चुनाव आयोग की विश्वसनीयता
चुनाव आयोग और विपक्ष के बीच चुनावी प्रक्रिया की ईमानदारी को लेकर चल रहे घमासान के बीच चुनाव आयोग की विश्वसनीयता लगातार घटती जा रही है। जनता का भरोसा भी चुनाव आयोग पर लगातार घट रहा है। कुछ समय पहले एक सर्वेक्षण में यह पाया गया कि 2019 और 2025 के बीच चुनाव आयोग में काफी अधिक भरोसा जताने वाले मतदाताओं के प्रतिशत में भारी गिरावट आई है। आम जनता में भी ‘वोट चोरी’ के मुद्दे पर चर्चा छिड़ी रहती है। स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव इस बात पर निर्भर करता है कि चुनाव आयोग किसी पार्टी या नेता से प्रभावित हुए बिना सिर्फ नियम-कायदों के मुताबिक काम करे लेकिन मतदान प्रक्रिया से लेकर चुनाव परिणामों तक जो सवाल उठ रहे हैं उससे एक ही संदेश निकलता दिखाई दे रहा है कि चुनावों को और ज्यादा विश्वसनीय बनाने की जरूरत है। बिहार में एसआईआर को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान पीठ ने अहम टिप्पणियां की थीं और कहा था कि संविधान ने मुख्य निर्वाचन आयुक्त और दो अन्य निर्वाचन आयुक्तों के नाजुक कंधों पर बहुत जिम्मेदारियां सौंपी हैं और वह मुख्य निर्वाचन आयुक्त के तौर पर टी.एन. शेषन की तरह के सुदृढ़ चरित्र वाले व्यक्ति को चाहता है। अब चुनाव आयोग एक के बाद एक कदम उठा रहा है। ऐसा लगता है कि चुनाव आयोग धीरे-धीरे विपक्ष की मांगों को स्वीकार कर रहा है। चुनाव आयोग ने सभी डाक मतपत्रों की गिनती को सुव्यवस्थित करने के लिए कदम उठाया आैर यह निर्देश जारी किया है कि डाक मतपत्रों की िगनती के बाद ही ईवीएम के वोटों की गिनती की जाए। आयोग ने डाक मतपत्रों और ईवीएम पर डाले गए मतों की गिनती को अलग करने के अपने 2019 के फैसले को ही पलटा है। यह फैसला राजनीतिक दलों की मांग के अनुरूप है। विपक्षी दल इस बदलाव की मांग कर रहे थे और िचन्ता जता रहे थे कि अंतिम समय में वैध या अवैध ठहराए गए डाक मतपत्रों में हेराफेरी होने की संभावनाएं बहुत ज्यादा हैं। ऐसे कई मामले अदालतों में पहुंचे हैं जिससे डाक मतपत्रों की गिनती में हेरफेर का संदेह व्यक्त किया गया है। राजनीतिक गलियारों में हरियाणा की उचाना सीट का मामला गर्म है। उचाना सीट पर भाजपा के प्रत्याशी को महज 32 वोटों से विजयी घोषित किया गया था। इस चुनाव परिणाम को कांग्रेस प्रत्याशी बिजेन्द्र सिंह ने चुनौती दी थी। सुनवाई के दौरान कई परतें सामने आईं जैसे 150 के करीब डाक मतपत्र खोले ही नहीं गए। जबकि 230 के लगभग डाक मतपत्र अवैध करार दिए गए। अब सुप्रीम कोर्ट ने सभी तथ्यों का संज्ञान लेते हुए निर्वाचन अधिकारियों को तलब किया है। ऐसे कई मामले अदालतों में विचाराधीन हैं। संभव है कि कोई बड़ा उलटफेर हो जाए।
चुनाव आयोग ने अपने पोर्टल और ऐप से वोटर लिस्ट में नाम जुड़वाने, नाम डिलीट करवाने या वोटर लिस्ट से संबंधित अन्य कोई काम ऑनलाइन कराने के लिए नया फीचर ई-साइन शुरू किया है। इसमें आवेदन करने वालों को अपने आधार से जुड़े मोबाइल नंबर का ही इस्तेमाल करना होगा। दावा किया जा रहा है कि यह नया फीचर हाल ही में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी द्वारा कर्नाटक की आलंद सीट पर बड़ी संख्या में वोटरों के नाम हटाने की कोशिश का खुलासा करने के बाद आयोग ने शुरू किया है। ई-साइन फीचर के जरिए वोटर्स की आइडेंटिफिकेशन वेरिफाई होगी। जब वोटर्स वोटर कार्ड के लिए रजिस्ट्रेशन कराएंगे। वोटर लिस्ट से नाम हटाने या नाम में सुधार करने के लिए आवेदन करेंगे, तो आधार कार्ड से लिंक फोन नंबर के जरिए अपनी पहचान वेरिफाई करेंगे। वोटर वेरिफिकेशन की यह प्रक्रिया फर्जी आवेदनों को रोकने में मददगार साबित होगी। इससे न सिर्फ नाम और नंबर वेरिफाई होगा, बल्कि पता चलेगा कि वोटर लिस्ट में पहले से नाम है या नहीं। चुनाव आयोग ने पिछले 6 महीनों में दो दर्जन से अधिक बदलाव किए हैं।
एक फैसला चरणबद्ध ढंग से 808 पंजीकृत किन्तु गैर मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों (आरयूपीपी) को सूची से हटाना है। अभी भी कई दल पाइपलाइन में हैं, जिनकी जांच और तहकीकात जारी है। ये दल पंजीकरण की आवश्यक शर्तों को पूरा करने में विफल रहे हैं। साथ ही संविधान, आरपीए के अनुरूप आयोग के 28 हितधारकों की भूमिकाओं की पहचान और मानचित्रण भी है। इन बदलावों को 1950,1951 निर्वाचक पंजीकरण नियम, 1960, चुनाव संचालन नियम 1961 के मुताबिक किया गया है। आयोग हरेक बीएलओ को मानक फोटो पहचान पत्र जारी करेगा। तकनीकी और प्रशासनिक एसओपी के तहत चुनाव परिणामों की घोषणा के बाद ईवीएम की मेमोरी चिप और माइक्रो कंट्रोलर की जांच और सत्यापन के लिए प्रक्रिया में बदलाव किया गया। ईसीआई कानून को मजबूत और फिर से उन्मुख करने के लिए कानूनी सलाहकारों और सीईओ के साथ राष्ट्रीय सम्मेलन की रूपरेखा बनाकर उस पर अमल शुरू किया है।
भारत की साझेदारी को मजबूत करने के लिए दुनिया भर के चुनाव प्रबंधन निकायों के प्रमुखों के साथ द्विपक्षीय बैठकें कीं। राजनीतिक दलों के साथ सक्रिय जुड़ाव के लिए देश भर में ईआरओ, डीईओ और सीईओ स्तरों पर सर्वदलीय बैठकें आयोजित की गई। 25 मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय एवं राज्य राजनीतिक दलों के साथ निर्वाचन आयोग की बैठकें आयोजित की गईं।
चुनाव सुधार एक व्यापक शब्द है जो अन्य बातों के अलावा जनता की इच्छाओं के प्रति चुनावी प्रक्रियाओं की संवेदनशीलता में सुधार को भी शामिल करता है। चुनाव सुधार निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है। चुनाव आयोग द्वारा उठाए जा रहे कदमों पर विपक्ष का कहना है कि अब चोरी पकड़ी गई तो ताले लगाए जा रहे हैं। कांग्रेस नेता राहुल गांधी अभी भी हाइड्रोजन बम फोड़ने की बात कर रहे हैं। सरकारें आती-जाती रहती हैं और चुनाव आयुक्त भी बदलते रहते हैं। यदि एक संवैधानिक संस्था की साख ही चली जाए तो फिर बचेगा क्या? मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार के लिए सबसे बड़ी चुनौती यही है कि चुनाव आयोग की विश्वसनीयता को कैसे बहाल िकया जाए। विपक्ष कैसे संतुष्ट हो, यह जिम्मेदारी भी उन पर है।