हिमाचल में किसानों का आंदोलन: फॉरेस्ट राइट्स लागू करने की मांग, पहलगाम पीड़ितों को श्रद्धांजलि
किसानों की मांग: फॉरेस्ट राइट्स लागू हो, पहलगाम पीड़ितों को श्रद्धांजलि
हिमाचल प्रदेश में किसानों ने वन अधिकार अधिनियम के पूर्ण क्रियान्वयन की मांग को लेकर व्यापक प्रदर्शन किया। पहलगाम हमले के पीड़ितों को श्रद्धांजलि देने के बाद, किसानों ने चेतावनी दी कि यदि सरकार ने 20 मार्च के आश्वासनों का पालन नहीं किया, तो आंदोलन को और तेज किया जाएगा। उन्होंने मांग की कि इन मामलों का भी शीघ्र समाधान किया जाए, ताकि गरीब और वंचित समुदायों को न्याय मिल सके।
हिमाचल प्रदेश में वन अधिकार अधिनियम (Forest Rights Act – FRA) के तत्काल और पूर्ण क्रियान्वयन की मांग को लेकर राज्यभर में किसान और नागरिक व्यापक प्रदर्शन कर रहे हैं। सोमवार को, विरोध शुरू करने से पहले सभी 12 जिलों में दो मिनट का मौन रखकर हाल ही में हुए पहलगाम हमले के पीड़ितों को श्रद्धांजलि दी गई। हिमाचल प्रदेश किसान सभा के अध्यक्ष कुलदीप सिंह तंवर ने बताया कि आज उपायुक्त, एसडीएम, तहसीलदार और बीडीओ कार्यालयों के बाहर धरना प्रदर्शन किया गया है। तंवर ने कहा कि यदि सरकार ने 20 मार्च को दिए गए आश्वासनों के बावजूद कानून को सही ढंग से लागू नहीं किया तो आंदोलन को तेज किया जाएगा। उन्होंने पहलगाम में निर्दोष पर्यटकों पर हुए हमले को दुखद बताते हुए कहा कि ऐसी घटनाएं हिमाचल की पर्यटन आधारित अर्थव्यवस्था को गहरा नुकसान पहुंचाती हैं और स्थानीय लोगों की आजीविका खतरे में डालती हैं। इसके साथ ही उन्होंने पीड़ितों को मुआवजा और न्याय दिलाने की मांग की।
किसानों की चेतावनी: आंदोलन को और तेज किया जाएगा
कुलदीप सिंह तंवर ने कहा कि 20 मार्च को विधानसभा घेराव के दौरान सरकार को चेतावनी दी गई थी कि यदि फॉरेस्ट राइट्स एक्ट को प्रभावी ढंग से लागू नहीं किया गया, तो राज्यव्यापी आंदोलन होगा। अब धरनों और विरोध प्रदर्शनों के जरिए किसानों ने अपनी मांगें दोहराई हैं। उन्होंने यह भी कहा कि सरकार की निष्क्रियता से किसानों और गरीब समुदायों में गहरी नाराजगी है।
हिमाचल में भूमि संकट और आजीविका पर संकट
तंवर ने बताया कि हिमाचल प्रदेश में भूमि holdings अत्यधिक विखंडित हो चुकी हैं, और अब औसत जोत एक एकड़ से भी कम रह गई है। औद्योगीकरण की विफलता, सरकारी नौकरियों की कमी, और अग्निवीर योजना के कारण रोजगार के अवसर घटने से ग्रामीण क्षेत्रों में संकट गहरा गया है। हजारों परिवार बेदखली के खतरे का सामना कर रहे हैं।
कानूनों की गलत व्याख्या से वंचितों पर खतरा
तंवर ने आरोप लगाया कि राजस्व और वन अधिकारियों द्वारा भूमि से जुड़े कानूनों की गलत व्याख्या से गरीब, दलित, विधवाएं और दूरदराज के क्षेत्रों के लोग सबसे ज्यादा प्रभावित हो रहे हैं। उन्होंने कहा कि जमीन पर वास्तविकता को समझे बिना किए गए निर्णय वंचित समुदायों को भारी नुकसान पहुंचा रहे हैं।
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फॉरेस्ट राइट्स एक्ट के क्रियान्वयन में अड़चनें
हालांकि वन मंत्री जगत सिंह नेगी ने जनजातीय क्षेत्रों में सुधार के प्रयास किए हैं, लेकिन वन विभाग की विरोधाभासी सलाहों के कारण प्रशासनिक अधिकारी भ्रमित हैं। तंवर ने कहा कि जब तक सभी विभागों में समन्वय नहीं होगा और राजनीतिक इच्छाशक्ति मजबूत नहीं होगी, तब तक फॉरेस्ट राइट्स एक्ट का प्रभावी क्रियान्वयन संभव नहीं है। तंवर ने यह भी कहा कि फॉरेस्ट राइट्स एक्ट के अलावा भूमि सुधार से जुड़े अन्य कई कानून जैसे भू-सीलिंग एक्ट, भूमि किराया कानून, और गांव की साझी जमीनों (शामलात जमीन) से जुड़े विवाद भी अभी तक लंबित हैं। उन्होंने मांग की कि इन मामलों का भी शीघ्र समाधान किया जाए, ताकि गरीब और वंचित समुदायों को न्याय मिल सके।