India WorldDelhi NCR Uttar PradeshHaryanaRajasthanPunjabJammu & Kashmir Bihar Other States
Sports | Other GamesCricket
Horoscope Bollywood Kesari Social World CupGadgetsHealth & Lifestyle
Advertisement

राष्ट्रीय किसान दिवस, देशवासियों की भूख मिटाने वाले अन्नदाताओं की कहानी

05:36 PM Dec 23, 2023 IST
Advertisement

National Farmer's Day: भारत एक कृर्षि प्रधान देश है, ऐसे में भारत देश हर साल देश के किसानों के सम्मान के लिए 23 दिसंबर को किसान दिवस मनाते हैं। भारत के किसान  खेती करने के लिए कई सारे मौसम को झेलते हैं, चाहे गर्मी हो बरसात हो या फिर मूसलाधार बारिश, खेती करने के लिए वह दिन- रात एक कर वह फसल को उपजाते हैं। तो आइए जानते हैं कि किसानों के सम्मान के लिए किसान दिवस 23 दिसबंर को ही क्यों मनाया जाता है? और इसके अलावा हम इसके इतिहास और उससे जुड़ी पूरी कहानी पर भी बात करेंगे

राष्ट्रीय किसान दिवस का क्या है महत्व (National Farmer's Day)

National Farmer's Day भारत की अर्थव्यवस्था में किसानों का अहम योगदान है।आजादी के बाद से ही किसान हमारे देश की इकोनॉमी की रीढ़ हैं। देश के लोगों का पेट को भरने के अलावा कृषि संबंधित उद्योग और कृषि जनित उत्पादों के निर्यात में भी किसान बड़ी भूमिका निभाते हैं। भारत के अलावा भी कई देशों में किसानों को सम्मान देने के लिए किसान दिवस मनाया जाता है। इनमें अमेरिका, घाना, वियतनाम और पाकिस्तान जैसे कई देश शामिल हैं। इन सभी देशों में अलग-अलग तारीखों पर किसान दिवस मनाया जाता है। भारत में राष्ट्रीय किसान दिवस मनाने के लिए 23 दिसंबर की तारीख तय की गई है, क्योंकि 23 दिसंबर को देश के पांचवें प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की जयंती का अवसर है।

देश के पांचवें प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की जयंती पर किसान दिवस

National Farmer's Day साल 1979 से 1980 तक छोटे से कार्यकाल में देश के प्रधानमंत्री रहे किसान नेता चौधरी चरण सिंह ने किसानों के हित के लिए कई कार्यक्रम और योजनाएं शुरू की थी। देश के किसानों को सशक्त बनाने के लिए उन्होंने कई कानून और नीतियां बनाई थी। भारत सरकार ने साल 2001 में पूर्व पीएम चौधरी चरण सिंह के सम्मान में 23 दिसंबर को राष्ट्रीय किसान दिवस घोषित किया था। देश में मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब और मध्य प्रदेश जैसे कई राज्यों में किसान दिवस पर बहुत तरह के कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। इन सरकारी और गैर-सरकारी कार्यक्रमों और समारोहों में स्थानीय जागरूक किसानों को बड़े मंच पर सीधे अपनी बातें रखने का मौका मिलता है। इसके अलावा किसानों के लिए कई योजनाओं की शुरुआत की जाती है. साथ ही बड़े पैमाने पर किसानों को सम्मानित किया जाता है।

चौधरी चरण सिंह को उनके समर्थक किसानों के मसीहा के रूप में याद करते हैं

National Farmer's Day: देश के पांचवें प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह को उनके समर्थक किसानों के मसीहा के रूप में याद करते हैं। देश की पहली गैर-कांग्रेसी सरकार में उप प्रधानमंत्री और गृह मंत्री का उनका कार्यकाल भी लंबा नहीं चल सका। क्योंकि जनता पार्टी की आपसी कलह के कारण प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई की सरकार गिर गई थी। आजादी की लड़ाई और बाद में आपातकाल विरोधी आंदोलन में अहम भूमिका निभाने वाले चौधरी चरण सिंह बाद में प्रधानमंत्री बने। दिलचस्प बात यह है कि पीएम रहते हुए वह एक भी दिन संसद का सामना नहीं कर पाए। राजनीतिक स्थिति ऐसी बन गई कि उन्हें इस्तीफा देना पड़ा।

चौधरी चरण सिंह भी देश की आजादी के लिए लड़े

हापुड़ में 23 दिसंबर 1902 को चौधरी चरण सिंह का जन्म हुआ था। चौधरी चरण सिंह के पूर्वजों ने 1857 में आजादी की पहले लड़ाई में हिस्सा लिया था। इस परंपरा को आगे बढ़ाते हुए चौधरी चरण सिंह भी देश की आजादी के लिए लड़े। पहली बार 1929 में जेल गए. फिर साल 1940 में दूसरी बार जेल भेजे गए. आजादी के बाद भी वह कांग्रेस में अलग-अलग अहम पदों पर काम किया। आगरा विश्वविद्यालय से कानून की पढ़ाई करने वाले चौधरी चरण सिंह ने गाजियाबाद में वकालत भी की। उन्होंने पहली बार 1937 में यूपी के छपरौली से विधानसभा का चुनाव जीता था। इसके बाद 1946, 1952, 1962 और 1967 में भी इस क्षेत्र के लोगों ने उन्हें अपना नेता चुना। उत्तर प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री गोविंद वल्लभ पंत की सरकार में चौधरी चरण सिंह संसदीय कार्य मंत्री बने. इसके साथ ही उन्होंने राजस्व, कानून और स्वास्थ्य विभाग भी संभाला।

जमींदारी उन्मूलन कानून

इसके बाद डॉ. संपूर्णानंद और चंद्रभानु गुप्त की सरकारों में उन्हें महत्वपूर्ण विभाग मिले. उत्तर प्रदेश सरकार के राजस्व मंत्री के रूप में चौधरी चरण सिंह ने साल 1952 में विधानसभा से जमींदारी उन्मूलन कानून पास करा दिया। इस कानून के लागू होने के बाद जमींदारों के पास से अतिरिक्त जमीनें लेकर वहां काम करने वाले भूमिहीन किसानों को दी गईं। जमींदारों के यहां मजदूरी करने वाले किसान अब अपनी जमीन के मालिक हो गए। वहीं, जमींदारी उन्मूलन कानून पास होने के बाद आंदोलन कर रहे 27 हजार पटवारियों का सामूहिक इस्तीफा भी उन्होंने स्वीकार कर लिया। साथ ही नए पटवारियों की नियक्ति में 18 फीसदी आरक्षण भी लागू कर दिया।

राजनीति में PM पद तक पहुंचे चौदरी चरण सिंह

देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू से मतभेदों के चक्कर में कांग्रेस छोड़कर चौधरी चरण सिंह ने भारतीय क्रांति दल की स्थापना की। समाजवादी नेता राज नारायण और डॉ. राम मनोहर लोहिया की मदद से 3 अप्रैल 1967 को चौधरी चरण सिंह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। फिर 17 अप्रैल. 1968 को इस्तीफा दे दिया. इसके बाद हुए चुनाव में 17 फरवरी 1970 को वह दोबारा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। इसके बाद में केंद्र की राजनीति में गए और प्रधानमंत्री पद तक पहुंचे।

देश और दुनिया की तमाम खबरों के लिए हमारा YouTube Channel ‘PUNJAB KESARI’ को अभी subscribe करें। आप हमें FACEBOOK, INSTAGRAM और TWITTER पर भी फॉलो कर सकते हैं।

 

Advertisement
Next Article