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नागरिक संहिता में सबका समान सम्मान!

03:20 AM Feb 07, 2024 IST | Shera Rajput

उत्तराखंड के लिए मंगलवार का दिन ऐतिहासिक दिन रहा। विधानसभा के पटल पर समान नागरिक संहिता बिल पेश किया गया। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इसे इतिहास की युगांतकारी घटना बताया है। राज्य सरकार जल्द ही इस विधेयक को कानून का रूप देकर पूरे राज्य में लागू करने वाली है। वहीं, देश में भी इस समय समान नागरिक संहिता को लेकर बहस छिड़ गई है। उत्तराखंड को मॉडल के रूप में पेश किया जा रहा है, सवाल ये है कि आखिर बीजेपी का ये दांव कितना काम आएगा और ये आम चुनाव से पहले बीजेपी की कोई रणनीति का हिस्सा है?
यूनिफॉर्म सिविल कोड के लिए उत्तराखंड की सरकार ने सुप्रीम कोर्ट की रिटायर्ड जज रंजना प्रकाश देसाई की अध्यक्षता में पांच सदस्यीय कमेटी गठित की थी। चार दिन पहले ही सीएम को 740 पेज की ड्राफ्ट कमेटी की रिपोर्ट सौंपी गई थी। समान नागरिक संहिता विधेयक का उद्देश्य नागरिक कानूनों में एकरूपता लाना है यानी प्रत्येक नागरिक के लिए एक समान कानून होना। समान नागरिक संहिता में शादी, तलाक और जमीन-जायदाद के बंटवारे में सभी धर्मों के लिए एक ही कानून लागू होगा। सभी पंथ के लोगों के लिए विवाह, तलाक, भरण-पोषण, विरासत और बच्चा गोद लेने में समान रूप से कानून लागू होगा।
वैसे बहुत पहले से ही उत्तराखण्ड में लागू होने वाले समान नागरिक संहिता क़ानून की खूब चर्चा है, जिसके लिए मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को मुबारकबाद दी जा रही है। यूसीसी मसौदे में नागरिक जीवन के विभिन्न पहलुओं को शामिल किया गया है, जिसमें विरासत के अधिकार, अनिवार्य विवाह पंजीकरण और लड़कियों के लिए विवाह योग्य आयु बढ़ाने की सिफारिशें शामिल हैं जिससे शादी से पहले उनकी शिक्षा को सुविधाजनक बनाया जा सके। धामी ने राज्य विधानसभा में समान नागरिक संहिता उत्तराखंड 2024 विधेयक पेश कर दिया है। इसके साथ ही मंगलवार का दिन उत्तराखंड ही नहीं बल्कि देश के लिए यादगार बन गया है। राज्य विधानसभा में समान नागरिक संहिता उत्तराखंड 2024 विधेयक पेश करने के बाद राज्य विधानसभा के अंदर विधायकों द्वारा वंदे मातरम और जय श्री राम के नारे लगाए।
काफ़ी अर्से से समान नागरिक संहिता की बात चल रही थी, भारतीय संविधान की धारा 44 के अंतर्गत 1949 से ही लंबित थी और सरकारें आती रहीं, जाती रहीं क़ानून होल्ड पर ही रहा, ठीक कश्मीर की धारा 370 की भांति, जिसको हटाने के बारे में स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने कहा था कि घिसते-घिसते घिस जाएगा, और जो आखिरकार मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दौर में उन्होंने अमित शाह और अजित डोभाल की मदद से हटाया। जानकार पाठकों को पता होगा कि वर्तमान सरकार के आरएसएस कर्णधारों ने तो बहुत पहले से ही कह दिया था कि उनकी सरकार आई तो वे तीन बातों पर प्राथमिकता देंगे अर्थात तीन मुख्य मंदिरों (राम मंदिर, ज्ञानवापी और श्री कृष्ण जन्म भूमि) की प्राण-प्रतिष्ठा, समान आचार संहिता और गौवध पर पाबंदी। सभी तबकों को पता चल रहा है कि यह सरकार अपनी विचारधारा पर अग्रसर है, जिसके बारे में किसी को भी संकोच या गलत फहमी नहीं होनी चाहिए।
वास्तव में हो यह रहा है कि समान नागरिक संहिता के संबंध में मुस्लिमों को उनके स्वयंभू नेता ज़हर उगल, भड़का और भटका रहे हैं। मज़े की बात तो यह है कि सामान नागरिक संहिता का मुसलमानों से कोई लेना-देना नहीं है और न ही यह हिन्दू-मुस्लिम-सिख-ईसाई विषय है, जैसे हम भिन्न पंथों के लोगों को टीवी पर फालतू बहसों में उलझे देखते हैं। टीवी चैनल तो अपनी टीआरपी बढ़ाने के लिए विभिन्न पार्टियों के प्रवक्ताओं को भिड़ा कर देश को बजाए जोड़ने के तोड़ने का प्रयास करते दिखाई देते हैं। कुछ चिरकुट नेता तो यहां तक गलत बयानी करते नज़र आते हैं कि इस्लाम को समाप्त किया जा रहा है। पता नहीं वे अपनी जुमे की नमाज़ें, अपने त्यौहारों, खान-पान, पहनावे आदि का भी पालन कर सकेंगे। इस प्रकार की गलत फहमियां, वही लोग फैला रहे हैं जो एक बार भारत को विभाजित करना चाहते हैं, जाकि नामुमकिन है। मुस्लिमों को इनके चुंगल से बहार आने की सख्त ज़रूरत है।
वास्तव में इस नागरिक संहिता के आने से सब से अधिक लाभ मुस्लिम महिलाओं को होगा, जिनको जायदाद में बराबर का हिस्सा मिलेगा, औलाद न होने पर बच्चों को गोद ले सकती हैं, और सब से अधिक कि उन्हें तलाक-ए-हसन, तलाक-ए-हुस्ना आदि से भी छुटकारा मिलेगा। यूं तो ट्रिपल तलाक़ या तलाक-ए-बिदत समाप्त हो चुकी है, को एक ही बैठक में तीन सैकेंड में दे दी जाती थी, मगर उसी का एक रूप तलाक-ए-हसन या तलाक-ए-हुस्ना के रूप में मौजूद है। फिर मुस्लिमों को कुछ लोग तलाक़, हलाला, मिस्यार आदि के नाम को बदनाम करते रहते हैं उससे भी छुटकारा मिलेगा। वैसे भी तलाक़, हज़रत मुहम्मद साहब (सल्ल.) और अल्लाह को नापसंददीदा चीजों में सब से नागवार तलाक़ ही है। इसके अतिरिक्त शादी की उम्र भी बढ़ेगी जो 18-21 होगी। मर्दों का वर्चस्व कम होगा और महिलाओं को बराबर के अधिकार होंगे। अब देखना यह है कि यह पूर्ण भारत में कब लागू होता है। जय हिंद

- फ़िरोज़ बख्त अहमद 

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