चुनाव आयोग और आधार कार्ड
चुनाव आयोग ने सर्वोच्च न्यायालय की यह सलाह मानने से इन्कार कर दिया है कि बिहार में मतदाता सूची के पुनरीक्षण व सत्यापन में आधार कार्ड, राशन कार्ड व वोटर पहचान पत्र को भी एक पैमाना माना जाये। आयोग ने न्यायालय के निर्देशानुसार 21 जुलाई को एक शपथ पत्र दाखिल कर यह कहा है कि वह इन तीनों दस्तावेजों में से किसी एक को भी जायज मतदाता होने का आधार नहीं मान सकता है क्योंकि इन तीनों में से कोई भी दस्तावेज या प्रपत्र किसी मतदाता के भारतीय नागरिक होने का प्रमाण नहीं है। चुनाव आयोग ने कहा है कि आधार कार्ड भारतीय नागरिकता का प्रमाण नहीं है हालांकि यह नागरिकों के अन्य दस्तावेज तैयार कराने में काम आता है। चुनाव आयोग ने विगत दिनों 11 एेसे प्रपत्रों की सूची जारी की थी जिन्हें दिखाने पर ही किसी भी मतदाता के जायज होने का सबूत मिलता। इन 11 प्रपत्रों में उपरोक्त तीन प्रपत्र शामिल नहीं थे। इसके बाद बिहार की राजनीति में भूचाल जैसा आ गया था और सभी विपक्षी राजनैतिक दल चुनाव आयोग के इस फैसले की आलोचना कर रहे थे। इसके विरोध में बहुत से भाजपा विरोधी राजनैतिक दलों व नेताओं ने सर्वोच्च न्यायालय में याचिकाएं भी दायर की थीं। उन याचिकाओं की सुनवाई करते हुए ही सर्वोच्च न्यायालय ने आयोग को सलाह दी थी कि वह आधार कार्ड, राशन कार्ड व वोटर पहचान पत्र को भी 11 दस्तावेजों के साथ जोड़ सकता है।
एेसा माना जा रहा है कि चुनाव आयोग मतदाता सूचियों का जो गहन पुनरीक्षण कर रहा है उसमें सभी फर्जी मतदाताओं के बाहर होने का रास्ता खुलता है। परन्तु इसके साथ ही कुछ एेसे मतदाता भी हैं जिनके जायज होने के बावजूद सूची से बाहर होने का दरवाजा भी खुल सकता है क्योंकि चुनाव आयोग 1987 से 2003 के बीच पैदा हुए नये मतदाताओं का जन्म प्रमाणपत्र भी मांग रहा है। चुनाव आयोग ने साथ ही यह भी घोषणा की थी कि जिन मतदाताओं के नाम 2003 की पुनरीक्षण सूची में थे उन्हें चिन्ता करने की कोई जरूरत नहीं है मगर आयोग द्वारा जारी पुनरीक्षण के लिए जारी फार्म को उन्हें भी भरना होगा। आयोग ने अपने शपथ पत्र में कहा है कि यह उसका संवैधानिक दायित्व है कि मतदाता आवश्यक रूप से भारत का नागरिक हो मगर मतदाता सूची में उसका नाम न आने से उसकी नागरिकता का अधिकार छिनता भी नहीं है।
भारत में नागरिकता की पहचान का कार्य गृह मन्त्रालय करता है। यह कार्य चुनाव आयोग के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता है। विगत 10 जुलाई को सर्वोच्च न्यायालय ने विपक्षी दलों द्वारा दायर याचिकाओं की सुनवाई करते हुए कहा था कि वह बिहार में मतदाता सूची के गहन पुनरीक्षण के काम को रोक नहीं रहा है बल्कि आधार कार्ड, राशन कार्ड व वोटर पहचान पत्र को भी शामिल करने का सुझाव दे रहा है। जबकि विपक्षी दल मांग कर रहे थे कि पुनरीक्षण के काम पर तुरन्त रोक लगाई जाये। चुनाव आयोग का कहना है कि जहां तक राशन कार्ड का सवाल है तो इनके लाखों की संख्या में बोगस या फर्जी तरीके से जारी होने की बात स्वयं सरकारों की तरफ से कही गई है। इस बारे में आयोग ने विगत 7 मार्च को केन्द्र सरकार द्वारा जारी विज्ञप्ति का हवाला दिया है जिसमें कहा गया है कि देश में लाखों की संख्या में बोगस राशन कार्ड मौजूद हैं। अतः राशन कार्ड को भी जायज नागरिकता का प्रमाणपत्र नहीं माना जा सकता है और जहां तक वोटर पहचान पत्र का सवाल है तो वे तब जारी परिपाठी के अनुसार ही बनाये जाते हैं और यह वर्तमान में जारी सूची के ही अंग हैं जबकि इनके सत्यापन का कार्य अब जारी है। अतः इन्हें भी प्रमाण नहीं माना जा सकता।
पिछले बीस साल से बिहार में मतदाता सूचियों के सत्यापन या पुनरीक्षण का काम नहीं हुआ है। अतः यह कार्य करना अब बहुत जरूरी है। आयोग के अनुसार उसने जो 11 प्रपत्रों की सूची जारी की है वह कोई बहुत बड़ी मुसीबत की चीज नहीं है बल्कि केवल सांकेतिक है जिससे किसी भी मतदाता के जायज होने का सबूत मिल सके। आयोग के आदेश के अनुसार बिहार के सभी 7.8 करोड़ मतदाताओं को नया फार्म भरना होगा जिससे सभी की पहचान हो सके। इनमें से केवल उन्हीं मतदाताओं को 11 प्रपत्रों में से एक देने के लिए कहा गया है जिनके नाम 2023 के बाद मतदाता सूची में जुड़े हैं। गौर से देखा जाये तो चुनाव आयोग की यह कसरत व्यर्थ भी नहीं है क्योंकि देश के विभिन्न हिस्सों से एेसी शिकायतें मिलती रहती हैं कि मतदाता सूचियों में फर्जी नामों को रखा गया है और एक मतदाता के अलग-अलग पतों से दो-दो वोटर पहचान पत्र भी हैं। चुनाव आयोग के नये निर्देशों के अनुसार यह जिम्मेदारी अब नागरिक पर आ गई है कि वह अपनी नागरिकता साबित करे। चुनाव आयोग के अनुसार इसमें कोई गलत बात नहीं है क्योंकि भारत में जन्मे लोगों की नागरिकता का जहां तक सवाल है तो उन्हें ही सिद्ध करना होगा कि उनका जन्म भारत में हुआ है और इसके लिए उन्हें जन्म तिथि व स्थान का प्रमाण देना होगा जिससे उनका नाम मतदाता सूची में जुड़ सके। यह उपबन्ध एेसे नये मतदाताओं पर ज्यादा लागू होता है जो हाल ही में 18 वर्ष के हुए हैं। कुल मिलाकर चुनाव आयोग की कवायद की आंख मींच कर आलोचना भी नहीं की जा सकती हैै। मगर यह भी सत्य है कि निर्वाचन आयोग बिहार में मतदाता सूची का पुनरीक्षण जल्दबाजी में करा रहा है।