जरदारी को फिर सरदारी
पाकिस्तान पीपल्स पार्टी के नेता और दिवंगत प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो के पति आसिफ अली जरदारी एक बार फिर पाकिस्तान के राष्ट्रपति बन गए हैं। यह पद उन्हें पाकिस्तान मुस्लिम लीग नवाज के साथ गठबंधन सरकार बनाने के लिए हुई सौदेबाजी के तहत ही मिला है। आसिफ अली जरदारी का इतिहास हर कोई जानता है। पाकिस्तान में राष्ट्रपति पद एक औपचारिक पद है आैर वह प्रधानमंत्री और मंत्रिमंडल की सलाह पर काम करने के लिए बाध्य है। भारत की ही तरह पाकिस्तान में भी राष्ट्रपति कार्यपालिका के प्रमुख हैं और पाकिस्तान सशस्त्र बलों के सर्वोच्च कमांडर है। पाकिस्तान में राष्ट्रपति का कार्यालय 23 मार्च, 1956 को इस्लामिक गणराज्य की घोषणा पर बनाया गया था। जब 1962 में पाकिस्तान में संविधान बनाया गया तो उसमें राष्ट्रपति को सभी कार्यकारी शक्तियां मिल गईं। तब तक राष्ट्रपति के पास सभी कार्यकारी शक्तियां थीं। 1973 में जब नए संविधान में संसदीय लोकतंत्र की स्थापना की गई तो राष्ट्रपति की भूमिका को औपचारिक बना दिया गया। अब पाकिस्तान में भी राष्ट्रपति पद एक रबड़ की मोहर के समान है। हालांकि पाकिस्तान में जनरल जिया हो या परवेज मुशर्रफ उन्होंने तानाशाह के रूप में सभी शक्तियां हड़प ली थीं लेकिन इससे जनता में जबरदस्त आक्रोश ही फैला था।
पाकिस्तान की आवाम ने लोकतंत्र बहाली आंदोलन चलाकर परवेज मुशर्रफ को सत्ता से उखाड़ फैंका था। आसिफ अली जरदारी का इतिहास हर कोई जानता है। न तो उनके राष्ट्रपति बनने से पद की प्रतिष्ठा बढ़ी है और न ही उनकी। उनकी छवि युवावस्था में प्ले ब्वाय की तरह थी। उनका सियासी सफर 1983 में शुरू हुआ था, जब उन्होंने नवाब शाह से जिला परिषद की सीट पर चुनाव लड़ा लेकिन उन्हें करारी हार का सामना करना पड़ा। इसके बाद उन्होंने राजनीति को अलविदा कह दिया लेकिन 1987 में जरदारी की शादी बेनजीर भुट्टो से हुई। आलम ये था कि बेनजीर उस समय लोकप्रिय थी। वह उस समय पाकिस्तान में सत्ता विरोधी आंदोलन का चेहरा थीं। वह अगले ही साल देश की प्रधानमंत्री भी बन गईं लेकिन उनकी तुलना में जरदारी को कम ही लोग जानते थे लेकिन उनके भीतर ताकत और वर्चस्व की चाह कूट-कूटकर भरी थी। ऐसे में उन्होंने शुरूआत में पर्यावरण मंत्रालय अपने हाथ में ले लिया और फिर धीरे-धीरे कई अन्य मंत्रालयों की अगुवाई करने लगे। यहीं से उनके भ्रष्टाचार का खेल भी शुरू हुआ जो भी बेनजीर भुट्टो सरकार के साथ बिजनेस करना चाहता था, कहा जाता है कि जरदारी उससे पहले 10 फीसदी कमीशन तय कर लेते थे। इस दौरान सरकार से जुड़े कई मामलों में जरदारी पर घोटाले के आरोप लगने लगे। इस तरह वह पाकिस्तान की राजनीति में मिस्टर 10 परसेंट के नाम से पहचाने जाने लगे।
आसिफ अली जरदारी 2008 में पहली बार पाकिस्तान के राष्ट्रपति बने। उस समय पाकिस्तान के अखबारों में छपा था कि मिस्टर टेन परसेंट देश के नए राष्ट्रपति बने हैं। पाकिस्तान मीडिया में उस समय खूब सुर्खियां आई थी कि जरदारी पाकिस्तान सरकार में किसी भी प्रोजेक्ट को मंजूरी दिलवाने के लिए 10 फीसदी कमीशन की मांग करते हैं। जरदारी पर भ्रष्टाचार से लेकर अपहरण और बैंक फ्रॉड जैसे कई आरोप लगे। वह साल 1990 में पहली बार जेल गए थे। इसके बाद वह 1996 में दोबारा जेल गए। उन्होंने तकरीबन 12 साल जेल में बिताए थे, उन्हें भ्रष्टाचार और हत्या के आरोप में 1997 से 2004 तक जेल में रखा गया था। नवंबर 2004 में जमानत मिली लेकिन हत्या के मुकदमे की सुनवाई में शामिल नहीं होने के बाद उन्हें फिर से गिरफ्तार किया गया। जरदारी को एक स्विस कंपनी से जुड़े मामले में रिश्वत लेने का दोषी भी ठहराया गया। जरदारी पर पाकिस्तान में ही नहीं बल्कि ब्रिटेन और स्पेन सहित कई मुल्कों में भी मुकदमें चले थे।
अब सवाल यह है कि एक भ्रष्टाचारी जरदारी पाकिस्तान की सेना और वैश्विक कूटनीतिक चालों के बीच अपना अस्तित्व को कैसे बचा कर रखे हुए है। जरदारी ही ऐसे राष्ट्रपति रहे जिन्होंने 2008 से 2013 तक अपना 5 वर्ष का कार्यकाल पूरा किया था। राष्ट्रपति के रूप में उनके उल्लेखनीय फैसलों में असैम्बली को भंग करने का अधिकार संसद को वापिस करना, 18वें संविधानिक संशोधन के जरिये राज्यों की स्वायत्तता बहाल करना और फाटा क्षेत्र में सुधार प्रमुख रहे। इसके अलावा उनके फैसलों में सूबा-ए-सरहद को खैबर पख्तूनख्वा नाम देना और ब्लूचिस्तान को अधिकार देने का पैकेज शामिल है। जरदारी की सफलता का राज उनका लचकदार होना है। राष्ट्रपति पद पर बैठकर उन्होंने एस्टेबिलेशमैंट के साथ कभी टकराव मोल नहीं लिया। पाकिस्तानी सेना प्रतिष्ठान उसी नेता को टिकने देता है जो उसके कहे अनुसार चले। परवेज मुशर्रफ से भी उनकी अंदर खाने सांठगांठ रही। मैमोगेट सकैंडल के बाद उन्होंने सेना के जनरैलों के साथ विवाद सुलझा लिया था। चार-पांच मौकों पर वह सेना से टक्कर लेने से बचे। इसी लचक की वजह से जरदारी आज तक सुरक्षित हैं। क्योंकि वह किसी के लिए खतरा बनते ही नहीं। न वह सीधे जनता के पास जाते हैं और न ही प्रभावशाली प्रतिष्ठानों से टक्कर लेते हैं, इसलिए वह मजे में हैं।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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