उत्तराखंड में यूनिफॉर्म सिविल कोड के विरोध में आया मुस्लिम पक्ष, कहा- BJP सिर्फ मुसलमानों...
उत्तराखंड सरकार द्वारा गठित यूसीसी समिति की प्रमुख रंजना प्रकाश देसाई ने यूनिफॉर्म सिविल कोड ड्राफ्ट मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को सौंप दिया है। उत्तराखंड सरकार ने सुप्रीम कोर्ट की रिटायर्ड जज रंजना प्रकाश देसाई के नेतृत्व में पांच सदस्यों की समिति का गठन किया गया था। अब सीएम पुष्कर सिंह धामी इस ड्राफ्ट की समीक्षा करके विधानसभा सत्र में विधेयक लाकर इसे प्रदेश में लागू करने की दिशा में आगे बढ़ेंगे। 5 फरवरी यानी सोमवार से शुरू हो रहे राज्य विधानसभा में यूसीसी विधेयक मंगलवार को पेश किया जा सकता है।
UCC ड्राफ्ट रिपोर्ट पर उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि मुझे ड्राफ्ट मिल गया है, इसकी जांच की जाएगी और फिर इसे लागू किया जाएगा। हमने राज्य चुनावों के दौरान उत्तराखंड के लोगों से वादा किया था और उन्होंने हमारी सरकार बनाई। इसलिए हम वह वादा निभा रहे हैं। हमें उम्मीद है कि अन्य राज्य भी इसे ले सकेंगे।
बता दें, इससे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी देश में यूसीसी लागू करने की बात कर चुके हैं। अब जब उत्तराखंड द्वारा तैयार कानून लागू होने को है ऐसे में यह अहम विषय बन सकता है। वहीं, उम्मीद जताई जा रही है कि भाजपा शासित कई सरकारें चुनावी घोषणा के रूप में इस कानून को अपने-अपने राज्यों में लागू कर सकती हैं।
बता दें, यूसीसी राज्य में सभी नागरिकों को उनके धर्म से परे एकसमान विवाह, तलाक, भूमि, संपत्ति और विरासत कानूनों के लिए एक कानूनी ढांचा प्रदान करेगा। इसे यूसीसी पर केंद्रीय कानून के ब्लूप्रिंट के तौर पर भी देखा जा रहा है। अगर यह लागू होता है तो उत्तराखंड आजादी के बाद यूसीसी अपनाने वाला देश का पहला राज्य बन जाएगा। बता दें, अभी तक देश में सिर्फ गोवा में ही यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू है, यह पुर्तगाली सिविल कोड (गोवा सिविल कोड) है। मालूम हो, इसे पुर्तगाली शासन के समय लागू किया गया था। आइए जानते हैं कि उत्तराखंड में लागू हो रहे यूसीसी ड्राफ्ट की बड़ी बातें क्या है और यह मुस्लिम पक्ष इसका विरोध क्यों कर रहा है।
यूसीसी ड्राफ्ट की बड़ी बातें
उत्तराखंड यूसीसी ड्राफ्ट के अनुसार प्रदेश में हलाला और इद्दत पर रोक होगी। लिव इन रिलेशनशिप का डिक्लेरेशन आवश्यक होगा, ये एक सेल्फ डिक्लेरेशन की तरह होगा जिसका एक वैधानिक फॉर्मेट होगा। लिवइन रिलेशनशिप से पहले पंजीकरण न करने पर सजा व आर्थिक दंड का प्रविधान है। लिवइन के दौरान कोई संतान पैदा होती है तो उसे माता-पिता का नाम देना होगा और सभी हितों का संरक्षण करना होगा।
गोद लेने की प्रक्रिया अब सरल होगी और सभी धर्म के लोग आसानी से बच्चों को गोद ले सकेंगे। हालांकि अभी भी कुछ धर्मों में इसकी मनाही है। पति-पत्नी के झगड़े की स्थिति में बच्चों की कस्टडी उनके ग्रैंड पैरेंट्स को दी जा सकती है। हालांकि इस ड्रॉफ्ट में जनसंख्या नियंत्रण को अभी सम्मिलित नहीं किया गया है।
यूसीसी ड्राफ्ट के अनुसार अब सभी धर्मों में लड़कियों की विवाह की आयु बढ़ाई जाएगी ताकि वह विवाह से पहले ग्रेजुएट हो सकें। इसके साथ ही विवाह का अनिवार्य रजिस्ट्रेशन होगा और बगैर रजिस्ट्रेशन किसी भी सरकारी सुविधा का लाभ नहीं मिलेगा। वहीं ग्राम स्तर पर भी शादी के रजिस्ट्रेशन की सुविधा होगी। इसके अलावा पति-पत्नी दोनों को तलाक के समान आधार उपलब्ध होंगे। तलाक का ग्राउंड जो पति के लिए लागू होगा, वहीं पत्नी के लिए भी लागू होगा। फिलहाल पर्सनल लॉ के तहत पति और पत्नी के पास तलाक के अलग-अलग ग्राउंड हैं।
पॉलीगैमी या बहुविवाह पर रोक लगेगी। उत्तराधिकार में लड़कियों को लड़कों के बराबर का हिस्सा मिलेगा, अभी तक पर्सनल लॉ के मुताबिक लड़के का शेयर लड़की से अधिक मिलता है। इसके साथ ही नौकरी करने वाले बेटे की मृत्यु पर पत्नी को मिलने वाले मुआवजे में वृद्ध माता-पिता के भरण पोषण की जिम्मेदारी होगी। बता दें, अनुसूचित जनजाति के लोग इस परिधि से बाहर रहेंगे।
न्याय की देवी की आंखों से हटी पट्टी
बता दें, उत्तराखंड में UCC का ड्राफ्ट के चार हिस्सों में सरकार को सौंपा गया हैं। इस रिपोर्ट का शीर्षक है समानता द्वारा समरसता। यह हिन्दी और अंग्रेज़ी में है। बड़ी बात ये है कि रिपोर्ट के मुखपृष्ठ पर छपी न्याय की देवी की आंखों पर पट्टी नहीं बंधी है। इसका संदेश ये है कि क़ानून अब सबको समान नज़रों से देखेगा। इसीलिए शीर्षक समानता से समरसता रखा गया है।
वहीं, पहले खंड में समिति की रिपोर्ट है, दूसरे में संहिता का मसौदा अंग्रेज़ी में है, तीसरे में लोगों से की गई बातचीत की रिपोर्ट है और चौथे में संहिता का मसौदा हिंदी में दिया गया है।सूत्रों का कहना है कि समिति ने और भी कई सुझाव दिए थे, जिनमें जनसंख्या नियंत्रण के लिए बच्चों की संख्या सीमित करना भी शामिल था। लेकिन समिति से कहा गया कि इस विषय पर केंद्र सरकार नीति बनाएगी, वही जनसंख्या नियंत्रण के लिए क़दम उठाएगी।
यूसीसी का क्यों हो रहा है विरोध
बता दें, उत्तराखंड विधानसभा में यूसीसी के पेश होने से मुस्लिम पक्ष नाराज है। उनका मानना है कि भाजपा सिर्फ मुसलमानों को निशाना बना रही हैं। अधिवक्ता और उत्तराखंड बार काउंसिल की पूर्व अध्यक्ष रजिया बेग का कहना था कि अगर यूसीसी में प्रस्ताव शारिया कानून में हस्तक्षेप करेंगे, तो हम विरोध प्रदर्शन करेंगे। यूसीसी के प्रस्तावों के बारे में मैं अखबारों में जो पढ़ पाया हूं, उससे पता चलता है कि वे यानी भाजपा केवल मुसलमानों को निशाना बना रहे हैं।
वहीं, हरिद्वार जिले के पिरान कलियर से कांग्रस विधायक फुरकान अहमद कहते हैं कि अगर यूसीसी में नियम कुरान शरीफ के खिलाफ जाते हैं और मुसलमानों के व्यक्तिगत कानूनों को प्रभावित करते हैं तो हम इसका विरोध करेंगे। चाहे गीता हो या मुस्लिम धर्मग्रंथ, सभी का सम्मान किया जाना चाहिए।
वहीं 4 फरवरी को यूनिफार्म सिविल कोड के विरोध में पलटन बाजार स्थित जामा मस्जिद में मुस्लिम सेवा संगठन द्वारा एक प्रेस वार्ता का आयोजन किया। जिसकी अध्यक्षता शहर काजी मोहम्मद अहमद कासमी ने गई। शहर काजी मोहम्मद अहमद कासमी ने कहा कि यूसीसी केवल धर्म विशेष के विरुद्ध है। इसमें मुस्लिम समाज द्वारा दिए गई आपत्तियों तथा मुस्लिम समाज द्वारा दिए गए सुझावों को भी कोई जगह नहीं दी गई है।
बैठक में मौजूद मुफ्ती रईस ने कहा कि प्रदेश सरकार द्वारा लाया जाने वाला यह कानून संविधान के विरुद्ध है। क्योंकि आर्टिकल 25 के तहत हर धर्म को मानने वाले व्यक्ति को अपने धर्म पर चलने की आजादी है। मुफ्ती रईस ने कहा सर्वप्रथम तो केंद्र सरकार द्वारा संविधान में संशोधन किया जाने के बाद ही यूसीसी लागू किया जा सकता है। वरना दो कानून आपस में टकराएंगे।
हालांकि कुछ रिपोर्ट के अनुसार, सूत्रों का कहना है कि उत्तराखंड विधानसभा में इस विधेयक के पारित होने के बाद यह प्रदेश अन्य राज्यों के लिए एक मॉडल बन जाएगा। इसके बाद गुजरात और असम में भी यूसीसी विधेयक लाया जा सकता है।