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चुनाव आयुक्त का ‘चुनाव’

भारत की लोकतान्त्रिक प्रणाली में चुनाव आयोग ऐसी संवैधानिक संस्था है जो पूर्णतः…

10:52 AM Feb 15, 2025 IST | Aditya Chopra

भारत की लोकतान्त्रिक प्रणाली में चुनाव आयोग ऐसी संवैधानिक संस्था है जो पूर्णतः…

भारत की लोकतान्त्रिक प्रणाली में चुनाव आयोग ऐसी संवैधानिक संस्था है जो पूर्णतः निष्पक्ष व बेनियाज मुंसिफ की तरह देश में चुनाव कराने की जिम्मेदारी से बंधी होती है। अतः जब किसी व्यक्ति को मुख्य चुनाव आयुक्त के पद पर बैठाया जाता है तो उससे अपेक्षा की जाती है कि वह देश की राजनैतिक व्यवस्था में पूरी तरह न्याय संगत रुख अख्तियार करेगा और किसी भी राजनैतिक दल के प्रति किसी भी प्रकार का पक्षपात नहीं करेगा। हमारे संविधान निर्माताओं ने चुनाव आयोग के कार्यालय को सरकार से अलग रखते हुए जो व्यवस्था की उसमें इस बात का ध्यान रखा गया कि चुनाव आयोग किसी भी प्रकार से सत्तारूढ़ दल के प्रभाव में न आ पाये और अपना काम पूरी न्यायप्रियता के साथ करे। यह न्यायप्रियता जमीन पर दिखनी भी चाहिए और अमल में आनी भी चाहिए परन्तु पिछले कुछ वर्षों से चुनाव आयोग को लेकर देशभर में जो वातावरण बना है उसे किसी भी तरह से लोकतन्त्र के हित में नहीं कहा जा सकता है। चुनाव आयोग पर विपक्षी दल जिस तरह से अंगुली उठाते हैं उससे इस संस्था का इकबाल गिरा है और लोकतन्त्र में किसी भी स्वतन्त्र संस्था के इकबाल गिरने का मतलब बहुत गंभीर माना जाता है।

संविधान में चुनाव आयोग के कर्त्तव्य तो बताये गये मगर उसका चुनाव करने की विधि नहीं बताई गई और उसकी नियुक्ति का निर्णय सरकारों पर ही छोड़ दिया गया। हालिया सालों में चुनाव आयोग के विवादों में घिरने का सिलसिला चला तो देश के सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि जब तक संसद इस बारे में कोई कानून नहीं बनाती है तब तक चुनाव आयुक्त की नियुक्ति एक एेसी चयन समिति करेगी जिसमें प्रधानमन्त्री और उनका एक मन्त्री व लोकसभा में विपक्ष के नेता व मुख्य न्यायाधीश होंगे। वास्तव में चुनाव आयुक्त की नियुक्ति का मामला पिछली मनमोहन सरकार के दौरान भी गरमाया था और तब लोकसभा में विपक्ष के नेता श्री लालकृष्ण अडवानी ने सुझाव दिया था कि चयन समिति में देश के मुख्य न्यायाधीश भी होने चाहिए और प्रधानमन्त्री व मन्त्री के साथ संसद में विपक्ष के नेता भी होने चाहिए। 2023 में सर्वोच्च न्यायालय के चयन समिति गठित करने के आदेश के बाद केन्द्र सरकार ने चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के लिए एक कानून बनाया। इसमें एेसी चयन समिति का प्रावधान है जिसमें मुख्य न्यायाधीश को शामिल नहीं किया गया है और प्रधानमन्त्री व गृहमन्त्री के अलावा लोकसभा में विपक्ष के नेता को सम्मिलित किया गया है।

जब यह कानून बन रहा था तो इसका विरोध विपक्षी दलों ने पुरजोर तरीके से किया और कहा कि एेसी समिति में सरकार का ही बहुमत रहेगा तो विपक्ष के नेता की भूमिका क्या होगी? इस चयन प्रक्रिया का विरोध लोकसभा में विपक्ष के वर्तमान नेता श्री राहुल गांधी आज भी कर रहे हैं। इस कानून को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई जिस पर सुनवाई चल रही है और सुनवाई की अगली तारीख 19 फरवरी ही है परन्तु इस बीच 18 फरवरी को ही वर्तमान मुख्य चुनाव आयुक्त श्री राजीव कुमार रिटायर हो रहे हैं। उनके अवकाश प्राप्त करने के एक दिन पहले ही 17 फरवरी को चयन समिति की बैठक है जिसमें नये मुख्य चुनाव आयुक्त का चुनाव किया जायेगा। तर्क दिया जा सकता है कि समिति की बैठक को 19 फरवरी तक टाला जाना चाहिए था जिससे इस मामले पर सर्वोच्च न्यायालय के रुख का पता चल सके परन्तु सरकार पद खाली होने के बाद नियमतः तुरन्त उसे भरना चाहती है। इसमें किसी प्रकार की कानूनी अड़चन नहीं है। नये कानून के तहत सरकार कानून मन्त्री के नेतृत्व में चुनाव आयुक्त पद के लिए योग्य व्यक्ति की तलाश के लिए एक तीन सदस्यीय दल बनायेगी जिसमें केन्द्र सरकार के दो सेवारत सचिव होंगे। यह तलाश दल पांच नामों की सिफारिश करेगा जिनमें काम कर रहे दो अन्य चुनाव आयुक्त भी हो सकते हैं और इससे बाहर के भी व्यक्ति हो सकते हैं बशर्ते वे सचिव स्तर के हों। ये पांचों नाम चयन समिति के पास जायेंगे और वह इनमें से किसी एक का चुनाव कर सकती है परन्तु यदि समिति चाहे तो इन पांच नामों के अलावा भी बाहर से किसी अन्य उलब्ध प्रतिष्ठित और विश्वसनीय समझे जाने वाले अनुभवी व्यक्ति का चुनाव कर सकती है। इसका मतलब यह हुआ कि समिति केवल तलाश दल द्वारा छांटे गये पांच नामों से ही बंधी हुई नहीं है।

अब सवाल यह पैदा हो रहा है कि यदि 19 फरवरी को सर्वोच्च न्यायालय का रुख वर्तमान चयन प्रक्रिया के खिलाफ आता है तो 17 फरवरी को बुलाई गई बैठक द्वारा की गई कवायद का क्या होगा? चयन समिति की बैठक में विपक्ष के नेता राहुल गांधी का रुख क्या होगा ? वैसे उनके विरोध के कोई मायने नहीं निकलेंगे क्योंकि वह समिति में अल्पमत में हैं। सरकार यदि चाहे तो उनके विरोध के बावजूद अपनी मनमर्जी का व्यक्ति मुख्य चुनाव आयुक्त के पद पर बैठा सकती है। यह भी सत्य है कि तलाश दल द्वारा चयनित पांच नाम अभी तक सभी सदस्यों को भेज दिये गये होंगे और वे किसी एक के बारे में अपना मन बना सकते हैं मगर समिति में फैसला तो बहुमत के आधार पर ही होगा। चुनाव आयोग की भूमिका लोकतन्त्र में चुनाव प्रणाली को निष्पक्ष व स्वतन्त्र व पारदर्शी बनाने की होती है मगर भारत में तो चुनावों में ईवीएम मशीन के प्रयोग को लेकर ही सत्ता पक्ष व विपक्ष में महासंग्राम छिड़ा हुआ है। नये मुख्य चुनाव आयुक्त को इस बारे में भी विचार करना होगा।

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