जानिए कब शुरू होगी भगवान श्री जगन्नाथ रथ यात्रा, क्या है महत्व और मान्यता?
श्री जगन्नाथ रथ यात्रा: सनातन धर्म में मोक्ष प्राप्ति के लिए चार धाम के तीर्थों का उल्लेख मिलता है। आज भी लोग चार धाम की यात्रा से जीवन को पाप मुक्त करते हैं। ये चार धाम बद्रीनाथ, द्वारका, रामेश्वरम और जगन्नाथ पुरी हैं। माना जाता है कि जब तक आप इन चार धाम की यात्रा नहीं कर लेते हैं तब तक कितने भी तीर्थ कर लें उसका आपको कोई लाभ नहीं मिलता है। उपरोक्त चार धामों में से एक धाम जगन्नाथ पुरी का भी है। इस मंदिर की बहुत सी विशेषताएं हैं जिनमें से एक यह भी है कि यहां स्थापित मूर्तियां किसी पत्थर या धातु की नहीं बनी है बल्कि ये काष्ठ की बनी है और इनका निर्माण स्वयं भगवान श्री विश्वकर्मा जी ने किया था। बड़े आश्चर्य की बात है कि भगवान श्री विश्वकर्मा जी द्वारा निर्मित मूर्तियां आज भी अपने उसी रूप में भगवान श्री जगन्नाथ, बहन सुभद्रा और भाई बलराम के रूप में विद्यमान है। दूसरा कारण यह भी है कि यहां से प्रति वर्ष भगवान जगन्नाथ एक रथ यात्रा पर मंदिर से बाहर निकलते हैं जिनमें सुभद्रा और बलराम भी शामिल होते हैं। इसके अलावा भी जगन्नाथ पुरी से संबंधित बहुत सी आश्चर्यजनक बातें जनमानस में व्याप्त हैं।
क्या है मंदिर का इतिहास
मंदिर का निर्माण राजा इन्द्रद्युम्न ने करवाया था। लेकिन मंदिर बन जाने के बाद भी उसमें प्रतिमाएं नहीं थीं। तक राजा इन्द्रदयुम्न ने भगवान से मंदिर में विराजने का अनुरोध किया। भगवान ने समुद्र में तैर रहे एक बड़े लकड़ी के लट्ठे से मूर्ति बनाने का निर्देश दिया। मान्यता है कि तब भगवान श्री विश्वकर्मा जी एक वृद्ध मूर्तिकार का रूप धारण करके वहां आए और मूर्तियों का निर्माण आरम्भ किया। लेकिन उनकी एक शर्त थी कि मूर्ति निर्माण के दौरान उनको एकांत चाहिए होगा। यदि कोई देखेगा तो वे मूर्ति निर्माण नहीं करेंगे। जिसका भय था वही हुआ। लोगों का यह विश्वास है कि महारानी के श्री विश्वकर्मा जी को मूर्ति निर्माण करते हुए देखने की चेष्टा की। परिणामस्वरूप वृद्ध रूप धारी भगवान श्री विश्वकर्मा जी अंतर्ध्यान हो गये। परिणामस्वरूप मूर्तियां अधूरी रह गईं। आज भी इन्हीं अधूरी मूर्तियों की पूजा होती है। वर्तमान में मंदिर में भगवान श्रीकृष्ण, देवी सुभद्रा और बलराम जी की जो दिव्य प्रतिमाएं हैं, वे भगवान श्री विश्वकर्मा जी की शिल्पकला का प्रतिफल है।
क्या है रथ यात्रा की पौराणिक कथा
प्रत्येक वर्ष श्री जगन्नाथ के मंदिर से एक रथ यात्रा निकलती है। जिसमें तीन रथ होते हैं। एक स्वयं भगवान श्री जगन्नाथ विराजते हैं। दूसरे रथ पर बहन सुभद्रा और तीसरे रथ पर श्री बलराम जी विराजते हैं। इस संदर्भ में एक पौराणिक कथा मिलती है, जिसका कि पद्म पुराण में उल्लेख है, के अनुसार एक बार बहन सुभद्रा ने अपने भाई से नगर भ्रमण करने की इच्छा व्यक्त की। मान्यता है कि हजारों वर्षों पूर्व स्वयं भगवान ने अपनी बहन की नगर भ्रमण की इच्छा को पूर्ण करने के लिए अपने भाई बलराम के साथ तीन रथों पर सवार होकर निकले। यह रथ यात्रा श्री आषाढ़ शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को आरम्भ हुई थी। इसलिए आज भी इसी दिन से यह रथ यात्रा प्रतिवर्ष आरम्भ होती है। इस रथ यात्रा के सुचारू आयोजन के लिए रथ यात्रा के आरम्भ होने से पूर्व ही पुरी में भगवान जगन्नाथ का मंदिर करीब 15 दिनों के लिए बंद हो जाता है। फिर यह रथ यात्रा के समापन पर पुनः दर्शनार्थ खुलता है।
कितनी प्राचीन है पुरी की यह रथ यात्रा
हालांकि इसका कोई ठोस प्रमाण तो नहीं है कि वास्तव में यह यात्रा कितनी शताब्दियों से निकाली जा रही है। लेकिन परम्पराओं और कहावतों के अनुसार यह यात्रा करीब बारहवीं शताब्दी में शुरू हुई थी। खास बात यह कि इसके बाद यह यात्रा बिना किसी विघ्न-बाधा के 800 से अधिक वर्षों से अनवरत जारी है। स्थानीय लोगों के लिए यह एक उत्सव को जागृत करता है। एक त्योहार के रूप में मनाया जाता है। रथ को हांकने को शुभ और मंगलकारी माना जाता है। इसलिए रथ यात्रा में शामिल होने वाले सभी इस अवसर का लाभ उठाने की कोशिश करते हैं।
क्या है रथयात्रा में शामिल होने का महत्व
मान्यता है कि भक्तगण गत वर्ष में हमने जाने-अनजाने जो भी पाप कर्म किये हैं उनसे मुक्ति और भविष्य में सत्कर्म करते हुए जीवन यापन करने की आकांक्षा से भगवान श्री जगन्नाथ की रथ यात्रा में शामिल होते हैं। यह भी मान्यता है कि इस रथ यात्रा में शामिल होने से मोक्ष की प्राप्ति होती है और इस जन्म और पूर्व जन्म के पापों से मुक्ति मिलती है। भगवान श्री जगन्नाथ के दर्शन मात्र से मन का अंहकार नष्ट होकर व्यक्ति सर्वदा निर्मल हो जाता है। पाप ग्रहों की शान्ति होती है जिससे जीवन में भौतिक और आध्यात्मिक उन्नति के नये अवसर प्राप्त होते हैं।
कब शुरू होगी रथ यात्रा
भगवान श्री जगन्नाथ की रथ यात्रा प्रति वर्ष एक निश्चित तिथि में शुरू होती है। यह सैकड़ों वर्षों से इसी दिन से आरम्भ होती रही है। इसलिए इस साल भी श्री आषाढ़ शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि, विक्रम संवत् 2081 रविवार, तद्नुसार अंग्रेजी दिनांक 7 जुलाई 2024 से भगवान श्री जगन्नाथ की रथ यात्रा आरम्भ होगी। यह रथ यात्रा श्री आषाढ़ शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि, विक्रम संवत् 2081 मंगलवार, तद्नुसार अंग्रेजी दिनांक 16 जुलाई 2024 को संपन्न होगी।
Astrologer Satyanarayan Jangid
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