चैत्र नवरात्रि का दूसरा दिन मां ब्रह्मचारिणी को समर्पित, जानिए कथा और विधि
Chaitra Navratri 2024: चैत्र नवरात्रि का दूसरा दिन 10 अप्रैल 2024 को है और इस दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा होगी। नवदुर्गा के नौ रूपों में मां ब्रह्मचारिणी दूसरी देवी हैं। आज हम आपको बताएंगे कि इस दिन मां ब्रह्मचारिणी को क्यों समर्पित किया गया है।
Highlights
- कल से शुरू हो चुके हैं नवरात्रि
- आज नवरात्रि का है दूसरा दिन
- इस बार की नवरात्रि बेहद खास है
- आज मां ब्रह्मचारिणी की पूजा होती है
नवरात्रि का दूसरा दिन आज
9 अप्रैल 2024 यानि कि कल से ही दुर्गा देवी के नौ रूपों को समर्पित चैत्र नवरात्रि का महा पर्व शुरू हो चुका है। इस त्यौहार का समापन नवमीं तिथि 17 अप्रैल को होगा। नवरात्रि शुरू होने के साथ ही हिन्दू नववर्ष की भी शुरुआत हो चुकी है आपको बता दें कि इस साल चैत्र नवरात्र के पहले दिन सर्वार्थ सिद्धि योग और अमृत सिद्धि योग बन रहे हैं धार्मिक शास्त्रों के अनुसार ये दोनों ही योग घटस्थापना के लिए बहुत शुभ हैं। एक साल में चार बार नवरात्रि तिथि आती है लेकिन इन चारों में से चैत्र और शारदीय नवरात्रि को महत्वपूर्ण माना गया है। भक्त इन दोनों नवरात्रि पर माता की विशेष पूजा करते हैं।
नवरात्रि के दूसरे दिन की अधिष्ठात्री देवी हैं मां ब्रह्मचारिणी देवी का स्वरूप अति रमणीय और भव्य है। देवी के नाम में ’ब्रह्म’ का अर्थ है तप। यानी तप करने वाली देवी। नारद जी के कहने पर इन्होंने कई हज़ार वर्षो तक भगवान शिव के लिए तपस्या की थी। तपोमय आचरण करने के फलस्वरूप इनका नाम ’ब्रह्मचारिणी’ हो गया।
मां ब्रह्मचारिणी का जन्म
मां ब्रह्मचारिणी का जन्म पर्वतराज हिमालय के घर हुआ था। उन्होंने भगवान शिव से विवाह की इच्छा व्यक्त की, लेकिन उनके माता-पिता उन्हें कहा कि शिव जी को प्रसन्न करने के लिए तुम्हें कठिन तप करना होगा। तब देवी ब्रह्मचारिणी ने नारद जी से सलाह मांगी और उनके सुझाव अनुसार माता ने भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए घोर तपस्या की। कठिन तपस्या के कारण ही माता को ब्रह्मचारिणी नाम से जाना गया।
धार्मिक मान्यताओं अनुसार माता ब्रह्मचारिणी एक हजार साल बिना अन्न ग्रहण किए सिर्फ फल खाकर बिताये और उन्होंने सौ सालों तक जमीन पर रहकर शाक पर निर्वाह किया। इतना ही नहीं उन्होंने वर्षा और धूप के घोर कष्ट को सहा। टूटे हुए बिल्व पत्र खाकर भगवान शंकर की भक्ति की। फिर कई हजार साल तक बिना जल और भोजन की घोप तपस्या की
ऐसा है मां ब्रह्माचारिणी स्वरूप?
देवी ब्रह्मचारिणी साक्षात ब्रह्म का स्वरूप है अर्थात तपस्या का मूर्तिमान रूप है। ब्रह्म का मतलब तपस्या होता है, तो वहीं चारिणी का मतलब आचरण करने वाली। इस तरह ब्रह्माचारिणी का अर्थ है- तप का आचरण करने वाली देवी। मां ब्रह्माचारिणी के दाहिने हाथ में मंत्र जपने की माला और बाएं में कमंडल है।
माता के एक हाथ में कमण्डल और एक हाथ में जप करने के लिए माला है। माता का यह तपोमय रूप सबको अनेक फल देने वाला है। इनकी उपासना से व्यक्ति के जीवन में सद्गुणों की वृद्धि है। वह मां के आशीर्वाद से कर्तव्य पथ से कभी नहीं हटता. वह प्रत्येक काम में सफलता प्राप्त करता है. इस दिन तपस्वी का मन स्वाधिष्ठान में स्थित रहता है। इनकी प्रार्थना का मन्त्र है:–
दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलु| देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा ||
मां ब्रह्मचारिणी की कथा
नवरात्रि के प्रथम दिन मां शैलपुत्री की कथा के बाद यह मालूम होता कि, जब सती ने पुनः जन्म लिया तब वे हिमालय राज की पुत्री के रूप में आईं। नारद जी के कहने पर उन्होंने भगवान शिव को पाने के लिए घोर तपस्या की। इसलिए ये ’तपश्चारिणी’ या ’ब्रह्मचारिणी’ कहलाईं. हज़ार वर्ष कन्द मूल खाकर बिताए, सौ वर्ष साग खाकर बिताए। वे गर्मी में धूप, वर्ष में जल को और शीत में ठंड को सहन करती हुई खुले आसमान तले सोई। कुछ दिन वे सूखे बेलपत्र खाकर रहीं। फिर उन्होंने पत्ते भी खाना छोड़ दिया और वे ’अपर्णा’ के रूप में पहचानी गईं। भगवान शिव जी ने उनकी कई बार परीक्षा भी ली जिसमें वे पूर्णतः सफल भी हुईं। इस तपस्या का परिणाम यह हुआ कि उन्हें भगवान ब्रह्माजी से आशीर्वाद मिला। भगवान ब्रह्माजी ने उन्हें आश्वस्त किया कि उनसे शिव का विवाह अवश्य होगा और साथ ही यह सलाह भी दी कि पिता अभी कुछ क्षणों में पधारने ही वाले हैं तो पार्वती अपने पिता के साथ हिमालय लौटकर शिवजी की प्रतीक्षा करें।
नवरात्रि के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है और स्त्रियां इस दिन श्वेत साड़ी पहनती हैं। देवी पुराण के अनुसर आज के दिन दो कुंवारी कन्याओं को भोजन कराया जाता है।
देश और दुनिया की तमाम खबरों के लिए हमारा YouTube Channel ‘PUNJAB KESARI’ को अभी subscribe करें। आप हमें FACEBOOK, INSTAGRAM और TWITTER पर भी फॉलो कर सकते हैं।