कैनेडियन महिला ने सहायता प्राप्त आत्महत्या के लिए किया आवेदन, भारत में Passive Euthanasia की है मंजूरी
स्वास्थ्य शरीर एक वरदान है। लेकिन कई लोगों को इसकी कीमत का अंदाजा तब लगता है जब वह बीमार पड़ते हैं। बीमार इंसान अपना आधे से ज्यादा समय बिस्तर पर बिताते हैं। यहां तक की बीमार व्यक्ति इतने दर्द में अपनी जिंदगी बिताते है कि इच्छामृत्यु के लिए मदद मांगते हैं। अब ऐसा ही हुआ है कनाडा की एक महिला के साथ जो 2020 से बिस्तर पर प्रति दिन 22 घंटे बिताती हैं।
2020 से बिमार है महिला
बता दे्ं, कनाडा के टोरंटो की 55 वर्षीय ट्रेसी थॉम्पसन (Tracey Thompson) ने इच्छामृत्यु के लिए आवेदन किया है। क्योंकि वह 2020 में दुनियाभर में फैली कोरोना वायरस की लहर के समय संक्रमित हो गई थी। जिसके बाद से वह प्रति दिन दर्द के साथ बिस्तर पर 22 घंटे बिताती हैं।
वह मीडिया से बात करते हुए कहती हैं कि लंबी सीओवीआईडी से भीषण लड़ाई ने उसकी जीवन भर की बचत, बिस्तर से बाहर निकलने की क्षमता और जीवन की साधारण खुशियां छीन लीं । इस कारण उसे सहायता प्राप्त आत्महत्या का रास्ता अपनाने के लिए मजबूर होना पड़ा।
MAiD के लिए किया आवेदन
बता दें, सीओवीआईडी संक्रमण के बाद थॉम्पसन ने अपनी नौकरी खो दी थी, वह अकेले ही अपने घर रही हैं, उसके पास पैसों की भी कमी आ गई है। थॉम्पसन बताती है कि वह इतनी मुश्किल में है की वह खुद के लिए खाना बनाने या कुछ पढ़ने तक में भी असमर्थ हो गई है।
मालूम हो, थॉम्पसन ने दिसंबर 2022 में कनाडा के मेडिकल असिस्टेंस इन डाइंग (MAiD) के लिए आवेदन किया, एक ऐसा कार्यक्रम जो लोगों को लाइलाज बीमारी का सामना करने पर अपना जीवन समाप्त करने की अनुमति देता है।
इसलिए जताई ये इच्छा
2022 में अपने जीवन को अंत करने पर थॉम्पसन ने मीडियो से बात करते हुए बताती है कि अपना जीवन खत्म करने का फैसला मुख्य रूप से उसकी तनावपूर्ण परिस्थितियों के कारण "एक फाइनेंशियल विचार" था न की मरने की उसकी इच्छा को पूरा करने के लिए ।
वह कहती है कि “मैं जीवित रहकर बहुत खुश हूं। मैं अब भी जिंदगी का मजा लेती हूं। पक्षियों का चहचहाना, दिन बनाने वाली छोटी-छोटी चीजें अभी भी मुझे खुश करती हैं। मैं अभी भी अपने दोस्तों के साथ खुश हूं। जीवन में आनंद लेने के लिए बहुत कुछ है, भले ही वह छोटा ही क्यों न हो।"
लेकिन इस कठिन उम्मीद के साथ कि जल्द ही उसके पास पैसे और खुद को बनाए रखने की क्षमता खत्म हो जाएगी, थॉम्पसन ने दिसंबर 2022 में कनाडा के मेडिकल असिस्टेंस इन डाइंग (MAiD) के लिए आवेदन किया, एक ऐसा कार्यक्रम जो लोगों को लाइलाज बीमारी का सामना करने पर अपना जीवन समाप्त करने की अनुमति देता है।
बता दें, MAID पहली बार 2016 में टर्मिनल रोगियों के लिए कानूनी हो गया था, लेकिन थॉम्पसन के बीमार पड़ने के ठीक एक साल बाद इसका विस्तार किया गया, जिसमें "असहनीय" और "अपरिवर्तनीय" बीमारी, बीमारी या विकलांगता से पीड़ित व्यक्तियों को शामिल किया गया, जो अपने प्राकृतिक जीवन के अंत के करीब नहीं थे।
दुनिया में ऐसे कई लोग है जो इच्छामृत्यु के लिए आवेदन करते है। सबसे पहले नीदरलैंड ने इच्छा मृत्यु के लिए कानून बनाया था। आइए जानते है कि इच्छा मृत्यु क्या है, ये किन व्यक्तियों को दिया जाता है और भारत में इच्छा मृत्यु पर कानून क्या कहता है।
क्या है इच्छा मृत्यु ?
इच्छा मृत्यु का मतलब है किसी व्यक्ति को उसकी इच्छा से मृत्यु दे देना। इसमें डॉक्टर की मदद से उसके जीवन का अंत किया जाता है, ताकि उसे दर्द से छुटकारा मिल सकें। बता दें, इच्छामृत्यु दो तरह से दी जाती है। पहली- एक्टिव यूथेनेशिया यानी सक्रिय इच्छामृत्यु और दूसरी- पैसिव यूथेनेशिया यानी निष्क्रिय इच्छामृत्यु।
एक्टिव यूथेनेशिया में बीमार व्यक्ति को डॉक्टर जहरीली दवा या इंजेक्शन देते हैं, ताकि उसकी मौत हो जाए। वहीं, पैसिव यूथेनेशिया में मरीज को इलाज रोक दिया जाता है, अगर वो वेंटिलेटर पर है तो वहां से हटा दिया जाता है, उसकी दवाएं बंद कर दी जाती हैं।
किसे मिलती है इच्छामृत्यु?
इच्छामृत्यु के लिए वह ही व्यक्ति आवेदन कर सकता है जो किसी ऐसी गंभीर बीमारी से जूझ रहा है, जिसका इलाज संभव न हो और जिंदा रहने में उसे बेहद कष्ट उठाना पड़ रहा हो। दुनिया के ज्यादातर देशों में यही नियम है। ऐसा नहीं है कि कोई भी व्यक्ति इच्छामृत्यु के लिए आवेदन कर दे। सिर्फ लाइलाज बीमारी से जूझ रहा व्यक्ति ही इच्छामृत्यु के लिए आवेदन कर सकता है। इच्छामृत्यु के लिए लिखित आवेदन देना होता है। मरीज और उसके परिजनों को इस बारे में पता होना चाहिए। इसे 'लिविंग विल' कहा जाता है।
बता दें, सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइंस के अनुसार, लिविंग विल की अनुमति तभी दी जा सकती है, जब किसी व्यक्ति को इच्छामृत्यु चाहिए और इसकी जानकारी उसके परिवार को हो।इसके अलावा अगर डॉक्टरों की टीम कह दे कि मरीज का बच पाना संभव नहीं है तो लिविंग विल दी जा सकती है. हालांकि, किसी मरीज को इच्छामृत्यु देना है या नहीं, इसका फैसला मेडिकल बोर्ड करेगा।
इच्छा मृत्यु पर भारत का कानून
बता दें, साल 2018 में भारत की सुप्रीम कोर्ट ने पैसिव यूथेनेसिया के समर्थन में अपना फैसला सुनाया था। कोर्ट ने कुछ शर्तों के साथ इच्छा मृत्यु को वैध करार दिया। लेकिन इच्छामृत्यु तभी दी जा सकती है, जब मरीज को लाइलाज बीमारी हो और उसका जिंदा बच पाना संभव न हो। बता दें, पैसिव यूथेनेशिया में मरीज को इलाज रोक दिया जाता है, अगर वो वेंटिलेटर पर है तो वहां से हटा दिया जाता है, उसकी दवाएं बंद कर दी जाती हैं।
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