MARCOS Commando: दुश्मनों के लिए मौत का दूसरा नाम मार्कोस कमांडोज, पलक झपकने से पहले कर देते है काम तमाम
MARCOS Commando सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए देश और राज्य में कई बेहद ही खौफनाक विशेष बल बनाए गए है। जिनके नाम से ही दुश्मन के मनसूबे में डर पैदा हो जाता है। जब ये बल किसी प्रकार के ऑपरेशन के लिए जाते है तो इसका मतबल है की अब जो भी आपत्ति है वो जल्द ही समाप्त होने वाली है। इन विशेष बलों के पास कुछ खास अधिकार भी होते है। जिसका वो सही समय पर प्रयोग कर अपने कार्य को अंजाम देते है। इन सब विशेष बलों में से एक नाम आता है मार्कोस कमांडोज का। किसी भी टास्क को सुनिश्चित करने का दूसरा नाम है मार्कोस कमांडोज। हर कोई मार्कोस कमांडो नहीं बन पता। इस विशेष बल से जुड़ने के लिए अभ्यर्थी को कई अग्नि परीक्षा से होकर गुजरना पड़ता है। आज की इस रिपोर्ट में हम आपको बतायंगे कैसे तैयार होते है मार्कोस कमांडो और क्या होती ही इसकी योग्यता। 2023 में जी - 20 समिट की अध्यक्षता भारत कर रहा था। इसकी बैठक देश के विभिन्न राज्यों में हुई जिसमे श्रीनगर जैसे सवंदेशील क्षेत्र भी थे। अनुच्छेद 370 हटाने के बाद पहली दफा वहा कोई अंतराष्ट्रीय आयोजन था ऐसे में सुरक्षा का जिम्मा मार्कोस और एनएसजी कमांडो को दी गई थी। मार्कोस भारत के सबसे खौफनाक कमांडो में से एक है। जितने ये खतरनाक उस से भी मुश्किल है इनका प्रशिक्षण जिसमे कई प्रकार के टास्क शामिल होते है। जिन्हे पार पा पाना हर किसी के बस की बात नहीं। इतना ही नहीं जिन दुश्मनो को इनके बारे में पता होता है वो दुआ मनाते है की मार्कोस से सामना ना हो।
कौन है मार्कोस
मार्कोस या मरीन कमांडो फाॅर्स भारत के सबसे घातक और खौफनाक कमांडो में से एक है। वैसे तो ये भारतीय जल सेना की विशेष ऑपरेशन बल है, लेकिन इनको जिस प्रकार से तैयार किया जाता है यह जमीनी स्तर से लेकर आसमान तक हर जगह दुशमन को नेस्तनाबूद करने में सक्षम में है।
इस विशेष दल को बनाने क्या थी वजह
1987 में मार्कोस कमांडो की विशेष यूनिट बनाई गई थी, क्योंकि उस वक्त आतंकवादी हमले और समुद्री लुटेरों का आतंक काफी तेजी से बढ़ने लगा था। उस पर नियत्रण पाने के लिए एक विशेष बल की आवश्यकता थी। उस समय इस यूनिट की स्थापना की गई थी। मार्कोस का प्रशिक्षण मार्कोस की ट्रेनिंग अमेरिकी नेवी सील्स की तरह कराई जाती है। इनका चयन बहुत ही कठिन ट्रेनिंग के बाद किया जाता है।
यूनिट को बनाने के पीछे का इतिहास
इस स्पेशल यूनिट को बनाने के पीछे का इतिहास 1955 से शुरू होता है। दरअसल, उस समय भारतीय सेना बल ने ब्रिटिश स्पेशल बोट सर्विस की मदद से कोच्चि में एक डाइविंग स्कूल की स्थापना की। इसका लक्ष्य आर्मी के लोगों को फ्रॉगमैन या कॉम्बैटेंट डाएइवर, यानी लड़ाकू गोताखोर बनाना था। हालांकि, 1971 में भारत-पाकिस्तान के बीच छिड़े युद्ध में इन्हें सफलता नहीं मिली, जिसके लिए उनकी ट्रेनिंग को जिम्मेदार माना गया। इसके बाद 1986 में भारतीय नौसेना ने एक स्पेशल फोर्स यूनिट को बनाने का फैसला किया, जिसका काम छापा मरना, एंटी टेररिस्ट ऑपरेशन करना और समुद्र में हो रहे लूटपाट को कम करना था। इसके लिए 1955 के ट्रेनिंग सेंटर के 3 वॉलिंटीयर अधिकारियों का चुना गया, जिन्होंने संयुक्त राज्य के नौसेना के ट्रेनिंग सेंटर, कोरोनाडो में ट्रेनिंग ली। 1987 में जब यह यूनिट तैयार हुआ, तो इसका नाम मरीन स्पेशल फोर्स रखा गया। उस दौरान इस यूनिट में 3 ऑफिसर ही मौजूद थे। हालांकि, 1991 में इस यूनिट का नाम बदलकर मरीन कमांडो फोर्स रख दिया गया।
सुबह से देर रात तक ट्रेनिंग
मार्कोस के लिए चुने जाने वाले सेनिकों की ट्रेनिग तीन वर्षो के लिए होती है। इसमें हजारो की संख्या में से कुछ ही सैनिकों को ट्रेनिंग के लिए आगे भेजा जाता है। सैनिकों को तीन साल की कठिन ट्रेनिंग कराई जाती है जिस दौरान वो कई अग्नि परीक्षा से गुजरते है। साथ ही इस दौरान सैनिकों को 24 घंटे में से मात्र 4-5 घंटे तक ही सोने दिया जाता है। सूर्य की पहली किरण से पहले ट्रेनिंग शुरू होती है जो ट्रेनिंग देर शाम या रात तक भी चलती रहती है।
भारतीय नौसेना ने मालवाहक जहाज़ से 15 भारतीयों समेत 21 लोगों को सुरक्षित बाहर निकाला
भारतीय नौसेना ने कहा है कि उन्हें मालवाहक जहाज़ (एमवी लीला नॉरफ़ॉक) पर कोई अपहरणकर्ता नहीं मिला है। नेवी के आकलन है कि उनकी चेतावनी के बाद समुद्री डाकुओं ने अपना इरादा बदल लिया होगा। भारतीय नौसेना ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा, "मरीन कमांडोज़ को मालवाहक जहाज़ की तलाशी के दौरान कोई समुद्री डाकू नहीं मिला. ऐसा लगता है कि भारतीय नौसेना की चेतावनी के बाद हाईजैक करने वालों ने अपना इरादा बदल लिया। नेवी ने बताया कि आईएनएस चेन्नई अब भी मालवाहक जहाज़ के करीब है और उस जहाज़ को बिजली बगैहरा बहाल करने का प्रयास कर रहा है ताकि वो अगली बंदरगाह की ओर जा सके।