चुनाव आयोग की पहल
भारतीय निर्वाचन आयोग की निष्पक्षता को लेकर लगातार सवाल उठते रहे हैं। जिस प्रकार…
भारतीय निर्वाचन आयोग की निष्पक्षता को लेकर लगातार सवाल उठते रहे हैं। जिस प्रकार के आरोप उस पर लगते रहे हैं उससे निर्वाचन आयोग की विश्वसनीयता कम हुई है। चुनाव आयोग की कार्यशैली से नागरिकों का भरोसा कमजोर हुआ है। ईवीएम में गड़बड़ी से लेकर मतदाता सूचियों में गड़बड़ी के गंभीर आरोप लगातार लगाये जाते रहे हैं। चुनाव आयोग कितने भी तर्क दे लेकिन राजनीतिक दल और आम मतदाता उससे संतुष्ट नजर नहीं आ रहे। पहले तो आयोग ईवीएम में संग्रहीत आंकड़े बताने तक से इंकार करता रहा है। अब सुप्रीम कोर्ट ने आयोग से कहा है कि ईवीएम में संग्रहीत आंकड़ों को न हटाया जाए। दरअसल, हरियाणा कांग्रेस के नेताओं ने याचिका दायर की है कि जली हुई ईवीएम की ‘मैमोरी’ और ‘माइक्रोकंट्रोलर’ को इंजीनियर से सत्यापित किया जाए कि ईवीएम से छेड़छाड़ नहीं हुई है। मगर यहां सवाल सत्यापन से अधिक संदेह का है। आरोपों से घिरे आयोग को जवाब देना ही होगा।
पिछले िदनों कांग्रेस नेता राहुल गांधी, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और अन्य नेताओं ने महाराष्ट्र की मतदाता सूची और पश्चिम बंगाल की मतदाता सूचियों में डुप्लीकेट मतदाताओं का मुद्दा उठाया था। चुनाव आयोग ने इस पर सफाई दी थी और कहा था कि एक ही नंबर के दो वोटर कार्ड का मतलब फर्जी वोटर होना नहीं है क्योंकि मतदाता केवल अपने वोटर कार्ड में उल्लिखित मतदान केन्द्र पर ही वोट डाल सकता है जो कार्ड नंबर समान होने पर भी अलग होगा। चुनाव आयोग ने एक नई पहल करते हुए वोटरों को यूनीक ईपीआईसी नंबर आवंटित करने का निर्णय भी लिया। डुप्लीकेट फोटो वाले वोटर के नंबर के किसी भी मामले को एक विशिष्ट ईपीआईसी नंबर अलॉट करके ठीक किया जाएगा। रिटायर्ड आईएएस ज्ञानेश कुमार के मुख्य चुनाव आयुक्त का पदभार संभालने के बाद उन्होंने देश के सभी सीईओ की मीटिंग बुलाई थी जिसमें वोटर लिस्ट में गड़बड़ी से लेकर वोटिंग प्रतिशत तक से जुड़ी राजनीतिक दलों की शिकायतों को दूर करने का फैसला किया था। निर्वाचन आयोग ने सिस्टम को बेहतर करने के लिए सुझाव भी मांगे थे।
आयोग चाहता है कि भविष्य में फिर से इस तरह की कोई समस्या सामने ना आने पाए। इसलिए वोटर लिस्ट अपडेट करते वक्त विभिन्न राजनीतिक पार्टियों और आम लोगों को इसके लिए मैक्सिमम स्तर पर संतुष्ट करने का भी प्लान तैयार करने पर बात की जाएगी। जिसमें वोटर लिस्ट से अगर किसी वोटर का नाम जोड़ना है या काटना है तो उस वोटर को इस बारे में 100 फीसदी यह पता होना ही चाहिए कि उसका नाम वोटर लिस्ट से काट दिया गया है, फिर वह किसी भी आधार पर काटा गया हो।
अब चुनाव आयोग ने मतदाता पहचान पत्र को आधार कार्ड से जोड़ने की पहल करने का फैसला किया है। चुनाव आयोग 18 मार्च को केन्द्रीय गृह सचिव, यूआईडीएआई के सीईओ के साथ बैठक करेगा जिसमें इस मुद्दे पर चर्चा होगी। कांग्रेस और तृणमूल की चिंताओं के बाद चुनाव आयोग ने तीन महीने में डुप्लीकेट एंट्री हटाने की घोषणा की है। फिलहाल चुनाव कानून (संशोधन) विधेयक 2021 चुनाव अधिकारियों को मतदाताओं के आधार नंबर मांगने की अनुमति देता है लेकिन यह स्वैच्छिक है और यह कानून और गोपनीयता संबंधी चिंताओं से घिरा हुआ है। चुनाव आयोग ने अपने डेटा बेस में स्वैच्छा से बड़ी संख्या में आधार नंबर दर्ज किए हैं लेकिन गोपनीयता की चिंताओं के कारण दोनों प्रणालियों को पूरी तरह से एकीकृत नहीं कर पाया है। चुनाव आयोग लंबे समय से आधार सीडिंग का समर्थन करता रहा है। चुनाव आयोग इसे मतदाता सूची में दोहराव रोकने का एक तरीका मानता है। अब देखना यह है कि इस मुद्दे पर होने वाली बैठक में क्या फैसला होता है। चुनाव आयोग पर लगने वाले आरोपों की सूची काफी लंबी है। उस पर सत्तारूढ़ दल के पक्ष में काम करने और विपक्ष को निशाना बनाने के आरोप लगते रहे हैं। चुनाव आयोग पर हमेशा ही पक्षपाती एम्पायर की तरह व्यवहार करने के आरोप भी लगते रहे हैं। चुनाव आयोग एक स्वायत्त संवैधानिक निकाय है। चुनाव आयोग को स्वतंत्र और निष्पक्ष होकर काम करना चाहिए। चुनाव आयोग को न सिर्फ निष्पक्ष होना चाहिए बल्कि गंभीरता के साथ काम करे और राजनीतिक दलों की शिकायतों का निराकरण करे। यह भी जरूरी है कि राजनीतिक दल उपायों से संतुष्ट हो तभी चुनाव की साख कायम होगी।