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Explainer: बिहार में खेला करेगा मतदान सूची विवाद! चुनाव आयोग को क्यों घेर रहा महागठबंधन, जानें डिटेल में

02:35 PM Jul 09, 2025 IST | Amit Kumar
Explainer:

Explainer: बिहार में कुछ महीने बाद विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. इसी बीच राज्य में वोटर लिस्ट के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) को लेकर सियासी घमासान मचा हुआ है. चुनाव आयोग इस प्रक्रिया को सामान्य और जरूरी बता रहा है, जबकि विपक्ष इसे लोकतंत्र पर हमला कह रहा है. आइए सरल भाषा में समझते हैं कि आखिर मामला क्या है और क्यों विपक्ष इस पर इतना विरोध कर रहा है.

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, हर चुनाव से पहले चुनाव आयोग मतदाता सूची को दुरुस्त करता है ताकि गलत या फर्जी नाम हटाए जा सकें और नए योग्य मतदाता जोड़े जा सकें. इस बार बिहार में 22 साल बाद खास तरीके से वोटर लिस्ट की गहन जांच की जा रही है. इसे ही विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision) कहा जा रहा है. इसमें 7.89 करोड़ मतदाताओं की पहचान और पते से जुड़े दस्तावेज मांगे जा रहे हैं, जैसे आधार कार्ड, जन्म प्रमाण पत्र, माता-पिता की जानकारी, 1987 से पहले के राशन कार्ड या जमीन के कागजात.

विपक्ष क्यों कर रहा है विरोध?

1. समय की कमी:

विपक्षी दलों का कहना है कि चुनाव में कुछ ही महीने बाकी हैं और इतने कम समय में करोड़ों लोगों से दस्तावेज जुटाना मुश्किल है. RJD नेता तेजस्वी यादव ने इसे "वोटबंदी" कहा है और आरोप लगाया कि यह गरीब, पिछड़े, दलित और अल्पसंख्यकों को वोट देने से रोकने की साजिश है.

2. जरूरी दस्तावेजों की जटिलता:

इसके अलावा विपक्ष का यह भी तर्क है कि गरीब और ग्रामीण लोगों के पास ऐसे पुराने दस्तावेज नहीं होते. AIMIM प्रमुख ओवैसी ने कहा कि यह प्रक्रिया नागरिकता साबित करने जैसी है, जिससे खास समुदायों को निशाना बनाया जा रहा है.

3. नियमों में भ्रम:

वहीं तेजस्वी यादव ने आरोप लगाया कि चुनाव आयोग नियम बार-बार बदल रहा है. पहले कहा गया था कि दस्तावेज बाद में भी दिए जा सकते हैं, लेकिन अब 25 जुलाई की समयसीमा तय कर दी गई है, जिससे लोगों में भ्रम है.

4. वोट कटने का डर:

विपक्ष का अंदेशा है कि इस प्रक्रिया के जरिए 2 से 4 करोड़ लोगों के नाम वोटर लिस्ट से हट सकते हैं, जिनमें ज़्यादातर दलित, पिछड़े और अल्पसंख्यक होंगे.

चुनाव आयोग का जवाब

आयोग ने सभी आरोपों को खारिज किया है. उनका कहना है कि SIR एक सामान्य प्रक्रिया है, जिससे वोटर लिस्ट को सही और साफ किया जाता है. आयोग ने भरोसा दिलाया कि कोई भी योग्य मतदाता इससे बाहर नहीं रहेगा.

सत्तापक्ष का पक्ष

NDA और BJP ने इस प्रक्रिया को सही बताया है. पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने कहा कि फर्जी वोटरों को हटाने से उन्हीं को दिक्कत हो रही है जो गलत तरीके से वोट कर रहे थे. भाजपा का आरोप है कि विपक्ष इसलिए परेशान है क्योंकि उनके "फर्जी वोटर" हट जाएंगे.

सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई

विपक्ष ने यह मामला सुप्रीम कोर्ट में उठाया है. कपिल सिब्बल, महुआ मोइत्रा और योगेंद्र यादव जैसे नेताओं ने याचिका लगाई है, जिस पर 10 जुलाई 2025 को सुनवाई होगी. अगर कोर्ट ने प्रक्रिया रोक दी तो यह विपक्ष की बड़ी जीत मानी जाएगी.

यह भी पढ़ें-बिहार में मतदाता सूची का पुनरीक्षण शुरू, जानें क्या है इस अभियान का मकसद?

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