चूहों के मंदिर के नाम से विख्यात कहां है करणी माता का मंदिर?
क्या है चूहों वाले मंदिर की कहानी
आमतौर पर लोग चूहों को कोई विशेष जीव नहीं मानते हैं। लेकिन हिन्दू संस्कृति में श्री गणेश जी का वाहन चूहा है। इसलिए किसी भी कार्य की शुरुआत में गणेश जी के साथ चूहों की भी पूजा स्वतः ही हो जाती है। भारत में वैदिक काल से ही चूहों का उल्लेख प्राप्त होता रहा है। चूहों के संबंध में केवल श्री गणेश जी वाला एक ही उदाहरण नहीं मिलता है बल्कि महाभारत में पांडवों को अग्नि से बचाने का सूत्र भी महात्मा विदुर ने चूहों की जीवन शैली के आधार पर ही दिया था। उन्होंने भरी सभा में पूछा की जंगल की आग से कौन सुरक्षित रह सकता है। इसका जवाब था कि केवल चूहा ही जंगल की आग से सुरक्षित रह सकता है क्योंकि वह जमीन में गुफा बनाकर रहता है। इस संकेत के मर्म को बुद्धिमान युधिष्ठिर ने समझा और गुफा खोदकर वार्णावत की आग से स्वयं, माता कुंती और शेष पांडवों की रक्षा की। लेकिन ऐसा नहीं है कि चूहों का महत्व केवल वैदिक काल के अतिरिक्त आधुनिक काल में नहीं है। आज आपको एक ऐसे मंदिर के बारे में बताते हैं जहां न केवल चारों तरफ चूहों की भरमार है बल्कि वे पूजा और सम्मान भी पाते हैं। इन चूहों का जूठा प्रसाद खाकर लोग स्वयं को भाग्यशाली समझते हैं।
चूहों का यह प्रसिद्ध मंदिर राजस्थान के बीकानेर शहर के दक्षिण में देशनोक नामक गांव में है। यह गांव बीकानेर शहर से 30 किलोमीटर दक्षिण में है। इस मंदिर में चूहे क्यों रहते हैं और इनको इतना आदर सम्मान क्यों मिलता है। इस रहस्य को समझने से पूर्व हमें मां जगदम्बा की अवतार समझी जाने वाली मां करणी के बारे में जानकारी प्राप्त करना समीचीन होगा।
कौन थीं माता श्री करणी
भुजिया और रसगुल्ला के लिए प्रसिद्ध राजस्थान के बीकानेर से 30 किलोमीटर दूर, दक्षिण दिशा में एक देशनोक नाम का छोटा कस्बा है। इस कस्बे में करीब 400 साल पुराना श्री करणी माता का मंदिर है। जिन चूहों के मंदिर की बात ऊपर की जा रही है वह दरअसल माता करणी का मंदिर है। श्री करणी माता लाखों लोगों की आराध्य देवी हैं। बिल्कुल स्पष्ट प्रमाण है कि मां करणी ने 150 वर्षों तक अपने भक्तों को चमत्कृत किया। हालांकि गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में जिस सबसे उम्रदराज व्यक्ति का उल्लेख है वह 122 वर्ष तक जीवित रहा था। जबकि श्री करणी माता जी के 150 वर्ष से अधिक समय तक धरती पर रहने के स्पष्ट प्रमाण मिलते हैं।
श्री करणी माता जी का जन्म अश्विनी शुक्ल पक्ष सप्तमी, विक्रम संवत् 1444, तदनुसार अंग्रेजी दिनांक 28 सितम्बर 1387 को सुवास नामक स्थान ( जिला जोधपुर, राजस्थान) पर प्रातः 5 बजे हुआ। श्री करणी माता जी के पिता जी का नाम मेहाजी किनिया था और वे चारण वंश से संबंध रखते थे। माता के अवतरण के समय कन्या लग्न उदय हो रहा था। श्री करणी माता जी की जन्म कुंडली यहां दी जा रही है। जिज्ञासु पाठक उसका अध्ययन कर सकते हैं। यहां मैं एक बात और स्पष्ट कर दूं कि गूगल और यूट्यूब पर श्री करणी माता जी का जन्म 20 सितम्बर का बताया जाता है, जो कि गलत है।
जिस क्षेत्र में माता श्री करणी ने अवतार लिया था, राजस्थान में वह क्षेत्र उस काल में जांगल देश कहलाता था। माता जी को गोवंश और पक्षियों से बहुत प्रेम था। उन्होंने करीब 10000 बीघा जमीन पर पशुओं की चराई की व्यवस्था करवाई। अपने 150 वर्षों के दीर्घ जीवन काल में माता जी ने बहुत से जनहित का कार्य संपन्न किये। पूगल के राव शेखाजी उस समय मुल्तान में कैद थे। माताजी ने उनको कैद से मुक्त करवाया और उनकी पुत्री का विवाह बीकानेर के संस्थापक राव बीका जी महाराज से संपन्न करवाया।
बीकानेर के महाराजा राव बीकाजी और जोधपुर के महाराजा राव जोधाजी भी माता के परम भक्त थे। इसलिए माता श्री करणी जी के सांनिध्य में ही बीकानेर के जूनागढ़ किले और जोधपुर के मेहरानगढ़ किले की नींव रखी गई थी।
जिस स्थान पर माता का मंदिर बना हुआ है उसी स्थान पर गुफा में माताजी ने तपस्या की थी। जिस मूर्ति की करीब पिछले 400 वर्षों से ज्यादा समय से पूजा हो रही है उसे माताजी के आदेश पर अंधे बन्ना खाती ने निर्मित किया था। बन्ना खाती स्वयं माता का परम भक्त था।
विक्रम संवत् 1595 की चैत्र शुक्ल पक्ष नवमी, तदनुसार अंग्रेजी दिनांक 23 मार्च 1538 को माताजी ज्योर्तिलीन हुईं।
क्या है चूहों का रहस्य
माना जाता है कि आज भी उनके वंशजों की आत्माऐं चूहों के शरीर में देशनोक के मंदिर में निवास करती हैं। इसलिए देशनोक का श्री करणी माता जी का मंदिर चूहों के मंदिर के रूप में समस्त विश्व में जाना-पहचाना जाता है। इन चूहों के बारे में मान्यता है कि ये सभी माता श्री करणी के वंशज हैं। एक प्रसिद्ध कथा के अनुसार माता जी के सौतेले पुत्र एक सरोवर में डूब जाने से मृत्यु का प्राप्त हो गये। मान्यता है कि उनको पुनः जीवन दान देने के लिए माता ने यम से निवेदन किया। लेकिन यम ने अपनी विवशता व्यक्त करके सौतेले पुत्र लक्ष्मण को जीवित करने से मना कर दिया। तब माता ने अपने परिवार को वरदान दिया कि भविष्य में उनके परिवार का कोई भी सदस्य मरने के बाद यमपुरी न जाकर यहां चूहों के रूप में जन्म लेगा। इसलिए मान्यता है कि मंदिर में रहने वाले सभी चूहे माता के वंशज हैं। इन्हें काबा भी कहा जाता है। मान्यता है कि कुछ चूहे सफेद भी हैं जिनके दर्शन बहुत दुर्लभ हैं। बहुत कम लोगों को सफेद चूहों के दर्शन हो पाते हैं। भक्त जन सफेद चूहे के दर्शन के लिए घंटों मंदिर में इंतजार करते हैं।
राजस्थान में तो आपके भक्त हैं ही इसके अलावा लगभग पूरे देश में आपको इष्ट के रूप में पूजने वाले बड़ी संख्या में हैं। माता अपने भक्तों पर तत्काल कृपा करतीं हैं। जो सम्मानित और आदरणीय मित्र किसी गंभीर समस्या से पीड़ित हैं उन्हें अवश्य ही माताजी की शरण में जाना चाहिए।
कैसे जाएं
श्री करणी माता जी का मंदिर राजस्थान की पुरानी परंपरागत शैली में बना हुआ है। बेहद नयनाभिराम है। मंदिर का आगे का भाग सफेद संगमरमर से बना हुआ है, जिस पर बारीक नक्काशी की गई है। मुख्य द्वार चांदी से मढ़ा हुआ है। गर्भगृह में माता जी के भक्त बन्ना खाती के द्वारा निर्मित मूर्ति है। यदि आप जाना चाहे तो बहुत ही सुंदर अनुभव करेंगे। इसके लिए सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन और हवाई अड्डा बीकानेर है। बीकानेर औद्योगिक नगरी है इसलिए लगभग समस्त भारत से बहुत आसानी से आप गंतव्य तक पहुंच सकते हैं। बीकानेर सड़क मार्ग से भी भारत के सभी महानगरों से जुड़ा हुआ है। माता जी का मंदिर बीकानेर के दक्षिण में 30 किलोमीटर की दूरी पर है। इसलिए बीकानेर पहुंच जाने के बाद आप आसानी से देशनोक पहुंच सकते हैं।
Astrologer Satyanarayan Jangid
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