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राजनीति में फिल्मी सितारे तथा उनके कर्त्तव्य

05:55 AM Jun 09, 2024 IST | Rahul Kumar Rawat
राजनीति में फिल्मी सितारे तथा उनके कर्त्तव्य

राजनीति भी बड़ी विचित्र चीज है। इसमें सही लोगों ने उतरकर सचमुच देश को एक नई दिशा दी है लेकिन यह भी सच है कि राजनीति में एक आकर्षण होने के साथ-साथ इससे केवल शौक के लिए जुड़ने वाले लोगों की कमी भी नहीं। राजनीति को आज की तारिख में लोग एक स्टेटस सिंबल भी मान रहे हैं। राजनीति की चमक-धमक को देखकर बॉलीवुड के सितारे भी इसमें उतर रहे हैं। सच बात तो यह है कि बॉलीवुड और राजनीति का रिश्ता वर्षों पुराना रहा है। आज की तारीख में जब कंगना रनौत, रामायण सीरियल के अरुण गोविल या शत्रुघ्न सिन्हा या मनोज तिवारी, रवि किशन जैसे सितारे अगर लोकसभा और राज्यसभा के माध्यम से राजनीति में उतरते हैं तो ज्यादा आश्चर्य नहीं करना चाहिए। बल्कि मेरा सवाल है कि फिल्मी सितारों से लोगों की जो अपेक्षाएं हैं उन पर ये सितारे कैसे उतरेंगे। पांच साल के लिए राजनीति में आना, लोकसभा का चुनाव लड़ना, जीत जाना और फिर उसी बॉलीवुड की दुनिया में उतर जाना, लोकतंत्र की सार्थकता को फिल्मी सितारे कैसे निभायेंगे यह एक बड़ा प्रश्न है।

राजनीति की चकाचौंध में फिल्मी सितारों के आगमन से ही विवाद शुरू हो जाते हैं। डायलॉगबाजी हो या अन्य वक्तव्य, सोशल मीडिया पर जिस तरह से कंगना रनौत के मामले में हमने चुनावी मुकाबले में मंडी से उतरने से पहले और उनकी तीन दिन पहले चंडीगढ़ एयरपोर्ट पर दिल्ली यात्रा शुरू होने से पहले जो थप्पड़बाजी देखी, सोशल मीडिया उसे अपने ही तरीके से बयान कर रहा है। राजनीति में विवाद बॉलीवुड के चमकते-दमकते सितारों से जब जुड़ने लगते हैं तो सवाल उठता है कि आप अपने क्षेत्र को लोकसभा में प्रतिनिधित्व कैसे देंगे। रामायण में राम का किरदार निभाने वाले अरुण गोविल जब मेरठ से दस हजार वोटों से जीते तो एक पत्रकार ने सवाल पूछा कि आप मुंबई से आए हैं मेरठ में कैसे काम करोगे तो उन्होंने कहा कि अभी तो मैं इस मामले में विचार करूंगा कि कैसे करना है। उनके इस जवाब की सोशल मीडिया में तीखी आलोचना हुईं। बहरहाल हेमा मालिनी लगातार तीसरी बार मथुरा से जीतकर सुर्खियां बंटोर रही हैं। लोग फिल्मी सितारों को वोट देकर जीताते हैं तो अपने क्षेत्र की समस्याओं के समाधान की उम्मीदें भी लगाते हैं। वैजयंती माला, अमिताभ बच्चन, धर्मेन्द्र, सन्नी देओल, किरण खेर, शत्रुघ्न सिन्हा, विनोद खन्ना, राजेश खन्ना, गोविंदा, उर्मिला मातोड़कर जैसे सितारे कल आते थे तो आज उनका जमीनी स्तर पर औचित्य क्या है और उन्होंने अपने-अपने क्षेत्र के लिए क्या किया यह एक बड़ा सवाल है।

यह सवाल सोशल मीडिया पर सबसे ज्यादा उभर रहा है। नई लोकसभा में इस बार टीएमसी से बंगाली अभिनेत्री जुन मालिया, साइनी घोष, शताब्दी राय, रचना बनर्जी, देव अधिकारी, भाजपा के सुरेश गोपी, मनोज तिवारी, रवि किशन जैसे सितारे जीते हैं लेकिन जमीनी स्तर पर लोग उनसे उम्मीदें लगा रहे हैं अगर आप राजनीति में चमक-धमक के लिए आए हैं और जीतने के बाद दस-बारह बार लोकसभा पहुंचे, हाजिरी लगाई और लौट गए तो इसे क्या कहेंगे। माफ करना यह सबकुछ सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रहा है। राजनीति बहुत गहरी चीज है। अच्छे लोगों और सेवा करने वालों की कोई कमी नहीं है। आप अपने क्षेत्र के विकास की मांग जब बुलंद करेंगे और लोगों के लिए उनकी उम्मीदें पूरा करने के लिए जमीन पर उतरेंगे तो यही राजनीति आपको सफलता भी प्रदान करती है और कोई विवाद सामने नहीं आने देना चाहिए। अश्विनी जी करनाल से भारी बहुमत से जीते। लोगों ने उन्हें भरपूर प्यार ​दिया परन्तु अश्विनी जी ने भी उनके प्यार को काम से लौटाया। हर गांव में पहुंचे। यही नहीं मैंने भी उनके साथ​ मिलकर क्षेत्र में बहुत काम किया। लोग कहते थे जैसे एक टीवी के साथ एक टीवी फ्री आता है वैसे हमारे एमपी के साथ एमपी भी आई हैं और काम कर रही हैं। क्यों​कि लोगों को काम चाहिए, साथ में प्यार और सम्मान भी चाहिए। जिसको वो वोट देकर चुनते हैं उससे बड़ी उपेक्षाएं होती हैं। यही बात है ​कि अभी तक लोग याद भी करते हैं, फोन भी करते हैं, मिलने भी आते हैं। राजनीति में ईमानदारी और सूचिता के गुण को बनाकर लोगों की उचित समस्याओं का समाधान करना चाहिए। राजनीति के साथ सेवा को धर्म और कर्त्तव्य मानना चाहिए।

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Rahul Kumar Rawat

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