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BSP के सामने बड़ी चुनौती, क्या अंबेडकर नगर सीट पर फिर हासिल कर पाएंगे जीत?

07:25 PM Apr 05, 2024 IST
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BSP On Ambedkar Nagar Seat: कभी बसपा के लिए अभेद्य किला रहा उत्तर प्रदेश का अंबेडकरनगर जिला अब उसकी पकड़ से दूर हो गया है। यहां पर छठे चरण में 25 मई को मतदान होना है। बसपा छोड़कर आए सांसद रितेश पांडेय को भाजपा ने यहां अपना प्रत्याशी घोषित किया है। सपा ने कांग्रेस संग इंडिया गठबंधन की ओर से कटेहरी विधायक लालजी वर्मा पर दांव लगाया है। बसपा ने कलाम शाह को अपना प्रत्याशी बनाया है।

Highlights:

2019 के लोकसभा चुनाव में बसपा-सपा गठबंधन का मिला था फायदा

राजनीतिक जानकार बताते हैं कि वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में बसपा को यहां सपा के साथ गठबंधन का फायदा मिला था। इसी की बदौलत बसपा के उम्मीदवार रितेश पांडेय को तकरीबन 95 हजार वोटों से जीत मिली थी। वहीं, भाजपा के प्रत्याशी मुकुट बिहारी उपविजेता बने थे। उस चुनाव में बसपा कैडर के साथ ही सपा के वोट भी शामिल थे, लेकिन इस बार सपा-कांग्रेस सहित अन्य दलों का गठबंधन है। वहीं, बसपा अलग-थलग चुनाव मैदान में उतरी है।

‘इस जिले को बनाने में मायावती का बहुत बड़ा हाथ’

कटेहरी के रामलाल कहते हैं कि इस जिले को बनाने में मायावती का बहुत बड़ा हाथ है। उन्होंने न सिर्फ इस जिले से चुनाव लड़ा बल्कि कई नेता भी दिए। उन्होंने विकास के क्षेत्र में बहुत काम किया है। लेकिन, कभी उनकी पार्टी में बड़े पदों पर रहे लोग आज दूसरी पार्टी में हैं। यही बसपा की कमजोरी है। लेकिन, उसका अपना एक वोट बैंक है।

‘सरकार ने बिजली पर दिया भरपूर ध्यान’

अंबेडकर नगर के रहने वाले दिनेश की मानें तो सिर्फ राशन नहीं सरकार को रोजगार के लिए भी सोचना चाहिए, जिससे यहां के नौजवान टिके रहें। इस सरकार में एक अच्छी बात है कि इसने बिजली पर भरपूर ध्यान दिया है। रामकली कहती हैं कि हमें तो राशन मिल रहा है। किसान निधि भी आ रही है। मकान भी बना है। सरकार ने बहुत कुछ किया है। निधि मिलने से खाद-बीज की समस्या का निदान हो गया है।

स्थायी रोजगार के भी साधन देने होंगे- स्थानिय लोग

टांडा के रहने वाले किशोरी लाल कहते हैं कि विपक्षी दलों के नेताओं को सिर्फ जेल में डालने भर से काम नहीं चलेगा। स्थायी रोजगार के भी साधन देने होंगे। जलालपुर के रामस्वरूप कहते हैं कि इस सरकार में सनातन का झंडा बुलंद है। राममंदिर बन गया है, इसकी लहर चारों तरफ काम कर रही है। रितेश पांडेय भी अच्छी पार्टी में आ गए हैं। उनका एक अपना वोट बैंक है। जिसका उन्हें फायदा भी मिला है।

अंबेडकरनगर लोकसभा में बसपा का अपना शुरू से जनाधार रहा- स्थानिय लोग

वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक वीरेंद्र सिंह रावत कहते हैं कि अंबेडकरनगर लोकसभा में बसपा का अपना शुरू से जनाधार रहा है। इसी कारण बसपा प्रमुख ने इस जिले को अपनी राजनीतिक कर्मभूमि भी बनाई। उन्होंने वर्ष 1998 के आम चुनाव में यहां से लड़ने की घोषणा कर हलचल मचा दी थी। 1999 में फिर हुए चुनाव में भी मायावती ने इसी सीट को चुना। इस बार उन्होंने पिछले चुनाव से शानदार प्रदर्शन किया। बसपा प्रमुख ने वर्ष 2004 के चुनाव में भी अंबेडकरनगर का रुख किया। उन्होंने जीत की हैट्रिक लगाई और जीत का अंतर भी बढ़ाने में सफलता हासिल की।

‘बसपा की भले सरकार न रही हो, लेकिन उसका जनाधार रहा’

उन्होंने जिक्र किया कि बसपा की भले सरकार न रही हो, लेकिन उसका जनाधार रहा है। लेकिन, नेताओं के पार्टी छोड़ने के बाद उसे सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान तीन विधानसभा सीटों पर बसपा का कब्जा था। कटेहरी से लालजी वर्मा, अकबरपुर से रामअचल राजभर व जलालपुर से रितेश विधायक थे। लोकसभा चुनाव में इसी का फायदा बसपा को मिला था। लेकिन, इस बार उनके उम्मीदवार भाजपा के पाले से लड़ रहे हैं। बसपा के इस जिले में एक भी विधायक नहीं है। अब उनकी डगर बहुत कठिन नजर आ रही है।

‘वर्ष 2019 में अंबेडकरनगर सीट बसपा ने जातीय समीकरण के हिसाब से जीती’

एक अन्य विश्लेषक अमोदकांत मिश्रा कहते हैं कि वर्ष 2019 में अंबेडकरनगर सीट बसपा ने जातीय समीकरण के हिसाब से जीती थी। यह सीट दलित, मुस्लिम और पिछड़े के प्रभाव वाली है। राजनीतिक दलों के अनुमान के हिसाब से दलित 28 फीसद, मुस्लिम 15 फीसदी, यादव 11 फीसदी और कुर्मी 12 फीसदी हैं। इसे जोड़ दिया जाए तो यह 66 फीसदी के आसपास बैठता है। सपा-बसपा गठबंधन के लिए यही काफी था। उसमें ब्राह्मण उम्मीदवार होने से इस बिरादरी का करीब 14 फीसदी वोट भी साथ गया, जिससे जीत की राह आसान हुई।

बसपा के जीते सांसद भाजपा के टिकट से मैदान में

उनके मुताबिक, इस बार मामला अलग है। बसपा के जीते सांसद भाजपा के टिकट से मैदान में हैं। सपा से लालजी वर्मा मैदान में हैं। यहां मुकाबला रोचक है। रितेश जनता के सामने मोदी की गारंटी लेकर जा रहे हैं। तो, लाली वर्मा को पीडीए पर पूरा भरोसा है। बसपा के उम्मीदवार मायावती की पुरानी साख का हवाला देकर मैदान में डटे हैं।

 

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