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चुनावी बॉन्ड को सुप्रीम कोर्ट की तरफ से असंवैधानिक करार दिए जाने के बाद अब सत्ता के गलियारे में इस बार के चुनाव में काले धन का इस्तेमाल बढ़ने की चर्चा शुरू हो गई है। अटकल लगाई जा रही है कि वर्ष 2017 से पहले जिस प्रकार से चुनाव के दौरान काले धन का इस्तेमाल होता था, वह व्यवस्था फिर से वापस आ सकती है।
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दरअसल पूर्व की तरह चंदा का 80-90 फीसद फिर से अनाम स्रोत से ही आएगा। सूत्रों के मुताबिक चुनावी बॉन्ड लाने के पीछे सरकार का मुख्य उद्देश्य था कि चुनाव में खर्च होने वाला पैसा काला धन न हो। लोग बॉन्ड खरीदकर पार्टियों को देते थे। वर्ष 2017 से पहले चुनाव में उम्मीदवार की तरफ से कोई दूसरा या तीसरा व्यक्ति उनके विज्ञापन से लेकर अन्य खर्च का जिम्मा ले लेता था और अपने काले धन का इस्तेमाल उसमें करता था।
फंडिंग करने वालों को कई बार स्थानीय स्तर उन नेताओं से खतरा भी मोल लेना पड़ता था जिनके लिए वे खर्च नहीं करते थे। चुनावी बॉन्ड के जरिए फंड देने वालों के नाम की गोपनीयता से उन्हें स्थानीय स्तर पर किसी दूसरे नेता या पार्टी से कोई खतरा नहीं रहता था। चुनावी बॉन्ड से फंड करने वाले सीधे तौर पर राजनीतिक पार्टी को पैसा दे रहे थे न कि किसी किसी नेता को। इसलिए दान करने वाले सुरक्षित थे।
चुनावी बॉन्ड इस आधार पर असंवैधानिक करार दिया गया कि इसमें मतदाताओं को फंडिंग के स्रोत की जानकारी नहीं मिलती है। लेकिन दूसरा पहलू यह भी है कि बेनाम स्रोत से मिलने वाले फंड में भी मतदाताओं को इसकी जानकारी नहीं मिलती है कि वहां किसने दिया। सूत्रों का कहना है कि अगले महीने के दूसरे सप्ताह तक लोक सभा चुनाव की घोषणा हो सकती है, इसलिए चुनाव में काले धन के इस्तेमाल को रोकने के लिए सरकारी तंत्र पूरी तरह से सतर्क हो गई है और तकनीक के माध्यम से भी नजर रखी जाएगी।