मिग-21 की विदाई
6 दशक तक भारत के आकाश पर अपना साम्राज्य स्थापित करने वाला भारतीय वायुसेना का मिग-21 विमान अब अपनी अंतिम उड़ान की ओर अग्रसर है। सितम्बर माह में चंडीगढ़ वायुसेना एयरपोर्ट पर मिग-21 को अंतिम विदाई दे दी जाएगी। इसी के साथ ही भारतीय वायुसेना के एक युग का अंत हो जाएगा। मिग-21 को सोवियत संघ के मिकोयान-गुरेविच िडजाइन ब्यूरो ने तैयार किया था। भारत और सोवियत संघ (अब रूस) से हमारी मैत्री स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से लेकर अब तक बहुत गहरी रही और उसने न केवल भारत के विकास में योगदान दिया बल्कि भारत को दुश्मनों का मुकाबला करने के लिए रक्षा सामग्री से लेकर लड़ाकू विमान तक दिए। 1960 के दशक में पहली बार मिग-21 को भारतीय वायुसेना में शामिल किया गया था। यह सुपर सोनिक फाइटर जेट जल्द ही भारतीय वायुसेना की रीढ़ की हड्डी बन गया। इसकी गति, फूर्ति के आगे ठहरना मुश्किल था। इसकी खासियत यह थी कि यह 2230 किलोमीटर प्रति घंटा की गति से उड़ान भर सकता है। मिग-21 के चलते ही भारत ने पाकिस्तान के मंसूबों को ध्वस्त िकया। हालांकि इसका इस्तेमाल 1965 की जंग में बहुत कम हुआ लेकिन 1971 की जंग में इसने ईस्ट पाकिस्तान पर ऐसी मौत बरसाई कि जंग ही खत्म हो गई। ढाका के गवर्नर हाउस पर 14 दिसंबर, 1971 में भारतीय वायुसेना के चार मिग-21 ने गुवाहाटी के एयरबेस से उड़ान भरी और ढाका में गवर्नर हाउस को अटैक कर के जमींदोज़ कर दिया और यह 1971 की जंग का एक सबसे बड़ा टर्निंग पॉइंट था। कारगिल की जंग में भी मिग-21 ने अपना खूब जोहर दिखाया। एक मिग-21 भी भारतीय वायुसेना ने खोया, लेकिन कारगिल की चोटियों में आ घुसे पाकिस्तानियों को मार भगाया। इसके बाद बालाकोट एयर स्ट्राइक के बाद जब पाकिस्तानी एयरफोर्स ने अपने एफ-16 और जेएफ-17 के साथ भारतीय इलाके में घुसने की कोशिश की तो विंग कमांडर अभिनंदन ने अपने मिग-21 बाइसन से ही दुनिया के सबसे ताकतवर माने जाने वाले एक पाकिस्तानी एफ-16 को मार गिराया था।
समय के साथ-साथ मिग-21 पुराने पड़ते गए। नई प्रौद्योिगकी आते-आते आैर युद्धों का स्वरूप बदलने के चलते मिग-21 अपना महत्व खोता चला गया। कुछ ही वर्षों बाद यह विमान हादसों का शिकार होने लगे। तब इसे उड़ता ताबूत कहा जाने लगा। 1971-72 के बाद से 400 से ज्यादा जेट िवमान हादसों का शिकार हुए। इनमें से अधिकतर मिग-21 ही थे। इन हादसों ने पिछले दशकों से 200 से ज्यादा पायलटों और जमीन पर 50 नागरिकों की जान ले ली। भारतीय वायुसेना लम्बे समय से इसे िरटायर करने की कोशिशों में लगी हुई थी लेकिन अंततः उसने इसे अलविदा कहने का फैसला कर िलया। पुरानी तकनीक, रखरखाव की चुनौतियां और जटिल परिस्थितियों ने इनकी उड़ान को जोिखम भरा बना दिया है।
मिग-21 की विदाई का एक बड़ा कारण भारतीय वायुसेना का आधुनिकीकरण भी है। भारतीय वायुसेना अब राफेल, सुखोई-30 एमकेआई, तेजस, जगुआर समेत अन्य आधुनिक विमानों पर ध्यान केंद्रित कर रही है। वहीं स्वदेशी हल्के लड़ाकू विमान तेजस ने मिग-21 की जगह लेना शुरू कर दिया है। इसके अलावा आधुनिक युद्ध की जरूरतों, स्टील्थ तकनीक, ड्रोन और लंबी दूरी की मिसाइलों ने युद्ध की दशा और दिशा को बदल दिया है। ऐसे में मिग-21 आधुनिकता की दौड़ में अप्रासंगिक हो गया है। मिग-21 महज एक फाइटर सुपरसोनिक विमान नहीं है, यह भारतीय वायुसेना के पायलटों की नई पीढ़ी के लिए एक प्रशिक्षण मंच भी रहा है। इसने सैकड़ों पायलटों को सुपरसोनिक उड़ान और युद्ध की कला सिखाई। मिग-21 का छोटा आकार, गजब की रफ्तार और मजबूती ने इसे भारतीय परिस्थितियों के लिए काफी अहम बनाया। इसे हमेशा भारत और रूस की दोस्ती के लिए भी याद किया जाएगा।
अब भारतीय सेना को अमेरिका से अपाचे हेलीकॉप्टरों की पहली खेप मिल गई है। इससे भारतीय सेना के हमला करने और ऑपरेशनल क्षमता में काफी इजाफा होगा। अपाचे के अलावा भारतीय सेना के पास स्वदेशी अटैक हेलीकॉप्टर एलसीएच प्रचंड भी है। अपाचे हेेलीकाॅप्टर एक मिनट में 128 लक्ष्यों पर िनशाना साध सकता है आैर यह दुश्मन को अंधेरे में भी ढूंढ सकता है।
कहते हैं शास्त्र की रक्षा के िलए शस्त्र बहुत जरूरी है। भारत की वायुसेना में लड़ाकू विमानों की संख्या लगातार घट रही है जबकि चीन की सैन्य ताकत बढ़ रही है। इसलिए भारत लगातार अपनी रक्षा पंक्ति को मजबूत बनाने में जुट गया है। भारत के पास सुखोई, 30 एमकेआई, डसाल्ट राफेल, डसाल्ट मिराज आैर स्वदेशी लड़ाकू विमान तेजस्वी है। हाल ही में आॅपरेशन सिंदूर के दौरान भारत ने 22 मिनट में ही पाकिस्तान की हवाई जवाबी क्षमता को ध्वस्त करने के लिए उसके 11 एयरबेस पर सटीक हमले किए और उसके कमान सेंटर और रेडार प्रितष्ठान तबाह कर दिए। चार दिन का यह युद्ध दो परमाणु प्रतिद्वंद्वियों के बीच था लेकिन इसने बहुउद्देशीय स्ट्राइक लड़ाकू िवमानों और नवीनतम हथियारों के सामरिक मूल्यों को उजागर कर िदया। रक्षा उत्पादन में भारत आत्मनिर्भर बन रहा है और यह गर्व का विषय है कि भारत रक्षा सामग्री का निर्यातक भी बन गया है।