करते समय एससी-एसटी और ओबीसी के लिए कोटा आरक्षित किया था या नहीं। इसके साथ ही नीलेकिण ने वह प्रोजेक्ट पूरा किया जो उन्हें मनमोहन सिंह सरकार ने दिया था। इसके बाद वह अपने निजी व्यवसाय में वापस
चले गए।
हर कोई अब आधार कार्ड के डिजिटल प्लेटफॉर्म से लाभ उठा रहा है। इसने मोदी सरकार को विभिन्न प्रकार की कल्याणकारी सेवाओं को डिजिटल बनाने में मदद की है। इस प्रकार हजारों करोड़ रुपये बचाए गए जो बिचौलियों और निम्न नौकरशाहों की जेब में चले जाते थे। अब निजी और सार्वजनिक क्षेत्र के दोनों बैंक अपने ग्राहकों के लिए पहचान उपकरण के रूप में आधार पर भरोसा करते हैं। उस समय यूपीए के प्रमुख नेता रहते हुए राहुल ने इस बात का विरोध नहीं किया कि आधार के निर्माण के लिए नीलेकणि के राष्ट्रव्यापी नेटवर्क में दलितों के लिए कोई कोटा प्रदान नहीं किया।
- वीरेंद्र कपूर