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फैजल की बहाली का मुद्दा

01:09 AM Oct 11, 2023 IST
फैजल की बहाली का मुद्दा

लोकसभा की सदस्यता से राहुल गांधी और राकांपा नेता और लक्षद्वीप से लोकसभा सांसद मोहम्मद फैजल को अयोग्य करार दिए जाने और फिर उनकी संसद सदस्यता बहाल होने से जनप्रतिनिधित्व कानून के प्रावधान चर्चा में आ चुके हैं और साथ ही इस संबंध में अदालतों की प्रक्रिया भी सवालों के घेरे में है। वैसे तो 1988 से अब तक 42 सांसद सदस्यता गंवा चुके हैं। इनमें से सबसे ज्यादा सदस्य 14वीं लोकसभा में अयोग्य करार दिए गए थे। प्रश्न पूछने के बदले धन लेने के मामले और क्रॉस वोटिंग के संबंध में 19 सांसदों को अयोग्य करार दिया गया। राजनीतिक पाला बदलने, सांसद के तौर पर अशोभनीय आचरण करने तथा दो साल या उससे अधिक की जेल की सजा के अपराधों के लिए अदालत द्वारा दोषी ठहराए जाने समेत विभिन्न आधारों पर अयोग्य करार दिया गया है। वर्ष 1985 में दल-बदल विरोधी कानून लागू होने के बाद लोकसभा की सदस्यता से सबसे पहले कांग्रेस के लालदूहोमा को अयोग्य करार दिया गया था। जिन्होंने मिजोरम विधानसभा चुनाव के लिए मिजो नैशनल यूनियन के उम्मीदवार के रूप में अपना नामांकन पत्र दाखिल किया था।
इस पार्टी का गठन भी उन्होंने ही किया था। हालांकि दल-बदल ​विरोधी कानून और लाभ के पद सम्भालने के मामले में भी कई सांसद राज्यसभा की सदस्यता गंवा चुके हैं। कई तरह के घटनाक्रमों के बीच सबसे अधिक रोचक मामला राकांपा सांसद मोहम्मद फैजल का रहा। उन्होंने एक साल में दो बार सांसद पद से अयोग्य होने का रिकार्ड भी बनाया। लक्षद्वीप से दोबारा अयोग्य ठहराए गए सांसद मोहम्मद फैजल को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिली है। सर्वोच्च अदालत ने फैजल की सदस्यता बरकरार रखते हुए उनकी दोषसिद्धि पर मोहर लगाने वाले केरल हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी है। इस फैसले के बाद फैजल की संसद सदस्यता फिर से बहाल हो सकती है। फैजल एवं अन्य लोगों पर पी. सालेह की हत्या के प्रयास के आरोप में कावारत्ती सत्र न्यायालय से दस वर्षों की सजा मिली थी।
लोकसभा स​िचवालय ने भी तीन अक्तूबर को केरल हाईकोर्ट से जारी आदेश के आधार पर लोकसभा सदस्यता के अयोग्य ठहराए जाने का फरमान दिया था। लोकसभा सचिवालय के मुताबिक फैजल की अयोग्यता उनको सजा सुनाए जाने के समय 11 जनवरी, 2023 से ही प्रभावी हो गई थी। पहली बार फैजल को इस फैसले के दो दिन बाद ही 13 जनवरी को उनकी अयोग्यता का पत्र जारी कर दिया गया था। निर्वाचन आयोग ने 19 जनवरी को लक्षद्वीप में उपचुनाव का कार्यक्रम भी घोषित कर दिया था। इसी बीच केरल हाईकोर्ट ने 25 जनवरी को उनकी सजा पर रोक लगा दी थी। इसके फौरन बाद राकांपा यानी एनसीपी नेता मोहम्मद फैजल की लोकसभा सदस्यता बहाल करने को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है। एक वकील ने यह याचिका दायर कर कहा कि क्या एक अभियुक्त की दोषसिद्धि पर अदालत लोकसभा सदस्य की अयोग्यता को रद्द कर उसे फिर बहाल किया जा सकता है? सुप्रीम कोर्ट ने 29 मार्च को राकांपा नेता और लक्षद्वीप सांसद मोहम्मद फैजल की सदस्यता बहाल करने की लोकसभा सचिवालय की अधिसूचना के मद्देनजर संसद सदस्य के तौर पर उनकी अयोग्यता के खिलाफ दायर याचिका का निपटारा कर दिया था।
29 मार्च को लोकसभा सचिवालय द्वारा अधिसूचना को रद्द करने की मांग करते हुए अपनी याचिका में कहा कि यदि एक बार संसद या राज्य विधानमंडल के सदस्य ने संविधान के आर्टिकल 102 और 191 के तहत अपना पद खो दिया है तो ऐसे में अदालत द्वारा उसे जब तक आरोपों से बरी नहीं किया जाता तब तक उस व्यक्ति को अयोग्य ही घोषित किया जाएगा। याचिका में उन्होंने कहा कि कृपया इस मुद्दे का फैसला करें कि क्या किसी अभियुक्त की दोषसिद्धि को अपील की अदालत द्वारा रोका जा सकता है? अगर हां तो क्या दोषसिद्धि पर रोक के आधार पर ऐसा व्यक्ति जिसे अयोग्यता का सामना करना पड़ा है, संसद के सदस्य के रूप में दोबारा योग्य हो जाएगा?
सुप्रीम कोर्ट द्वारा फैजल की सदस्यता बरकरार रखे जाने के बाद पूरी प्रक्रिया पर सवाल उठ रहे हैं। यह कैसी कवायद है कि सदस्यता खोने पर एक सांसद की ​शख्सियत बदल जाती है और सदस्यता बहाल होने पर शख्सियत और हो जाती है। सुप्रीम कोर्ट ने राहुल गांधी मामले में टिप्पणी की थी कि मानहानि मामले में निचली अदालतों को अधिकतम सजा सुनाते वक्त ध्यान रखना होगा। कोर्ट ने यह भी कहा था​ कि अधिकतम सजा क्यों दी गई? इस संबंध में निचली अदालत ने अपने आदेश में यह साफ नहीं किया। सर्वोच्च अदालत का यह भी मानना था कि सजा देते वक्त यह भी ध्यान में रखना होगा कि किसी भी निर्वाचन क्षेत्र को एकदम से ‘शून्य’ घोषित नहीं किया जाना चाहिए।
इस मामले में मेरी व्यक्तिगत राय है कि लोकसभा सचिवालय को भी अंतिम निर्णय आने तक या सर्वोच्च न्यायालय में सुनवाई से पहले तक सांसदों की सदस्यता रद्द करने संबंधी अधिसूचना जारी करने में संयम बरतना चाहिए और निचली अदालतों द्वारा दी गई सजा के सभी कानूनी पहलुओं को अच्छी तरह से तस्दीक कर लेना चाहिए, ताकि पूरी प्रक्रिया हास्यास्पद न बन जाए। कोई ऐसा तरीका अपनाया जाना चाहिए कि किसी सांसद के साथ अन्याय न हो और कानून का भी सम्मान बना रहे। किसी सांसद की सदस्यता रद्द होने या फिर से बहाल होने से उनके​ निर्वाचन क्षेत्र के मतदाताओं पर बहुत प्रभाव पड़ता है।

आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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Aditya Chopra

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