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क्या डॉलर के बिना भारत में नहीं चल पाएगी अर्थव्यवस्था, जानें क्या है इसका महत्व?

01:14 PM Mar 17, 2024 IST
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Dollar: किसी भी देश की अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने में वहां की करंसी का बड़ा योगदान होता है। वहीं दुनियाभर में व्यापारिक दृष्टि से डॉलर सबसे महत्वपूर्ण करंसी है। दुनिया भर के विदेशी मुद्रा भंडार में प्रभुत्व डॉलर का ही है। आप बाज़ार जाते हैं, तो जेब में रुपए लेकर जाते हैं। इसी तरह भारत को सऊदी अरब, इराक़ और रूस से तेल ख़रीदना होता है तो वहां रुपए नहीं डॉलर देने होते हैं।

Highlights

क्या डॉलर है जरूरी?

किसी भी देश का विकास उसकी अर्थव्यवस्था पर निर्भर करता है और अर्थव्यवस्था वहां की मुद्रा से चलती है। भारत की मुद्रा रुपया है, लेकिन किसी भी देश की अर्थव्यवस्था को बनाए रखने के लिए डॉलर का होना ज्यादा जरूरी है। ऐसे में वैश्विक अर्थव्यवस्था में किस देश की आर्थिक सेहत सबसे मजबूत है इसका निर्धारण इससे भी होता है कि उस देश का विदेशी मुद्रा भंडार कितना भरा हुआ है। इसे आसान भाषा में समझें तो ऐसे समझ सकते हैं कि यदि आप बाजार जाते हैं तो अपनी पॉकेट में रुपए लेकर जाते हैं, इसी प्रकार हमारे देश की सरकार को इरान, इराक, सऊदी अरब से तेल की खरीदारी करनी होती है तो भुगतान डॉलर में करना पड़ता है।

जैसे भारत अमेरिका से कुछ खरीदता है तो उसे भुगताम अमेरिकी डॉलर में ही करना पड़ेगा, इसी तरह भारत किसी देश को किसी वस्तु का विक्रय करता है तो वो भी डॉलर में ही राशि प्राप्त करता है। भले ही भारतीय मुद्रा रुपया है लेकिन अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर डॉलर चलता है। जाहिर है देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत रखने के लिए अधिक से अधिक डॉलर की जरुरत पड़ती है, जो अधिक से अधिक निर्यात से आता है, इसके अलावा डॉलर दूसरे देशों में रह रहे भारतीयों द्वारा अपने परिजनों को भेजे गए पैसों से भी आता है। लेकिन क्या कभी आपने सोचा है देश की मुद्रा के डॉलरीकरण से अर्थव्यवस्था को बचाया जा सकता है।

आप सोचेंगे ये मुद्दा आया कहा से? दरअसल अर्जेंटीना में नए राष्ट्रपति ने अर्जेंटीना के पैसों को डॉलर में बदलने का वादा किया है। अर्जेंटीना में डॉलर भंडार की कमी के कारण जल्द से जल्द ये डॉलरीकरण की प्रक्रिया की जा सकती है।

देश की अर्थव्यवस्था को बचा सकता है डॉलरीकरण?

डॉलरीकरण का मतलब देश में प्रथम मुद्रा के रूप में डॉलर का उपयोग करना या देश की संपूर्ण मुद्रा को डॉलर में बदल देने से है. अब समझते हैं कि किसी देश की मुद्रा का डॉलरीकरण उस देश की अर्थव्यवस्था को कैसे बचा सकता है?  दरअसल डॉलरीकरण अनियंत्रित धन की आपूर्ति करते हुए लगातार सामान की बढ़ रही कीमतों पर अंकुश लगा सकता है. किसी भी देश की अर्थव्यवस्था में ये स्थिरीकरण अर्थव्यवस्था में विश्वास को बढ़ाता है और इस विश्वास से निवेश भी बढ़ता है।

इसके अलावा डॉलर पर आधारित अर्थव्यवस्था में निर्यात को भी बढ़ावा मिलता है, क्योंकि विदेशी निवेशक इस तरह की अर्थव्यवस्था में स्थिरता समझते हैं और इससे आर्थिक विकास को भी बढ़ावा मिलता है। डॉलरीकरण से घरेलू और अंतरराष्ट्रीय व्यापार एक ही मुद्रा से किया जा सकता है, जिससे किसी भी मुद्रा संबंधि समस्या से बाधित हुए बिना व्यापार किया जा सकता है।

भारत में रुपया मजबूत होना कितना जरुरी?

भारत में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर कितना खर्च कर रहा है और उसके पास कितना रुपया है। इसे ऐसे समझ सकते हैं कि मान लीजिए आप अमेरिका घूमने के लिए गए हैं, लेकिन वहां रुपया नहीं चलता तो आपको अपने रुपए को डॉलर में बदलना पड़ेगा। ऐसे में फिलहाल एक डॉलर 84 भारतीय रुपए देकर आते हैं। ऐसे में यदि आपको 1000 डॉलर चाहिए तो आपको 84 हजार 218 भारतीय रुपयों का भुगतान करना होगा। साफ जाहिर होता है कि किसी सामान या सेवा की कीमत उसकी आपूर्ति पर निर्भर है। ऐसे में यदि रुपए की मांग कम है और डॉलर की मांग ज्यादा, लेकिन उसकी आपूर्ति कम है तो उसकी कीमत ज्यादा होगी। ऐसे में आपूर्ति उस समय ही पर्याप्त हो पाएगी जब उस देश का विदेशी मुद्रा भंडार ज्यादा होगा।

RBI की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2017-18 में विदेशों में पढ़ने जाने वाले भारतीयों ने 2.021 अरब डॉलर खर्च किए। यदि भारत में भी इस तरह के अच्छे शिक्षण संस्थान होते तो विदेशों से लोग यहां पढ़ने आते और यहां डॉलर देकर रुपया लेते, जिससे देश में डॉलर बढ़ता। इसी तरह भारत की कंपनियां विदेशों से किसी सामान का निर्यात करती हैं तो उन्हें भी इसी तरह से डॉलर का भुगतान करना होता हैं। फिलहाल बात की जाए तो आज के समय में एक डॉलर की कीमत 84 रुपए हो गई है। इसका ये मतलब निकलकर सामने आता है कि भारत निर्यात कम और आयात ज्यादा कर रहा है। जिसके चलते लगातार विदेशी मुद्रा के भंडार में कमी आ रही है, जिसके चलते विदेशी मुद्रा भंडार के सोर्स भी कम पड़ रहे हैं।

डॉलरीकरण की चुनौतियां

ऐसा नहीं है कि डॉलरीकरण हर समस्या का हल है। इससे डॉलरीकरण के बाद देश में कई तरह की समस्याएं भी देखने को मिलती हैं। जैसे अचानक किसी देश में डॉलरीकरण देश में आर्थिक मंदी को जन्म दे सकता है। इसके अलावा उस देश में राजनीतिक अस्थिरता भी देखने को मिल सकती है। इसे ग्रीस के उदाहरण से समझा जा सकता है, जहां यूरो का उपयोग करने पर सख्त बजट कटौती तो हुई ही साथ ही उसे दूसरे देशों से वित्तीय सहायता भी लेनी पड़ी थी।

नोट – इस खबर दी गयी जानकारी निवेश के लिए सलाह नहीं है। ये सिर्फ मार्किट के ट्रेंड और एक्सपर्ट्स के बारे में दी गयी जानकारी है। कृपया निवेश से पहले अपनी सूझबूझ और समझदारी का इस्तेमाल जरूर करें। इसमें प्रकाशित सामग्री की जिम्मेदारी संस्थान की नहीं है।

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