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क्या होता है Fixed Deposit, भारत में कैसे हुई Bank FD की शुरुआत?

02:47 PM Apr 07, 2024 IST
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Fixed Deposit: भारत में  Fixed Deposit यानी FD की लोकप्रियता बढ़ती रही है। आज के समय हर कोई Fixed Deposit का फायदा उठा रहे हैं। आज के दौर में कोई भी आसानी से Online या Ofline बैंक FD खोल सकता है। लेकिन कुछ लोग इस सुविधी से दूर हैं जिन्हें इसकी पूरी जीनकारी नहीं हैं। इसलिए आज हम इस आर्टिकल में बताएंगे।

Highlights

क्या होती है FD ?

FD का पूरा नाम Fixed Deposit है। यह एक प्रकार का निवेश है, जिसमें कोई व्यक्ति किसी बैंक में एक निश्चित अवधि के लिए एकमुश्त राशि निवेश करता है। FD में जमा की गई राशि पर एक निश्चित दर से ब्याज मिलता है जो खाता खोलने के समय निर्धारित किया जाता है। FD धारक अपनी पसंद के अनुसार मासिक, त्रैमासिक, अर्ध-वार्षिक या वार्षिक रूप से अर्जित ब्याज प्राप्त करना चुन सकते हैं। FD लोकप्रिय हैं क्योंकि वे बाजार में उपलब्ध सबसे सुरक्षित निवेश विकल्पों में से एक हैं। रिटर्न की गारंटी है और पूंजी हानि का कोई वास्तविक जोखिम नहीं है। इसके अलावा, बचत खातों की तुलना में वे बेहतर ब्याज दर प्रदान करते हैं। यह स्थिर और पूर्वानुमानित रिटर्न अर्जित करने की चाहत रखने वाले किसी भी व्यक्ति के लिए FD को एक सुरक्षित लेकिन आकर्षक निवेश विकल्प बनाता है। कुछ टैक्स-सेविंग एफडी भी टैक्स बचाने में मदद कर सकती हैं।

FD कैसे काम करती है?

जब कोई व्यक्ति FD खाता खोलते हैं, तो उन्हें पूर्व निर्धारित अवधि के लिए एक विशिष्ट राशि जमा करनी होती है। जमा की गई राशि को जमा की परिपक्वता तक नहीं निकाला जाना चाहिए। निवेशक की पसंद के आधार पर निवेश की अवधि 7 दिन से लेकर 10 साल तक हो सकती है।

FD पर दी जाने वाली ब्याज दर निवेश की अवधि और जमा राशि पर निर्भर करती है। निवेश की अवधि जितनी लंबी होगी, ब्याज दर उतनी ही अधिक होगी और परिणामस्वरूप अर्जित ब्याज भी अधिक होगा। एफडी पर अर्जित ब्याज निवेशक के बचत खाते में जमा किया जाता है (अधिकांश बैंकों को जमा धारकों के पास बचत खाता होना आवश्यक होता है) या कार्यकाल के अंत में एफडी में पुनः निवेश किया जाता है।

भारत में बैंक FD की शुरुआत कैसे हुई?

Bank FD या Fixed Deposit सुरक्षित निवेश का सबसे अच्छा विकल्प माना जाता है। इसमें निवेश के डूबने का रिस्क न के बराबर होता है और रिटर्न भी गारंटीड होता है। इस कारण से अधिकतर भारतीय इसमें निवेश करना पसंद करते हैं, लेकिन सवाल यह है कि एफडी भारत में कैसे शुरू हुई और मध्यम वर्गीय लोगों के लिए निवेश का सबसे पसंदीदा प्रोडक्ट कैसे बना।

भारत में FD का इतिहास

भारत में FD का इतिहास अंग्रेजों से जुड़ा हुआ है। 1900 की शुरुआत में भारत में बचत को प्रोत्साहित करने के लिए अंग्रेजों की ओर से FD स्कीम को भारत में शुरू किया गया था। उस समय बैंकों की ओर से दी जाने वाली काफी कम होती थी और केवल कुछ लोगों की ओर से ही बैंक में FD कराई जाती थी। आजादी तक एफडी भारत में ज्यादा लोकप्रिय नहीं थी।

आजादी के बाद 1960 के दशक में भारत सरकार ने बैंकों का राष्ट्रीयकरण कर दिया और एफडी पर ब्याज दरों को सरकार की ओर से नियंत्रित किया जाने लगा। भारत सरकार द्वारा ही FD पर ब्याज दरों तय किया जाने लगा और 1970 तक ये सिलसिला जारी रहा। हालांकि, इस दौरान भी FD निवेशकों को आकर्षक ब्याज नहीं मिलती है और यह ज्यादातर समय महंगाई दर से कम ही रहती थी। इस कारण बड़ी संख्या में निवेशक दूसरी बनाकर रखते थे।

भारत में कैसे लोकप्रिय हुई Bank FD?

1980 के दशक में भारत में ब्याज दरों पर सरकार की ओर से नियंत्रण हटाना शुरू कर दिया गया और बैंकों को अनुमति दे दी गई कि ब्याज दरों को वह खुद तय करें। इससे भारत में ब्याज दरों को लेकर बैंकों के बीच प्रतिस्पर्धा आ गई। 1990 तक आते-आते FD पर ब्याज दर बढ़ती चली गई और इस दौरान सुरक्षित निवेश का भारत में ये तेजी से लोकप्रिय विकल्प बन गया। कुछ ही सालों में FD के पसंदीदा बनने की बड़ी वजह मध्यम वर्ग के लिए इससे पहले ऐसा कोई निवेश का विकल्प न होना भी माना जाता है।

कैसे पर 2000 में हुआ बड़ा बदलाव ?

2000 की शुरुआत में ब्याज दर तय करने की प्रक्रिया को सरल बनाने के लिए RBI बेस रेट का कॉन्सेप्ट लाया, जिसके तहत केंद्रीय बैंक एक बेस रेट तय करता था।

बेस रेट से कम पर बैंक लोन नहीं दे सकते थे। इसके बाद आरबीआई बेंचमार्क प्राइम लेंडिंग रेट (BPLR) सिस्टम लेकर आया। तब से इसी आधार पर ब्याज दर तय होती है।

नोट – इस खबर में दी गयी जानकारी निवेश के लिए सलाह नहीं है। ये सिर्फ मार्किट के ट्रेंड और एक्सपर्ट्स के बारे में दी गयी जानकारी है। कृपया निवेश से पहले अपनी सूझबूझ और समझदारी का इस्तेमाल जरूर करें। इसमें प्रकाशित सामग्री की जिम्मेदारी संस्थान की नहीं है। 

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