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महाराष्ट्र व झारखंड में चुनाव

04:00 AM Oct 16, 2024 IST | Aditya Chopra

चुनाव आयोग ने लम्बे इन्तजार के बाद महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव एक ही चरण में कराने का एेलान कर दिया है। साथ ही झारखंड राज्य में भी चुनाव कराने की घोषणा की गई है। इस 81 सदस्यों वाली विधानसभा के चुनाव दो चरणों 13 व 20 नवम्बर को होंगे। इन दोनों राज्यों के अलावा 15 राज्यों की खाली पड़ी 48 विधानसभा सीटों पर भी उपचुनाव कराये जा रहे हैं। इन चुनावों के साथ ही चुनाव आयोग लोकसभा की दो खाली हुई सीटों पर भी उपचुनाव कराने जा रहा है जिनमें केरल राज्य की वायनाड व महाराष्ट्र की नान्देड सीटें शामिल हैं। वायनाड की सीट लोकसभा में विपक्ष के नेता श्री राहुल गांधी ने पिछले दिनों हुए लोकसभा चुनावों में भारी बहुमत से जीती थी। मगर इसके साथ ही वह उत्तर प्रदेश की रायबरेली सीट से भी चुनाव जीते थे। दो सीटों से चुनाव जीतने वाले राहुल गांधी को संविधान के अनुसार एक ही सीट रखने का अधिकार था। अतः उन्होंने वायनाड सीट को खाली कर दिया था। तभी से कहा जा रहा है कि जब भी उपचुनाव घोषित होंगे तो कांग्रेस की तरफ से राहुल गांधी की बहन श्रीमती प्रियंका गांधी वाड्रा चुनाव लड़ेंगी। अतः हम बहुत जल्दी सुन सकते हैं कि प्रियंका गांधी ने वायनाड से अपनी उम्मीदवारी का पर्चा भर दिया है। इसकी वजह यह है कि गांधी परिवार वायनाड द्वारा राहुल गांधी को दिखाये गये प्यार की अनदेखी नहीं कर सकता है क्योंकि 2019 के लोकसभा चुनावों में श्री राहुल गांधी ने वायनाड से पर्चा बहुत बाद में दाखिल किया था और यहां की जनता ने उन्हें पलकों पर बैठा लिया था।
2019 में राहुल गांधी रायबरेली से भाजपा की नेता श्रीमती स्मृति ईरानी के हाथों परास्त हो गये थे मगर वायनाड के लोगों ने उनकी इज्जत बचा ली थी और वह रिकाॅर्ड वोटों से विजयी घोषित हुए थे। अतः झारखंड व महाराष्ट्र के चुनावी शोर में वायनाड में होने वाला उपचुनाव मीडिया में सुर्खी बटोरे बिना नहीं रहेगा। जहां तक महाराष्ट्र व झारखंड का सवाल है तो इन दोनों में ही भारतीय जनता पार्टी व कांग्रेस समाहित इंडिया गठबन्धन के बीच भीषण संघर्ष देखने को मिल सकता है। इनमें से जहां झारखंड में इंडिया गठबन्धन की सरकार है तो महाराष्ट्र में भाजपा नीत एनडीए की सरकार है। महाराष्ट्र जहां देश की वित्तीय व्यवस्था का मेरूदंड समझा जाता है तो झारखंड खनिज सम्पदा का सिरमौर माना जाता है। महाराष्ट्र उत्तर प्रदेश के बाद देश का सबसे बड़ा राज्य भी है।
आजाद भारत की राजनीति में इसका विशिष्ट स्थान इसलिए माना जाता है क्योंकि यह समाज सुधारकों की राजनीति का केन्द्र रहा है। परन्तु वर्तमान समय में इस राज्य में शिवसेना पार्टी का दबदबा भी बढ़ा और इसने भाजपा के साथ हाथ मिलाकर उसकी पैठ भी इस राज्य में बनाई। यह सनद रहना चाहिए कि शिवसेना ने ही सर्व प्रथम मराठी अस्मिता व हिन्दुत्व के विमर्श आक्रामक तरीके से गढ़ा था और बाद में भाजपा के साथ हाथ मिलाकर राज्य की राजनीति में नया राष्ट्रवादी पुट भरा था। मगर दुर्भाग्य यह रहा कि शिवसेना से ही विद्रोह करके इसके एक गुट ने वर्तमान मुख्यमन्त्री एकनाथ शिन्दे के साथ शिवसेना के संस्थापक स्व. बाला साहेब ठाकरे के सुपुत्र श्री उद्धव ठाकरे की महाविकास अघाड़ी गठबन्धन की सरकार गिराई जिसमें कांग्रेस व श्री शरद पंवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस भी शामिल थी। उद्धव ठाकरे ने इसे गद्दारी का दर्जा दिया और विगत लोकसभा चुनावों में यह सिद्ध करने का प्रयास किया कि असली शिवसेना उन्हीं की सदारत वाली पार्टी है। मैं शिन्दे व उद्धव ठाकरे के लाग-डांट के ताजा इतिहास में नहीं जा रहा हूं मगर इतना अर्ज करना चाहता हूं कि महाराष्ट्र की जमीन पर जनता के बीच श्री ठाकरे की पार्टी ही असली शिवसेना है जिसके साथ श्री शरद पंवार की कांग्रेस व राहुल गांधी की भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस डटकर खड़ी हुई है। अतः राज्य के चुनावी समीकरणों को आसानी से समझा जा सकता है। चुनाव आयोग ने महाराष्ट्र में एक ही चरण में चुनाव 20 नवम्बर को कराकर यह दिखाने का प्रयास किया है कि वह किसी भी राजनैतिक दल के साथ पक्षपात नहीं करता है। क्योंकि चुनाव आयोग पर यह आरोप अक्सर विपक्षी राजनैतिक दल लगाते रहे हैं कि वह चुनावों को बहुत लम्बा खींच कर एक ही राज्य में कई-कई चरणों में चुनाव कराता है।
दरअसल चुनाव आयोग को निष्पक्ष होना ही नहीं चाहिए बल्कि दिखना भी चाहिए क्योंकि देश के आम आदमी का विश्वास प्राप्त किये बिना वह अपना रुतबा बरकरार नहीं रख सकता। झारखंड में दो चरणों में किये जा रहे चुनावों को तार्किक रूप से गलत करार नहीं दिया जा सकता। इस राज्य में आदिवासियों का बाहुल्य है मगर नक्सली समस्या भी है। नक्सली हिंसा के जोर पर समानान्तर प्रशासन व्यवस्था चलाना चाहते हैं और लोगों से चुनाव बहिष्कार करने तक की अपील करते हैं। जाहिर है कि झारखंड को बहुत चुस्त-दुरुस्त चुनावी प्रबन्धन की जरूरत पड़ेगी। इसी प्रकार उत्तर प्रदेश में विधानसभा की दस सीटों पर उपचुनाव होने हैं। इनमें से 9 सीटों पर ही 13 नवम्बर को मतदान होगा क्योंकि अयोध्या के निकट की सीट मिल्खीपुर का मामला न्यायालय में विचाराधीन है। वैसे इन सीटों के हार या जीत के परिणाम का राज्य की वर्तमान योगी आदित्यनाथ की भाजपा सरकार की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ेगा मगर जिस प्रकार लोकसभा चुनावों में भाजपा का पलड़ा हल्का रहा उससे मुख्यमन्त्री योगी बहुत बेचैन दिखते हैं अतः वह इन उपचुनावों में अपनी पार्टी की जीत के लिए सारी राजनैतिक तिकड़म लगा रहे हैं। इसमें जरा भी बुराई नहीं है क्योंकि संसदीय लोकतन्त्र में नम्बरों के अंक गणित का महत्वपूर्ण स्थान होता है। देखना यह होगा क्या लोकसभा चुनावों का खुमार आम मतदाता पर अभी भी प्रभावी है जिसका पता 23 नवम्बर को चलेगा, जिस दिन चुनावी नतीजे आयेंगे।

आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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