21 मई को है भगवान श्री नृसिंह जयंती
मानसिक रोगियों के परिजनों को भगवान नृसिंह की पूजा जरूर करनी चाहिए।
भगवान श्री विष्णु ने इस धरा पर 10 अवतार लिए हैं। उनमें से चौथा अवतार भगवान श्री नृसिंह है। जिस दिन अवतार लिया उस दिन वैशाख शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि थी। इसलिए प्रत्येक वर्ष इस दिन भगवान श्री नृसिंह की जयंती मनाई जाती है। इनको नृसिंह इसलिए कहा जाता है क्योंकि उन्हें हिरण्यकश्यप का वध करने के लिए पशु और मनुष्य के मध्य का रूप होना चाहिए। हिरण्यकश्यप को यह वरदान प्राप्त था कि वह न तो पुरुष के हाथों मर सकता है न ही पशु के हाथों से। इसलिए भगवान ने जो अवतार लिया जिसमें मानव और पशु का सामंजस्य था।
कब है श्री नृसिंह जयंती
इस वर्ष वैशाख शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि 22 मई 2024, मंगलवार को है। इस दिन चतुर्दशी तिथि सायं 6 बजकर 46 मिनट तक रहेगी। लेकिन सायंकाल पूजा करने के दृष्टिकोण में एक दिन पहले 21 मई को चतुर्दशी तिथि सायं 5 बजकर 40 मिनट पर आरम्भ हो चुकी होगी। मान्यता है कि भगवान श्री नृसिंह ने हिरण्यकश्यप का वध उस समय किया था जब कि न रात्रि थी और न ही दिन। उसी समय वे प्रकट हुए थे इसलिए गोधूलि बेला में पूजा के उद्देश्य के आधार पर 21 मई को श्री नृसिंह जयंती होनी चाहिए। हालांकि दोनों ही दिन शुभ फलदायी हैं।
क्या है पौराणिक कथा
भगवान श्रीनृसिंह की कथा सतयुग से जुड़ी हुई है। सतयुग में हिरण्यकश्यप नाम का एक राक्षस राजा था जिसे कई तरह के वरदान मिले हुए थे। जिसके कारण उसे अहंकार हो गया कि वह तो अजेय है और अमर है उसे कोई मार नहीं सकता है। इस अहंकार के कारण वह निरंकुश और निर्दयी हो गया। और उसने अपने नगर में यह घोषणा करवा दी कि वही वास्तविक भगवान है और उसी की पूजा होनी चाहिए। उसके डर से प्रजा उसकी पूजा करने लगी लेकिन उसका स्वयं का पुत्र प्रहलाद भगवान विष्णु का परम भक्त था। पिता हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र को श्री विष्णु की भक्ति से विमुख करने के लिए अनेक कष्ट और यातनाएं दीं। जब किसी भी तरह से बालक प्रहलाद अपनी भक्ति से विमुख नहीं हुए तो हिरण्यकश्यप ने अपनी समस्या पर अपनी बहन होलिका से बात की। कहा जाता है कि होलिका को वरदान के रूप में एक चादर मिली हुई थी जिसको ओढ़ कर बैठने से वह अग्नि से बची रह सकती थी। भाई-बहन ने योजना बनाई कि कि चादर के कारण होलिका तो बची रहेगी और प्रहलाद जलकर राख हो जायेगा।
अन्ततः योजना अनुसार होलिका ने बालक प्रहलाद को अपनी गोद में बैठा लिया और आग लगा दी गई। लेकिन भगवान श्री विष्णु की भक्ति के कारण आंधी चली और होलिका की चमत्कारी चादर हवा में उड़ गई और होलिका स्वयं जलकर नष्ट हो गई जबकि प्रहलाद सुरक्षित अग्नि से बाहर आ गए। इस घटना के बाद आज भी गोबर से होलिका का प्रतीक बनाकर जलाया जाता है।
यह कथा भगवान श्रीविष्णु ने श्रीनृसिंह के अवतार के उपरान्त पूर्ण होती है। जब राजा हिरण्यकश्यप ने निरंकुशता और यातना की सारी हदें पार कर दी तो भगवान श्री विष्णु ने वैशाख शुक्ल पक्ष चतुर्दशी को नृसिंह का अवतार लिया और हिरण्यकश्यप का वध किया। इसलिए कुछ स्थानों पर होली के त्यौहार पर भी भगवान नृसिंह की भी पूजा की जाती है।
पागलपन और मानसिक तनाव में भगवान नृसिंह की पूजा से होता है चमत्कारी प्रभाव
आमतौर पर जब चन्द्रमा पक्ष बलहीन होकर पाप प्रभाव में हो और लग्न और द्वितीय भाव पर भी विध्वंसकारी मंगल और राहु जैसे ग्रहों का प्रभाव हो तो जातक के एक निश्चित आयु में मतिभ्रम, डिप्रेशन, उन्माद या पागलपन का शिकार होने की आशंका रहेगी। ग्रहों के प्रभाव के अनुसार रोग का असर कम या ज्यादा हो सकता है।
इस प्रकार के रोगों में चिकित्सा बहुत समय तक चला करती है उसके बाद भी ज्यादातर में मामलों में अपेक्षित परिणाम नहीं मिलते हैं। जब इस समस्या को ज्योतिषीय संदर्भों में देखा जाए तो भगवान नृसिंह की पूजा बहुत ही चमत्कारी उपाय माना गया है। जिन लोगों के परिवार में इस प्रकार की समस्या से पीड़ित यदि कोई रोगी है तो उन लोगों को घर के मंदिर में भगवान नृसिंह की मूर्ति या चित्र अवश्य रखना चाहिए। अच्छे परिणाम पाने के लिए भगवान नृसिंह के एक चित्र को पीड़ित के कक्ष में रखने से भी लाभ प्राप्त होता है। भगवान नृसिंह के दो चित्र प्रचलित हैं एक में वे अपने भक्त प्रह्लाद को गोद में लिए हुए हैं तो दूसरी में वे हिरण्यकश्यप का वध कर रहे हैं। भक्त प्रह्लाद को गोद में लिए हुए चित्र को अधिक प्रभावी समझा गया है हालांकि यह चित्र आसानी से मिलता नहीं है इसलिए इन्टरनेट से डाउनलोड करके प्रिन्टर से तैयार करवा लेना चाहिए।
इसके अलावा जिन लोगों को लगता है कि वे दिमागी रूप से परेशान है। मानसिक परेशानी ज्यादा रहती है, या जिन लोगों को लगता है कि उनमें डिसीजन पावर कम है, और वे जो भी डिसिजन लेते हैं वह गलत हो जाता है। और बाद में पछताना पड़ता है। उनको भगवान श्री नृसिंह की पूजा अवश्य करनी चाहिए।
Astrologer Satyanarayan Jangid
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