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बुर्जुग खुद को समय जरूर दे...

03:55 AM Nov 05, 2025 IST | Saddam Author
बुर्जुग खुद को समय जरूर दे
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नेवर से रिटायर्ड के प्लेटफॉर्म से पिछले कुछ समय से हम रोज एक सुविचार साझा करने का प्रयास कर रहे हैं। हाल ही में एक विचार ने मुझे विशेष रूप से छू लिया -खुद को समय जरूर दें, आपकी पहली जरूरत आप खुद हैं। कितना गहरा सत्य है यह वाक्य! और विशेषकर हम जैसे वरिष्ठजनों के लिए तो यह और भी अधिक प्रासंगिक है। हमने जीवन का अधिकांश हिस्सा दूसरों के लिए जीते हुए बिताया। पढ़ाई, नौकरी, परिवार बसाना, बच्चों की पढ़ाई, विवाह, करियर-जिम्मेदारियों का सिलसिला कभी थमता ही नहीं था। जैसे-जैसे उम्र बढ़ती गई, अपने लिए समय निकालना और भी कठिन होता गया। हर वक्त किसी न किसी की चिंता, किसी न किसी काम का बोझ। लेकिन अब, जब हम जीवन के उस पड़ाव पर पहुंच चुके हैं जहां दायित्वों का बोझ कुछ हल्का हुआ है-यह समय है अपने आप से मिलने का, स्वयं की देखभाल का, स्वयं को प्राथमिकता देने का। हम सबको यह स्वीकार करना होगा कि उम्र के साथ शरीर और मन दोनों में बदलाव आता है। यह स्वाभाविक है, पर इन्हें नजरअंदाज़ करना ठीक नहीं। अब हमें अपने जीवन के 'सुनहरे वर्षोंÓ को संवारने का संकल्प लेना होगा। आइए देखें कि हम अपने लिए क्या-क्या कर सकते हैं-
शरीर को रोज समय दें
दिन के 24 घंटों में से कम से कम दो घंटे अपने शरीर और मन के लिए निकालिए। थोड़ा टहलना, हल्का व्यायाम, योगासन या प्राणायाम-कुछ भी जो आपको सहज लगे। यह न केवल शरीर को सक्रिय रखेगा, बल्कि मानसिक ताजगी भी देगा। रात को नींद अच्छी आएगी, पाचन सुधरेगा और मन प्रसन्न रहेगा। याद रखिए- आपका शरीर अब आपका सबसे बड़ा साथी है, इसे अनदेखा मत कीजिए।
रोज 5000 कदम चलने की आदत डालिए
हमारे पैर हमारे जीवन का आधार हैं। जब पैर जवाब दे जाते हैं तो दुनिया छोटी हो जाती है- घर की चारदीवारी तक सीमित। इसलिए जरूरी है कि हम रोज कम से कम 5000 कदम चलें। चाहे घर के अंदर ही टहलें या पास के पार्क में, चलना न छोडि़ए। पैरों की ताक़त, उनमें रक्त प्रवाह, झनझनाहट या सुन्नपन-ये सब चलने से ही सुधरते हैं। चलना जीवन की गति को बनाए रखने का सबसे सस्ता और असरदार उपाय है।
धूप और तेल मालिश-दोनों का संग
बुजुर्गों के लिए धूप किसी दवा से कम नहीं। सर्दी के मौसम में धूप में बैठना और हल्की तेल मालिश करना शरीर के लिए वरदान है। अगर किसी मसाज वाले की व्यवस्था न हो, तो खुद ही पैरों, हाथों और पीठ पर तेल मलें। यह न केवल रक्त संचार को बढ़ाता है, बल्कि मन को भी सुकून देता है। धूप में बैठकर मालिश करना एक तरह का मेडिटेशन इन मोशन है - जहां शरीर और मन दोनों विश्राम
पाते हैं।
रोज संवाद बनाए रखें
हमारे समय में जब फोन या व्हाट्सऐप नहीं थे, तो मिलना-जुलना ही संवाद का माध्यम था। अब, तकनीक ने दूरी मिटा दी है-बस इच्छा होनी चाहिए। हर दिन कुछ न कुछ बातचीत कीजिए- परिवारवालों से, पुराने मित्रों से, पड़ोसियों से। संवाद से रिश्ते मजबूत होते हैं, मन हल्का होता है और अकेलेपन का बोझ कम होता है। कभी किसी को फोन लगाइए, कभी किसी पुराने मित्र से मिलने जाइए- क्योंकि मनुष्य सामाजिक प्राणी है, और बुजुर्गावस्था में समाज ही हमारी ताकत है।
टेंशन से निपटने का सही उपाय
डॉक्टर अक्सर कहते हैं-टेंशन मत लीजिए। लेकिन यह कोई नहीं बताता कि टेंशन न लेने का उपाय क्या है। मेरा अनुभव कहता है कि सकारात्मक व्यस्तता ही इसका इलाज है।
जब हम किसी प्रिय कार्य में मन लगाते हैं- बागवानी, पढऩा, संगीत, धार्मिक क्रियाएं या सेवा कार्य- तो मन में नकारात्मकता टिक नहीं पाती। अपने जीवन में खालीपन को भरना है तो सकारात्मक क्रियाओं से भरिए, शिकायतों से नहीं।
अपने शौक फिर से जिएं
जीवनभर रोजगार और जिम्मेदारियों में हममें से अधिकांश ने अपने शौक को किनारे रख दिया। किसी को पेंटिंग पसंद थी, किसी को लेखन, किसी को संगीत या फोटोग्राफी। अब, जब समय है, तो इन अधूरे शौकों को फिर से जगा दीजिए। यकीन मानिए, जब आप अपने मन की किसी रुचि में खो जाते हैं, तो शरीर भी जवान महसूस करता है। शौक आत्मा का पोषण करते हैं, और आत्मा को सशक्त किए बिना हम शरीर को स्वस्थ नहीं रख सकते।
खुद से दोस्ती करें
कभी-कभी सबसे जरूरी रिश्ता होता है-अपने आप से। एकांत में कुछ समय खुद के साथ बिताइए। सोचिए कि आप वास्तव में क्या चाहते हैं, किस चीज में शांति मिलती है। डायरी लिखिए, संगीत सुनिए, या बस खामोशी में बैठिए। खुद से संवाद करना आत्मिक ऊर्जा देता है-और यही ऊर्जा हमारे बाकी जीवन को अर्थ देती है। जीवन का यह पड़ाव 'अंतÓ नहीं, बल्कि एक नया आरंभ है- जब हम अनुभव, शांति और आत्मसंतोष के साथ जी सकते हैं।
हमने वर्षों तक सबके लिए
जिया, अब वक्त है अपने लिए जीने का। अपने शरीर, मन और आत्मा को समय दीजिए-क्योंकि अब आप ही आपकी सबसे बड़ी प्राथमिकता हैं।

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